संध्या ने चीखते हुए कहा..”बस कर अंशिका ! कुछ भी बोलती रहती है, जब देखो तब चाचू की शिकायत करती रहती है । एक तो तेरे चाचू नहीं हैं कोई ,ऊपर से ये पवन चाचू तेरे पापा के ममेरे भाई ! हमारे पड़ोसी होने के साथ – साथ तुम्हें पढ़ाने में भी कितनी मदद करते हैं वरना सोच तू अच्छे से पढ़ाई में मन भी नहीं लगाती तो तेरे इतने अच्छे नम्बर कहाँ से आते ? अब तेरे मुँह से मैं एक भी शिकायत नहीं सुनूँगी । क्या हुआ जो तुझे छेड़ते हैं, चिढ़ाते हैं ।
अंशिका बोल ही रही थी कि “मम्मी ! मुझे ज्यादा नम्बर नहीं चाहिए , बस पवन चाचू से बोलो वो मुझे छेड़ें नहीं, मेरे पास आने की कोशिश न करें तो अच्छा होगा । अंशिका की ये बातें संध्या को सुनाई ही नहीं दी जैसे हवा में ही घूम कर रह गयी और तब तक संध्या कमरे से बाहर आकर रसोई में खाना बनाने लगी ।
संध्या और नमन की तेरह वर्षीय बेटी थी अंशिका ! नमन एक सरकारी विभाग में काम करता था और संध्या एक गृहणी थी जिसने अपनी बेटी की परवरिश के लिए अध्यापिका की जॉब छोड़ दी थी । नमन के मामा के घर की हालत दयनीय थी लेकिन पवन बहुत पढ़ा लिखा था और उसकी नौकरी नहीं लग पा रही थी ।
उसकी पढ़ाई और कुशाग्रता देखकर नमन ने फैसला लिया वो उसे अपने साथ दिल्ली में ले जाएगा ताकि अंशिका को भी अकेलापन महसूस न हो । पवन को नमन ने अपने पड़ोस में घर दिला दिया ये कहते हुए की खाना भाभी बनाएगी, तुम्हें बस अंशिका की पढ़ाई में मदद करना है ताकि वो आगे बढ़ सके और उसका मन लगा रहे ।
संध्या ने पड़ोस के घरों में बता दिया कि ट्यूशन की जरूरत हो तो मेरे देवर पवन ट्यूशन पढ़ाते हैं । कुल मिलाकर आठ बच्चे इकट्ठा हुए । पवन की नीयत नहीं अच्छी थी । जब ट्यूशन पढ़ने के लिए बच्चे आते तो पवन गन्दी नज़रों से अंशिका को देखता । छोटी थी अंशिका लेकिन समझ सकती थी कोई उसके साथ गलत करे तो ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
एक दिन संध्या बाहर घूमने के लिए तैयारी करने लगी तो पवन से कहा..”पवन ! अंशिका के साथ आप रहो , मुझे बाजार से कुछ जरूरी सामान लाना है ।क्यों बेकार में अंशिका को परेशान करूँ ? पवन को जैसे बिन मांगे मोती मिल गया हो । अंशिका सो ही रही थी कि मम्मी और चाचा की आवाज़ उसके कान में सुनाई दी ।
वह हड़बड़ा कर उठी और सीधे माँ के सीने से लग गयी । संध्या कुछ बोलती इससे पहले अंशिका के पापा नमन ऑफिस से आ चुके थे । अंशिका के सिर पर हाथ रखते हुए उन्होंने पूछा..”आज इतनी डरी सहमी क्यों हो बेटा , कुछ चाहिए मम्मी से क्या ? फिर खुद ही मुस्कुराते बोले..”मम्मी को जाने दो, मैं फ्रेश होकर आता हूँ फिर जहाँ तुम बोलोगी मैं ले जाऊँगा । आखिर तुम्हारा जन्मदिन भी तो आ रहा है ।
अंशिका के चेहरे पर जन्मदिन , उपहार किसी नाम से खुशी नहीं आयी तो नमन ने पूछा..”क्या हुआ बेटा ? एक महीने से देख रहा हूँ तुम कोई बात नहीं सुनती अपनी जिद पर अड़ी रहती हो । तब तक पवन ने आकर एक बड़ा सा चॉकलेट का पैकेट हाथों में अंशिका के थमा दिया तो अंशिका ने सीधे फेंक दिया और पापा के गले लगते हुए बोली..”पापा ! मुझे नहीं पढ़ना पवन अंकल से न मुझे उनका दिया कोई तोहफा चाहिए ।
अंशिका की हरकतें देखकर नमन ने कहा..”तुम बिल्कुल बिगड़ रही हो , ये कैसी हरकतें कर रही हो ? पवन ने पागल की तरह ज़ोर ज़ोर से हँसते हुए कहा..”गुस्साने की बात नहीं है भैया ! आप परेशान न हों, दरअसल बहुत पढ़ा दिया है आज मैंने आज इसलिए ये ऐसा कर रही है । नमन भी बेटी की आँखों में देख कर पढ़ना चाह रहा था पर वो पढ़ नहीं पाया । पवन की बात को ही सच मान बैठा ।
दो दिन बाद अंशिका का जन्मदिन था । घर के बड़े से लॉन को बड़ी सुंदरता से सजाया गया था । गुलाबी स्कर्ट- टॉप, गुलाबी बूट और गुलाबी हेयर बैंड में अंशिका बिल्कुल राजकुमारी लग रही थी । कुछ मेहमान आ चुके थे गाने और डी . जे की धुन पर सब थिरक रहे थे । अंशिका को अपने दोस्तों के बिना खाली खाली लग रहा था । बाहर बहुत शोर था तो उसने घर के अंदर जाकर फोन मिलाना चाहा तब तक बत्ती गुल हो गयी । लॉन में दो मिनट के इंतज़ार के बाद बत्ती तो आ गयी लेकिन घर की बत्ती अब भी गुल थी ।
अंशिका की दोस्त अंदर घुस ही रही थी कि उसे अंशिका के चीखने की आवाज़ आयी । उसने जाकर संध्या से बताया “आंटी ! अंशिका की आवाज़ आ रही है अंदर मगर वो मुझे नहीं दिख रही । स्नैक्स का प्लेट छोड़ हड़बड़ा कर संध्या अंदर आयी अब भी लाईट नहीं थी तो उसने मोबाइल का टोर्च देखा और चिल्लाते हुए “अंशिका..अंशिका ! अंदर गई ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अपनों में दीवार कौन? – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi
अंदर देखा तो उसे लगा कहीं डूब कर वो मर जाए पर उसने शांति से बात निपटाने को सोचा । पवन अंशिका के साथ कमरे में अकेला था । वैभवी को भेजकर संध्या ने नमन को बुलवाया । नमन अंदर आते हुए देखा एम सी बी नीचे की ओर है इसलिए बत्ती नहीं है । उसने तुरंत ऊपर किया तो लाइट आ गयी । जैसे ही वो कमरे में पहुँचा ज़ोर से पागलों की तरह चीखने लगी संध्या..”ये किस हैवान को पाल लिए नमन ? एक हैवान को मैं बैठाकर खिला रही थी । कितना भरोसा करेंगे आप, कितना दूसरों के लिए करेंगे ?
नमन का होंठ सूख रहा था पर वो समझ नहीं पा रहा था । नमन ने पूछा बोलो तो संध्या, क्या बात है ? संध्या ने अंशिका से कहा..”बेटा ! पहले तो पवन के दोनो गालों पर खींच के चाटा लगाओ । नमन को मानो काटो तो खून नहीं । वह समझ गया । अंशिका का उड़ा हुआ चेहरे की वजह वी भाप गया और उसने जमकर उसे पीटा, पूरी पार्टी की भीड़ अब कमरे में थी ।
नमन ने कहा..”तुझे दो रोटी कमाने के लिए लाया तूने मेरा ही घर उजड़ने को सोचा, निकल तू यहाँ से । संध्या की आंखों से अविरल आँसू बह रहे थे ।अंशिका ने भी खूब ज़ोर से चाटा मारा । मेहमान सब समझ चुके थे । नमन और संध्या आत्मग्लानि से घर उठे । पवन ने हाथ जोड़ कर कहा..”माफ कर दो भैया ! नमन और संध्या ने कहा..”ये कदम हमने शुरू से ही अंशिका की बात को समझ के उठाया होता तो ये # पश्चाताप के आँसू मेरी आँखों से नहीं गिरते ।
नमन कॉलर खींच कर पवन को दरवाज़े से बाहर करते हुए बोला..”ऐसा कलंकित रिश्ता मुझे नहीं चाहिए, तेरी हर सुविधा मैं बंद करूँगा । अच्छा होगा यहां से चुपचाप निकल जाओ और दरवाजा बंद कर दिया ।
नमन और संध्या ने प्यार से वैभवी का माथा चुम लिया। “थैंक्यू बेटा ! तुमने हमें नरक से निकाला ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#पश्चाताप के आँसू