कर आई जग हँसाईं … – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

आज अपने आप पर कोफ़्त हो रहा था…क्या ज़रूरत थी मामी सास से ये सब कहने की… वो तो वैसे भी कान लगाए रहती हैं हमारे घर की हर बात जानने के लिए….मायके से विदा होते वक़्त कैसे दादी ने समझाते हुए कहा था,“ देख बिट्टो जहाँ जा रही वो तेरा ससुराल है…. तू तेरी सास और जेठ जेठानी…. और एक ब्याहता ननद इत्तो सा परिवार तेरा…. कभी किसी बाहरी की बात पर कान ना देना…. रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है…वो जो टूट गया ना फिर पहले जैसा चाह कर भी कुछ नहीं हो सकता इसलिए एक बात हमेशा ध्यान रखना… कोई भी जो बात कहे बस सुन लेना मुँह ना खोलना…. अपना ससुराल अपना होवे है जो तू जरा सा कान की कच्ची निकली पूरा परिवार तबाह हो जावेगा…।”

और आज पता नहीं क्यों मानसी कान की कच्ची निकल गई …. ब्याह कर आए महीना भी तो ना हुआ था उसको …. और मामी सास अपने किसी रिश्तेदार की शादी में जब यहाँ आई तो ननद के घर भी सबसे मिलने चली आई थी …. जेठानी और सास दोनों उनकी ख़ातिरदारी में लगी रही और मानसी को सास ने मामी के साथ बिठा दिया था ये कहकर हमसे तो बहुत बार मिलती रही है तुम नई हो इनके साथ बैठ कर बातें करो।

“ ये कैसी साड़ी पहनी है बहू…. अरे नई दुल्हन ऐसी साड़ी पहनती हैं क्या …रंग तो देखो कैसा फीका है ही और काम देखो।” साड़ी को छू छूकर देखते हुए मुँह चमकाती मामी सास ने कहा 

“ ये साड़ी तो इधर से ही मिली है मामी जी… आपको अच्छी नहीं लगी…?” मानसी ने बस इतना ही तो पूछा था 

“ अरे बहू ये तेरे जेठ जेठानी का किया धरा है सब ….. सास ने तो कहा भी था तनिक साड़ियाँ अच्छी ला दो… पर वो तो कहने लगा माँ ये अच्छा ही है सबके बढ़ चढ़कर दाम बताएँ और तेरी सास को साड़ियों के बारे में क्या पता बेटे ने जो बोल दिया आँख मूँदकर मान लेती है… वैसे हम में से किसी को कहाँ दिखाया … नई बहू के कपड़े ..जेवर…क्या दे रहे कुछ भी तो नहीं पता…।” कहते कहते मामी सास ने मानसी के गले में पड़े हार को हाथों से पकड़कर तौलते हुए कहा,“ तेरी सास कह रही थी बड़ा बेटा पन्द्रह लाख का सोने का हार ले कर आया नई बहू के लिए…. ये तो आठ लाख का भी ना होगा।” 

ये सब सुन कर मानसी के ग़ुस्सा आने लगा…. उसके पिता से कह कर कि आपके क़स्बे में अच्छे जेवर ना मिलेंगे आप हमें पैसे दे दीजिए हम लाकर आपकी बेटी को दे देंगे और पापा ने बिना सोचे समझे कैसे पच्चीस लाख रूपये थमा दिए थे…. मतलब गहनों के नाम पर लेकर पैसे पचा गए… अब तो मामी सास की हर बात उसे सही लगने लगी थी… आख़िर वो मानसी की तरफ़ से जो कह रही थी…

“ नई बहू वैसे तेरी सास जेठानी बहुत घाघ किस्म की है… बच के रहना… मीठा मीठा बोल कर तुम्हें कुछ पता भी नहीं लगने देगी…अरे मैं तो ये अपने कान से सुनी थी सब कह रहे थे शादी के मंडप में नई बहू को कम से कम दो लाख रूपये हाथ में रख देना चाहिए था पर तेरे जेठ ने कहा पचास हज़ार बहुत है…. उतने पैसे का क्या करेगी नई बहू…. छोटा है ना उसके लिए जो करना होगा अब वो करेगा… अरे तेरा पति तो भोला स्वामी है…. जो वे लोग कहते वो अटल सत्य होता….कह रही हूँ बहू अपनी पहचान बनानी हो तो अभी से अपने स्वर तेज़ रखना… जो अब दब गई फिर तो तू गई।” मामी सास की बातों पर पूर्णविराम लग गया क्योंकि सासु माँ के पीछे पीछे जेठानी चाय नाश्ता लेकर आ गई थी 

दोनों के चेहरे की रंगत उतरी हुई देख कर मानसी समझ गई मामी सास की आख़िरी बात दोनों ने सुन ली है ।

मामी सास चाय नाश्ता कर के अपने रिश्तेदार के घर चली गईं।

मानसी के मन में जो बातों की उथल-पुथल चल रही थी उसे शांत करने के लिए वो पति निमेष का इंतज़ार कर रही थी।

रात के खाने के बाद जब निमेष और मानसी कमरे में अकेले थे तो मानसी ने पूछ ही लिया,“शादी की सारी ख़रीदारी आपने नहीं की… पापा से तो जेठ जी ने कहा था सब कुछ निमेष ही पसंद कर के ख़रीदेगा …. फिर मुझे इतनी घटिया साड़ियाँ और हल्के गहने जेठ जी ने क्यों दिए…. मेरे पापा से तो बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे जेठ जी पर देखो… दूसरे के पैसे देख नियत बिगड़ ही गई ।”

“ ये क्या बकवास कर रही हो…. किसने तुमसे क्या कह दिया….देखो मानसी मैं अपने परिवार के बारे में एक भी उलटी बात नहीं सुनने वाला….. मुझे कोई परवाह नहीं भैया ने क्या किया क्या नहीं…. तुम्हें नहीं पसंद है मत पहनो…. मैं लाकर दे दूँगा पर उन लोगों के खिलाफ एक बात नहीं सुन सकता…और तुम अभी नई नई हो जानती ही क्या हो इस परिवार के बारे में जब जान जाओगी इस तरह की बातें कहते ज़बान काँपेंगी।”ये सब कहते हुए निमेष कमरे से बाहर निकल सोफे पर जाकर सो गया ।

सासु माँ को अपच की शिकायत हो रही थी तो वो इधर से उधर घूम रही थी…. तभी उनकी नज़र निमेष पर पड़ी…. वो जल्दी से बेटे के पास आई और उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बोली,“ क्या हुआ लल्ला… यहाँ क्यों सो रहा है…. तबियत ठीक नहीं है क्या?”

“ कुछ नहीं माँ बस ऐसे ही” कह निमेष करवट बदल सोने की कोशिश करने लगा

“ बहू ने कुछ कहा…. आज तेरी मामी घर आई थी…. शायद उन्होंने बहू से कुछ कहा हो…. तू तो मामी की आदत जानता है …बहू नई हैं उसे अभी लोगों को समझने में वक़्त लगेगा…. अब उठ कमरे में जा।” निमेष को उठाकर माँ ने कमरे में भेज दिया 

मानसी दरवाज़े की ओट से सब सुन रही थी…. अब उसे दादी की बात अक्षरशः याद आ रही थी आज उसने अपने ही घर की बात दूसरे के मुँह से सुन मामी सास से थोड़ी शिकायत तो सास ,जेठ जेठानी की कर ही दी थी … अब बात मुँह से निकल गई थी ….पता नहीं मामी सास किस किस से क्या क्या कहेंगीं ये सोच कर वो घबराने लगी।

“ सॉरी निमेष मुझे तुमसे ऐसे किसी और की बात पर कान देकर सवाल नहीं करना चाहिए था…. पहले से पता होता कि मामी सास की ऐसी आदत है तो मैं उनकी बात हल्के में लेती पर जब वो शादी की बातें बता रही थी तो मुझे लगा सच कह रही होगी।” मानसी निमेष से माफी माँगते हुए बोली 

“ देखो मानसी… अपने घर की बात अपने घर में ही सुनो समझो सुलझा लो… बाहर के लोगों से कहोगी तो पता क्या होगा बस जग हँसाई…. हमारे परिवार की जो एकता है ….परस्पर प्यार सौहार्द है…ये देख अक्सर लोग जल जाते है…. एक बात सदा याद रखना रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है बस उसको टूटने मत देना ….मामी जी के तो खुद चार बेटे है… कोई नहीं पूछता उनको… देखना वो जब तब यहाँ आएँगी कभी तुमसे भाभी के बारे में कभी भाभी से तुम्हारे बारे में तो कभी माँ से तुम्हारे बारे में कह कर आग लगाने की कोशिश करेंगी…. माँ और भाभी तो सब जानती है इसलिए वो मामी की बात पर कभी कान नहीं लगाती… पर तुम नई हो और मामी के झाँसे में भी आ गई… आगे से उम्मीद करूँगा उनकी बात को कभी दिल पर मत लेना…. रही तुम्हारे कपड़े और गहने तो वो सब मेरे साथ जाकर ही लिए गए हैं और मुझे उनमें कोई कमी नज़र नहीं आई… तुम्हारे घर में भी सब तारीफ़ ही कर रहें थे ऐसे में बस फिर एक मामी की बात पर तुम मुझसे सवाल करने लगी… आख़िर क्यों…. क्या वो ज़्यादा अपनी है हम नहीं..?” निमेष ने थोड़े तीखे तेवर में बात कही 

मानसी कुछ नहीं बोली और दोनों चुप्पी साध सो गए।

दूसरे दिन घर का माहौल देख मानसी समझ गई मामी सास ने जो बीज बोना था बो दिया है…. पर अब उसे इस बीज को जड़ से निकाल कर फेंकना होगा नहीं तो उसका परिवार बिखर जाएगा… 

“ माँ मुझे आपसे कुछ बात करनी है?” सासु माँ को अकेले में देख मानसी ने पूछा 

“ इसमें पूछने की क्या बात है बहू जो बोलना है बोल सकती हो ये तुम्हारा ही घर है…।” सासु माँ ने प्यार से कहा 

“ माँ कल मामी जी ने बहुत सारी ऐसी बातें कहीं जिनपर मेरी भी प्रतिक्रिया हो गई थी…. मैं जानती हूँ मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा …आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।” नज़रें झुकाए कान पकड़कर मानसी खड़ी हो गई 

“ ना रे बहू तेरी इसमें कोई गलती नहीं… अच्छा है ये बात तू ख़ुद समझ गई हो सकता जब हम कहते तो तुम्हें विश्वास नहीं होता..।” सासु माँ मानसी को प्यार से गले लगाते हुए बोली 

 मानसी ने यही बात जेठानी से भी कही और जेठानी ने कहा,“ मानसी ये तो मेरे साथ भी हुआ था तब बस सासु माँ की बुराई हुई थी इस बार मेरी भी हो गई… वैसे ये तो बता कितनी बुराई की हमारी ।”जेठानी ने मज़ाक़ करते हुए कहा 

“ सॉरी जेठानी जी… मैं भी पता नहीं क्यों उनकी बातों में आ गई जबकि मेरी दादी ने अच्छे से समझा कर भेजा था दूसरों की बातों में आकर अपना घर मत बर्बाद करना …रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है उसे बस संजो कर रखना अपने परिवार पर विश्वास करना उसपर शक कर टूटने ना देना और मैं वही करने जा रही थी।”मानसी शर्मिंदगी महसूस करते हुए बोली 

“ कोई नहीं छोटी …. हमें तो उनकी आदत पता ही है बस अब तू भी जान गई है बस आगे से ध्यान रखना।” जेठानी ने मानसी को समझाते हुए कहा 

अब सब कुछ अच्छी तरह चल रहा था पूरा परिवार अच्छी तरह मिल जुल कर रह रहे थे ।

अब मामी सास जब भी आती मानसी सतर्क रहती पर उनके जाने के बाद निमेष छेड़ते हुए कह ही देता तो मैडम जी ‘कर आई हमारी जग हँसाई ’

मानसी ग़ुस्से में निमेष को मारने को भागती और सासु माँ और जेठानी दोनों की मस्ती देख ख़ूब हँसते ।

बहुत बार ऐसा होता है परिवार के कुछ  लोग बस इसी फ़िराक़ में रहते कौन सी बात सुने और कहें जिससे उनके बीच झगड़ा हो और वो मज़े ले… ऐसे रिश्तों को पहचानते ही कोशिश कर के दूरियाँ बनाते हुए बात करें…. आपका परिवार आपका ही है वो किसी तीसरे चौथे की बात में आकर बिखर जाए इससे पहले आप सँभल जाए… कान उन बातों पर दे जो आप देख -सुन  रही है किसी की कही बातों पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सरल सहज सड़क से उतार कर पत्थरीलें रास्तों पर चलाने की गलती ना करें ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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