कापुरूष (भाग -3 )- माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

सत्य प्रकाश जी के फोन पर काल आ रही थी, दूसरी तरफ से उनके आफिस से कोई बोल रहा था, कामिनी ने सत्य प्रकाश जी के घर पर होने की गलग सूचना देकर फोन काट दिया।समय के साथ ही कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी के साथ कुछ गलत होने का भय सताने लगा था।

उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि अगर कुछ गलत हुआ तो उसमें कामिनी का बच पाना मुश्किल हो जाता यही सोचकर सत्य प्रकाश के गुम होने की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई दोनों मां बेटी ने, और सत्य प्रकाश जी के फोन को बंद कर दिया।

एक महीने बीत चुके थे, कामिनी और सुनीता को पैसों की तंगी ने आईना दिखा दिया था, उनके पास लोग बकाया पैसा मांगने आने लगे।हर आदमी नाते रिश्तेदार सभी लोगों ने उनसे दूरियां बना ली थी।

खाने पीने की तंगी से जूझ रही कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी की कमी का एहसास हो रहा था,जो कि एक सभ्य सुशील और मृदुभाषी उत्तम पुरुष थे, जिनके न रहने से कुछ दिनों में ही उन्हें जिंदगी की सच्चाई का एहसास हो रहा था।

सुबह के दस बज रहे थे, सत्य प्रकाश जी के आफिस से उन्हें कोई बुलाने के लिए आया था, कामिनी और सुनीता ने उसे झूठ बोलकर कुछ घंटों बाद सत्य प्रकाश जी को आफिस में आ जाने के लिए कह दिया था।

दोनों मां बेटी परेशान थी कि सत्य प्रकाश जी तो थे नहीं उनके आफिस जाएगा कौन? मां बेटी आपस में सलाह मशवरा करने के बाद सत्य प्रकाश जी के आफिस की ओर निकल पड़ी।

कामिनी और सुनीता को सामने देखकर प्रखर शर्मा जी बोले।”भाभी जी नमस्ते, सत्य प्रकाश कहा है?”नमस्ते का जवाब सिर हिलाकर देने के बाद कामिनी कुछ देर तक शांत रहकर बोली।”भाई साहब उनकी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह नहीं आ सके”।

कामिनी लड़खड़ाती जुबान से बोली।”भाभी! खुशखबरी है, सत्य प्रकाश जी पर लगे सारे दोष गलत है,वे तो एक सच्चे ईमानदार उच्च आदर्शों वाले पुरुष है,हमे बड़ा दुख है जो उन्हें परेशान होना पड़ा?”प्रखर शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले।”लेकिन भाई साहब वह अभी तो आ नहीं सकते”। कामिनी हड़बड़ाते हुए बोली।

“कोई बात नहीं,उनका कैश पास बुक,जेवर सब हम उन्हें घर पर ही आकर दे देंगे?”प्रखर शर्मा शांत लहजे से बोले।”यह आप हमें ही दें दीजिए”। सुनीता बीच में बोल पड़ी।”नही बेटी!यह सब आपके पापा के सिवा और किसी को नहीं दिया जा सकता, हमें उनकी रिसीविंग भी चाहिए?” प्रखर शर्मा जी सुनीता की ओर देखते हुए बोले।

कामिनी की आंखें नम होने लगीं उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था,वह एक बुत की तरह शांत बैठी थी।”भाभी जी!आप बहुत परेशान लग रही है, सत्य प्रकाश मेरा पुराना मित्र हैं,यदि अन्य कोई बात हो तो छुपाइये नहीं, मुझे खुलकर बताइये “।

प्रखर शर्मा जी कामिनी की ओर देखते हुए बोले।उनकी बात सुनकर कामिनी फूट-फूट कर रोने लगी। उसने सारी बातें प्रखर शर्मा जी को बताई और एक गुनहगार की तरह हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गई।

सुनीता चूपचाप बैठी अपने पापा को याद करते हुए आंसू बहा रही थी।”चुप हो जाइए भाभी जी! सत्य प्रकाश जी को कुछ नहीं हुआ है,वह सही सलामत है,आज आपकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे हैं, उसने आपके सारे गुनाहों को धो डाला है”। प्रखर शर्मा जी कामिनी और सुनीता को शांत कराते हुए बोले।

“भाई साहब कहा है सुनीता के पापा! मुझे उनके पास ले चलिए, मैंने बहुत गलत व्यवहार किया है, अपने पति परमेश्वर से,जिस पुरुष का मुझे आदर करना चाहिए, मैंने उसे कापुरूष बनकर जीने के लिए मजबूर कर दिया था।

कहकर कामिनी रोने लगी।”बस भाभी जी!रोइए नहीं, सामने केबिन में आप लोगो का कोई इंतजार कर रहा है?”प्रखर शर्मा जी कामिनी से सामने की ओर इशारा करते हुए बोले। केबिन के अंदर प्रवेश करते ही कामिनी और सुनीता के चेहरे पर खुशियां छलकने लगी। सामने सत्य प्रकाश जी बैठे हुए थे।

“मुझे माफ़ कर दीजिए और कभी भी हमें छोड़कर कही मत जाइएगा”। कहते हुए कामिनी सत्य प्रकाश जी के पैरों में लिपट गई। “अरे उठों कामिनी! मैं तुमसे नाराज़ ही कब था, मुझे तो तुम्हारी आंखों पर से झूठ और दिखावें के पर्दे को हटाना था,पुरूष होने के सारे कर्तव्य तो मैं हमेशा निभाता आया,मगर तुम शायद नारी का कर्तव्य भूलती जा रही थी,

जिससे मेरी बेटी का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा था”। सत्य प्रकाश कामिनी को उठाते हुए बोले। मुझे माफ़ कर दो पापा! कहकर सुनीता सत्य प्रकाश जी से लिपट गई। “चलों देर आए दुरुस्त आए, अंत भला तो सब भला “प्रखर शर्मा जी केबिन में आते हुए बोले।

उसी समय पियून को देखकर कामिनी चौंक पड़ी।”अरे यह तो जांच करने वाले अधिकारी हैं?”कामिनी पियून की ओर हैरानी से देखते हुए बोली।”इन्होंने अपनी भूमिका अदा कि है अपने साहब जी के घर की खुशियों को वापस लाने के लिए “।

प्रखर शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले।”तो क्या यह सच नाटक था?”सुनीता हैरान होते हुए बोली।”तो क्या सारे नाटक करने की कला तुम औरतें ही अदा करोगी पुरूष भी नाटक करने में आप लोगो से कमजोर नहीं है “। कहते हुए सत्य प्रकाश जी जोर-जोर से हंसने लगे। कामिनी और सुनीता भी उनके साथ जोर-जोर से हंसने लगी।

कापुरूष (भाग -2) – माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

#पुरुष 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

V

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!