कामकाजी बहु की चाय पार्टी – श्वेता कौस्तुभ : Moral Stories in Hindi

सुमित्रा जी के बेटे की शादी को कुछ ही दिन बीते थे कि मोहल्ले में उनकी कामकाजी बहु के घमंडी होने की खबरे उड़ने लगी थी। सुमित्रा जी की बहु एक सरकारी बैंक में काम करती थी और उनका बेटा एक मल्टीनेशनल कंपनी में। सुमित्रा जी का बेटा अक्सर अपने काम से बाहर रहता था इसलिए वो कामकाजी पत्नी चाहता था ताकि उसकी अनुपस्थिति में सास बहू में ज्यादा खटपट न हो।

जब सुमित्रा जी के मायके पक्ष से यह रिश्ता आया तो उसने सिर्फ इतना देखा कि लड़की किस स्वभाव की है। बेटे की पसंद को देख सुमित्रा जी ने भी यह रिश्ता स्वीकार कर लिया हालांकि उनकी अपनी पसंद एक घरेलू लड़की थी। कविता, सुमित्रा जी की बहु घर के सभी काम जानती थी इसलिए सिवाय घर की साफ सफाई के बाकी के काम वो खुद किया करती थी।

चाहे वो बर्तन साफ करना हो या कपड़े या फिर खाना। मार्केट से राशन और सब्जी लाने से लेकर अपनी ननद पलक को कॉलेज छोड़ कर आने का काम भी कविता ही करती थी। पूरे दिन व्यस्त रहने की वजह से कविता को मोहल्ले की औरतों की मंडली में बैठने का मौका अब तक नहीं मिला था।इसी वजह से सभी कविता को घमड़ी समझने लगे थे।

इतनी अच्छी बहु पाकर सुमित्रा जी तो गदगद थी मगर मोहल्ले की खुसुर पुसुर से वो परेशान रहने लगी थी।

सुमित्रा जी समझ गई थी कि सबको बताकर वो इस परेशानी से छुटकारा नहीं पा सकती थी इसलिए वो कुछ ऐसा करना चाहती थी कि बिना बोले ही लोग उनकी बहु के सरल और मेहनती स्वभाव को जान सकें।
सुमित्रा जी की बड़ी बेटी की शादी एक एन आर आई से हुई थी। सुमित्रा जी की बेटी रक्षा अपने पति के साथ यू एस में बसी हुई थी

और जिंदगी बड़े ही मजे से जी रही थी। मां बेटी रोज वीडियो कॉल पर बात करते थे। यह भी उनकी बहु ने ही सुमित्रा जी को सिखाया था। एक दिन सुमित्रा जी की बेटी ने बताया कि उस दिन उसने किटी पार्टी रखी थी और वो उसकी तैयारी कर रही थी। यह बात सुनते ही सुमित्रा जी के मन में एक शानदार तरकीब सूझी।

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अगले दिन संडे था कविता हमेशा की तरह घर पर ही रहने वाली थी। अवकाश के दिन वो कहीं बाहर नहीं जाती थी बस घर पर आराम करती थी। सुमित्रा जी ने अपनी बेटी पलक को फोन पर ही अपना सारा प्लान बताया और उसको घर जल्दी वापस आने को कहा। बेटी के घर वापस आते ही मोहल्ले के उसी ग्रुप को जो बातें करने और बनाने में माहिर था अपने घर पर संडे चाय पार्टी के लिए आमंत्रित कर लिया।

बहु को उन्होंने फोन करके बता दिया कि कल शाम को मोहल्ले की औरतों के साथ चाय पार्टी है उसके लिए वो स्नैक्स आते वक्त लेती आए। कविता ने सिर्फ मेहमानो की संख्या पूछी और सास से चाय पार्टी का मेनू पूछा।
शाम को कविता लौटी तो उसके हाथ में पनीर और स्नैक्स बनाने का सामान था।

सुबह का नास्ता और दोपहर का लंच पूरा होने के बाद कविता स्नैक्स बनाने में जुट गई। पूरे दो घंटो की कड़ी मेहनत के बाद सब बन चुका था। अब बस मेहमानों का आना बाकी था। शाम के चार बज चुके थे कविता ड्राइंग रूम की साफ सफाई देखने गई तो देखा सुमित्रा जी और पलक मिल कर सारी साफ सफाई कर चुके थे।

कविता को देखकर सुमित्रा जी ने उसे कुछ देर आराम करके तैयार होने को बोला क्युकी सभी औरते शाम के छह बजे आने वाली थी। सुमित्रा जी की बात सुनकर कविता अपने रूम में जाकर आराम करने लगी मगर ठीक पांच बजे वो वापस उठ गई और किचन में जाकर सारी तैयारी पर एक बार ठीक से नजर डालकर तैयार होने चली गई।

शाम के साढ़े पांच बज चुके थे कविता चाय पार्टी के हिसाब से तैयार होकर ड्राइंग रूम में पहुंच चुकी थी।इधर सुमित्रा जी और पलक भी तैयार होना शुरू कर चुके थे। पौने छह  बजते ही मोहल्ले की औरतों ने आना शुरू कर दिया। कुल सात लोगो को सुमित्रा जी ने निमंत्रण दिया था। हालांकि टाइम छह बजे का था पर कौतुहलता की मारी सभी औरते छह बजे से पहले ही ड्राइंग रूम में आकर बैठ चुकी थी।

कविता ने सभी का स्वागत किया और वेलकम ड्रिंक सभी को दे दिया। पलक और सुमित्रा जी के आने से पहले ही सभी औरतें कविता से प्रभावित हो चुकी थी। सुमित्रा जी के आते ही कविता चाय बनाने किचन में चली गई पलक भी अपनी भाभी मदद करने उसके साथ किचन में पहुंच गई। समय पर चाय पार्टी शुरू हो गई जल्द ही तीन तरह की चाय पनीर पकोड़े , दो और स्नैक्स टेबल पर आ चुके थे।

सब कुछ बहुत ही स्वादिष्ट था। चाय के साथ चले बातचीत के सिलसिले में सुमित्रा जी ने कविता की मेहनत को सभी के सामने रख दिया। सभी औरतें कविता से पहले ही प्रभावित हो चुकी थी और उससे मिलने के बाद उसके सरल और मेहनती स्वभाव ने सबका मन मोह लिया।

मोहल्ले की खुसुर पुसुर अब चर्चा में बदल चुकी थी कविता अब सबकी चहेती बहु बन चुकी थी सब अब सुमित्रा जी की किस्मत को सरहाने लगे थे।सुमित्रा जी द्वारा आयोजित उनकी कामकाजी बहु की चाय पार्टी सफल हो चुकी थी।

दोस्तो मेरी इस मूल रचना पर अपने कीमती विचार अवश्य व्यक्त करें।
सधन्यवाद
आपकी अपनी
श्वेता कौस्तुभ

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