कर्मफल **** – बालेश्वर गुप्ता

घटना 1997 की है, एक कोलाहल, लोगो की भीड़ का जमावड़ा, आवाजें, मेरठ के स्पोर्टस स्टेडियम के सामने की सड़क पर एक 20वर्षीय नवयुवक बेहोशी की हालत में पड़ा है, उसके बराबर मे ही पड़ा है उसका स्कूटर. उस युवक को घेरे ही भीड़ है, पर उसे उठाने वाला कोई नही. पता नही ये सामुहिक निष्ठुरता होती है या फिर बाद में जांच से बचने का उपक्रम. लेकिन ये मानवता तो नही हो सकती.

   अचानक ही एक बड़ी सी कार वहाँ आकर रुकी और उसमे से एक युवा नेता उतरा कुर्ता पजामा पहने. उसने घटना को समझा और उस बेहोश युवक को उठवाकर अपनी गाड़ी में लेटा कर पास के ही मूर्ति नर्सिंग होम में दाखिल कराया, अपने ख़र्चे से इलाज प्रारम्भ करा कर, उस युवा नेता ने बेहोश युवा से प्राप्त एक फोन डायरी से उसके घरवालो को सूचित किया.बेहोश युवा मेरा पुत्र विशाल था, बचाने वाला युवा नेता मेरठ में ही रहने वाले अनिल यादव थे.

       सूचना मिलने पर मैं नर्सिंग होम पहुँच जाता हूँ. मेरा बेटा कुछ दिनों में बिल्कुल ठीक हो जाता है, हम यादव जी के यहां कृतज्ञता प्रकट करने के लिए भी जाते हैं.


        उसी दौरान मुझे याद आती है 1978 की घटना. हिमाचल की बंकर नदी के किनारे स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर शान से आज भी विराजित है. बंकर नदी हिम शिखर से प्रकट हो, कम जल होने के बावजूद, एक शरारती बालक की भांति पत्थरों से खेलती अति तीव्र गति से बहती हुई कुछ आगे चल एक झरने में परिवर्तित हो जाती है. बहाव इतना तेज मानो उसके सामने किसी का अस्तित्व बचेगा ही नही. मई का महीना मै भी अपनी पत्नि और अपने 8 माह के बेटे के साथ नदी में स्नान करने गया. बहाव तेज देख, हमने एक विशाल पत्थर की ओट ले वहाँ नहाना प्रारम्भ ही किया था कि किनारे की ओर से एक शोर सुनाई दिया, जो नदी की ओर इशारा कर रहे थे. मैंने उधर देखा कि हमारे ही ग्रुप का एक 17-18 वर्ष का लड़का उस बहाव में पैर न जमा पाने के कारण बह रहा है. संयोग वश वो हमारे पास से गुजरना था, सो पता नही मेरा कैसे औसान बना कि मैंने अपने पाव पत्थर पर जमाये और पानी में लेट कर उसकी ओर हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया और अपनी पत्नि मधु की सहायता से उसे हम किनारे पर ले आये, उसकी जान बच गयी.

     मैं सोच रहा था कि क्या आज 1997 में मेरे बेटे को बचाने के लिये अवतरित उस अनिल यादव को ईश्वर ने 1978 में मेरे द्वारा बालक को बचाने के एवज में वरदान स्वरुप तो नही भेजा था?

    कर्म फल क्या दूसरे जन्म में ही भोगना पड़ता है? मुझे तो लगता है कि कर्मफल इसी जन्म में भी प्राप्त होता है.

     बालेश्वर गुप्ता

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