कन्यादान – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

ओ. रामपति बहन, सभी दो दिनों के लिए हरिद्वार जा रहे हैं तू भी चल! नहीं बहन.. एक बार बेटी का कन्यादान कर दूं फिर गंगा नहाऊं! जवान बेटी को अकेली कैसे छोड़ कर जाऊं? एक बार बेटी ससुराल चल जाए फिर मेरी जिम्मेदारी खत्म!

बेटी की चिंता अकेली मां के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, ऐसा कहकर रामपति हमेशा ही कहीं भी जाने से मना कर देती! उसे हर समय अपनी बेटी की चिंता सताई रहती!  3 वर्ष की थी उसकी बेटी  गीता जब राम पति का पति स्वर्ग सुधार गया था,

अकेले मेहनत मजदूरी करके बड़ी मुश्किलों से अपनी बेटी को पाल  कर बड़ा किया था। रामपति चाहती थी की बेटी पढ़ाई में मन लगाए और अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, किंतु बेटी थी की पढ़ाई लिखाई में मन ही नहीं लगता था, उसे तो सजने और सवंरने से फुर्सत ही नहीं मिलती थी

और एक दिन बेटी ने गुल खिला ही दिए, एक दिन किसी आवारा लड़के के साथ भाग गई। कई जगह पता लगवाया पर उसका कहीं पता ना चला। बेटी की शादी के लिए राम पति ने पाई पाई जोड़कर गहने कपड़े बर्तन इकट्ठा किए थे, कई दिनों तक वह इस  सदमे में से बाहर नहीं आ पाई।

मेहनत से इकट्ठा किए हुए सामानों को देख-देख कर आंसू बहाती रहती। धीरे-धीरे वह अपनी दुनिया में वापस लौटने लगी, एक दिन उसके गांव में गरीब कन्याओं हेतु सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया तब राम पति ने ठान लिया कि वह सारा सामान उन गरीब कन्याओं के कन्यादान के लिए दे देगी

और उसने सच में ऐसा ही किया और आज उसे लग रहा था कि आज सही मायने में गंगा नहा ली, और उसने अपने कर्तव्य को पूरा कर दिया। जो वह अपनी बेटी के लिए ना कर पाई वह इतनी सारी बेटियों की खुशी बन गई। आज राम पति को लग रहा था कन्यादान से बड़ा और कोई सुख जीवन में नहीं है!

  हेमलता गुप्ता स्वरचित 

 मुहावरा प्रतियोगिता #गंगा नहाना

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