कापुरूष (भाग -2) – माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

“कामिनी मुस्कुराते हुए बोली।” मैं ठीक कह रहा हूं, कुछ गड़बड़ी हुई है, जिसमें मेरा भी नाम आया है, मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है?”सत्य प्रकाश जी चिन्तित होते हुए बोले।”जो आदमी एक मच्छर तक नहीं मार सकता,वह भला गड़बड़ क्या करेगा,वह तो मैं ही हूं जो इतनी हिम्मत करके दशकों से झेल रही हूं?

“कामिनी मुंह बनाते हुए बोली।”अब चाहे तुम कुछ भी कहो कामिनी! मुझे भला बुरा कहों चिल्लाओ,जो हों गया है वह अब बदल नहीं सकता”। कहकर सत्य प्रकाश जी ख़ामोश हो गये।

कामिनी सत्य प्रकाश जी को अनाप-शनाप कहकर जोर -जोर से चिल्ला रही थी।”क्या हुआ मम्मी!काहे आसमान सिर पर उठा रखा है?”सुनीता कामिनी की आवाज सुनकर कमरे में आते हुए बोली।”क्या बताऊं इस आदमी ने तो मुझे कही का नही छोड़ा है?”

कामिनी गुस्से से तमतमाते हुए बोली।”अरे क्या हुआ है मम्मी! सुनीता हैरान होते हुए बोली।”पूछों अपने सत्यवादी बाप से, जिन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया गया है “। कामिनी सत्य प्रकाश जी की ओर इशारा करते हुए बोली।”पापा! क्या मम्मी!सही कह रही है?”सुनीता सत्य प्रकाश जी सवाल करते हुए बोली।

सत्य प्रकाश जी ने बिना कुछ बोले सिर हिला दिया।”पापा! मुझे तो नहीं लगता कि आप कही कुछ गड़बड़ी कर सकते हैं?”सुनीता सिर हिलाते हुए बोली।

“लेकिन गड़बड़ तो हों चुकी है बेटी “। सत्य प्रकाश जी उदास होते हुए बोले। सुनीता कुछ देर तक सत्य प्रकाश जी को देखती रही फिर दोनों मां बेटी सत्य प्रकाश जी को देखकर बड़बड़ाते हुए कमरे से बाहर निकल गई।

सुबह के दस बज रहे थे,डोर बेल कि आवाज सुनकर कामिनी ने दरवाजा खोला बाहर पांच छह लोग खड़े हुए थे।”सत्य प्रकाश जी! हैं घर पर?”उनमें से एक व्यक्ति बोला।”हा कहिए क्या काम है?”सत्य प्रकाश जी बाहर आते हुए बोले।

उन लोगों ने सत्य प्रकाश जी को अपना परिचय दिया और घर के सभी लोगों को बाहर आने के लिए कहा।”कौन है यह लोग हमें बाहर जाने के लिए क्यूं कह रहे हैं?” सुनीता और कामिनी एक साथ बोली।

“यह जांच अधिकारी हैं, चलों बाहर चलों इन्हें अपना काम करने दो”। सत्य प्रकाश सुनीता और कामिनी को समझाते हुए बोले। कामिनी और सुनीता सत्य प्रकाश जी को घूरते हुए उनके साथ घर के बाहर निकल गई।

कुछ देर तक वे लोग घर की छानबीन करने के बाद घर के जेवर, सत्य प्रकाश जी के बैंक खातों की पासबुक कैश सब जब्त करके अपने साथ ले जाते हुए सत्य प्रकाश जी से बोले।” सत्य प्रकाश जी जब तक जांच पूरी नहीं होगी तब तक आप अपने खाते से कोई लेना-देन नहीं कर सकते,और यह जेवर व कैश भी हमारे पास जमा रहेगा,आप जांच पूरी होने तक कही भी हमें जानकारी दिए बिना नहीं जा सकते “। कहकर वह लोग जेवर बैंक पास बुक जो भी कैश था उसे अपने साथ लेकर वहां से चले गए।

एक हफ्ते का समय बीत चुका था, कामिनी सत्य प्रकाश जी को दिन रात कोसने लगी। सुनीता हजारों रुपए खर्च करती थी, सत्य प्रकाश जी के बैंक खाते कैश जेवर सब कुछ जांच टीम अपने साथ ले गयी थी,जिसकी वजह से सुनीता परेशान रहने लगी, उसके सभी यार दोस्तों ने भी अपने हाथ खींच लिए थे,

दोनों मां बेटी को अनगिनत समस्याओं ने घेर लिया था,कयी लोगों का पैसा उन्हें देना था, जिसे देने का कोई जरिया उसके पास नहीं था।”यहां घर पर मत बैठो,जाओ कही से भी हमें पचास हजार रुपए लाकर दो”।

कामिनी सत्य प्रकाश जी को कोसते हुए बोली।”मैं कहां से अभी पैसे लाकर दूंगा,अभी तो मैं कही जा भी नहीं सकता?”सत्य प्रकाश जी अपनी मजबूरी बताते हुए बोले।”कही देश से बाहर जाने को नहीं कह रही हूं, जाकर किसी से भी लाकर पैसे दीजिए, तुम्हारी बेटी को काफी पैसे देने हैं,वह कौन देगा,किसे दे दिया आपने अपने आफिस में गोलमाल करके, हमें भी तो पता चले”।

कामिनी सत्य प्रकाश जी को घूरते हुए दांत पीसते हुए बोली।”कामिनी! तुम समझ क्यूं नहीं रही हो, मैं किससे पैसे लाकर दू,इस समय कोई नहीं देगा “। सत्य प्रकाश जी परेशान होते हुए बोले।

“मैं यह सब नहीं जानती,आप जाइए और बिना पैसे के घर पर मत आइयेगा, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा “। सत्य प्रकाश जी बाहर का रास्ता दिखाते हुए कामिनी वहां से चली गई। सत्य प्रकाश जी कुछ देर तक शांत खड़े रहें फिर चुपचाप घर से बाहर निकल गये।

दो दिन बीत चुके थे, सत्य प्रकाश जी घर वापस नहीं आए,वे अपना मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गए थे,कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी से ज्यादा पैसे न मिलने की चिंता थी,उन लोगों ने उन्हें ढूंढने का भी प्रयास नहीं किया।

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कापुरूष (भाग -3) –

कापुरूष (भाग -3 )- माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

#पुरुष 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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