कापुरूष (भाग -1) – माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

सुनीता काफी खुलें विचारों वाली लड़की थी,अमीर लड़कों से दोस्ती करना,पार्टियां करना रात भर घर से गायब रहना यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल था।उसे रोकने टोकने वाला कोई नहीं था, उसके हर काम में उसकी मां कामिनी उसका सहयोग करती थी, उसके पिता सत्य प्रकाश का अपनी पत्नी कामिनी व बेटी सुनीता पर कोई कन्ट्रोल नहीं था,वह अपनी पत्नी और बेटी से भयभीत रहते थे, वह थे तो पुरुष लेकिन वक्त और हालात ने उन्हें कापुरूष बनकर जीने के लिए मजबूर कर दिया था।

सत्य प्रकाश सरकारी विभाग में प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत थे,आफिस में उनका बड़ा मान सम्मान था,मगर अपने घर पर वह दशकों से अपनी पत्नी कामिनी के व्यवहार से दुखी रहते थे,उनकी इकलौती संतान उनकी बेटी सुनीता भी अपनी मां के ही नक्से कदम पर चलती थी,वह बस कहने के लिए वह सुनीता के पिता थे,

उनकी बेटी उनकी हर बात को अनसुना करती थी,वह तो बस अपनी मां कामिनी को ही सर्वोपरि मानती थी, सत्य प्रकाश जी के जीवन में घुटन बढ़ती जा रही थी,वह अपनी बेटी सुनीता के भविष्य को लेकर हरदम चिन्तित रहते थे, जिसके कदम भटकते जा रहें थे।

दोपहर के बारह बज रहे थे, सत्य प्रकाश जी अपने आफिस में गहरी चिंता में बैठे कुछ सोच रहे थे,उसी समय आफिस के पियून ने आकर उन्हें विभाग के उच्च अधिकारी प्रखर शर्मा जी के आने की सूचना दी,जो सत्य प्रकाश जी के उच्च अधिकारी एवं मित्र थे।

“कहों सत्य प्रकाश कैसे हो भाई?” प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश जी से हाथ मिलाकर बैठते हुए बोले।”ठीक है सर”। सत्य प्रकाश जी धीरे से बोले।”अरे सत्य प्रकाश तुम मेरा नाम भूल गए क्या?सर नहीं मैं तुम्हारा मित्र हूं, क्या यह भी बताना पड़ेगा?”प्रखर जी सत्य प्रकाश को हैरानी से देखते हुए बोले।

“माफ करना मित्र,मैं काफी परेशान रहता हूं,इसलिए सब कुछ भूलता जा रहा हूं “। सत्य प्रकाश उदास होते हुए बोले।”क्या हुआ तुम्हारी बेटी भाभी!घर पर सब ठीक है,या अन्य कोई परेशानी हो तो मुझे बताओं?”प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश जी से सहानभूति प्रकट करते हुए बोले।

पियून मेज पर चाय नाश्ता रखकर जा चुका था, कुछ देर खामोश रहने के बाद सत्य प्रकाश जी ने अपनी सारी समस्या अपने मित्र प्रखर शर्मा को विस्तार पूर्वक बताईं, और चिंता के गहरे सागर में डूब गए, प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश की आप बीती सुनकर गंभीर होने लगें,जिसकी समस्या काफी जटिल थी,वह कुछ देर तक सोचते रहे फिर बोले।

“सत्य प्रकाश! तुम्हें खुद को बदलना होगा,कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे, वरना बहुत देर हो जायेगी”। प्रखर शर्मा जी गंभीर होते हुए बोले।” बोलो प्रखर! मैं अपनी बेटी को सही रास्ते पर लाने के लिए हर कठिन व कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार हूं”।

सत्य प्रकाश प्रखर शर्मा की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए बोले। सत्य प्रकाश को हौसला देते हुए प्रखर शर्मा काफी देर तक कुछ समझाते रहे, और सत्य प्रकाश को सब कुछ ठीक हो जाने का भरोसा दिलाते हुए अपने बनाए हुए प्लान पर अमल करने के लिए सत्य प्रकाश को प्रोत्साहित करते हुए कुछ देर बाद आफिस से बाहर निकल गए।

दस दिन बीत चुके थे,शाम के सात बज रहे थे, सत्य प्रकाश घर आकर चुपचाप गुमसुम बैठे थे।”अरे क्या हुआ,काहे का शोक मना रहे हैं?”कामिनी सत्य प्रकाश को चिन्तित बैठा हुआ देखकर बोली। सत्य प्रकाश जी चुपचाप बैठे रहे उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

“काहे मुंह लटकाएं बैठे हो कुछ बोलेंगे?” कामिनी झल्लाते हुए बोली। “क्या बताऊं कामिनी! मेरे खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, मुझे निलंबित कर दिया गया है”। कहकर सत्य प्रकाश जी ने सिर झुका लिया।”क्या कहा आपने, आपको निलंबित कर दिया गया है,कही दिमाग तो नहीं खराब हो गया आपका,आप जैसा डरपोक आदमी भला क्या करेगा?

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कापुरूष (भाग -2) –

कापुरूष (भाग -2) – माता प्रसाद दुबे : Short Moral Stories in Hindi

#पुरुष 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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