कंलक लग जाता – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

राजन खोसला को स्टेज़ पर देख कर दीक्षा कहीं खो सी गई थी।वो अपने जीवन के 10 साल पहले के बीते समय में खो गई थी। तभी कानों में उसके आवाज आई दीक्षा भार्गव प्लीज़ स्टेज पर आएं । आपने ,(छोटी बच्चियों पर गलत निगाह रखने वाले पर क्या कार्रवाई हो )इस विषय पर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया है।कितनी खुश थी दीक्षा इस विषय में प्रथम स्थान पाकर जिसका अनुभव बहुत पहले उसको हो चुका था। लेकिन चीफ गेस्ट के रूप में राजन खोसला को देखकर उसे बहुत निराशा हुई।अब उसके नाम को बार बार पुकारा जा रहा था तो जाना ही पड़ेगा।प्रथम स्थान मिला था इस विषय पर क्योंकि उसने इस लेख में अपने जीवन का कड़वा सच जो लिखा था।

                   राजन खोसला उठें और र्टाफी दीक्षा को  दी और बड़े प्यार से दीक्षा के सिर पर हाथ फेरा। दीक्षा का मन राजन खोसला को देखकर वितृष्णा से भर गया। दीक्षा को उनका स्पर्श कांटों समान लग रहा था । दीक्षा को ऐसा लग रहा था घड़ों पानी अपने ऊपर डाल कर राजन खोसला के स्पर्श को कतरा कतरा बहा दे ।

                    दीक्षा बिस्तर पर लेटी हुई अपने साथ  दस साल पहले हुई घटना में खो गई ।राजन खोसला दीक्षा के पापा रमन के दोस्त थे । काफी पैसे वाले थे राजन,राजन के पिता जी की फैक्ट्री चलती थी । जिसमें राजन मैनेजर के तौर पर सारा कामकाज देखते थे। दीक्षा के पापा किसी प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। दोनों में अच्छी दोस्ती थी।राजन का रमन के घर पर बराबर आना-जाना था। शादी हो जाने पर दोनों दोस्तों में पारिवारिक संबंध भी हो गए थे।राजन के दो बच्चे थे दोनों बेटे थे और रमन को सिर्फ एक बेटी थी दीक्षा।हंस खेलकर दोनों परिवारों के बच्चे साथ साथ बड़े हो रहे थे ।अब दीक्षा आठ साल की पूरी हो गई थी ।राजन जब भी घर आते दीक्षा को बहुत प्यार करते और बोलते मुझे तो बेटी नहीं दी ईश्वर ने लेकिन मुझे बेटियां बहुत पसंद है । कोई बात नहीं रमन मैं और तू अलग थोड़े है तेरी बेटी मेरी बेटी ।

                  बेटी दीक्षा के प्रति इतना प्यार देखकर रमन और उनकी पत्नी रश्मि बहुत खुश होते थे ।राजन और रमन दोनों शराब के भी आदि थे । अक्सर बैठक होती थीं दोनों की कभी राजन के घर तो कभी रमन के घर।जब रमन के घर होती थी तो राजन दीक्षा को अपने पास ही बैठाले रहते और जब शराब थोड़ी चढ़ जाती तो दीक्षा को गोदी में बैठा लेते और बार बार उसके गालों पर चुम्बन करते मेरी प्यारी बेटी ,तू तो मेरी जान है ऐसा बोलते। चूंकि दोनों दोस्तों में गहरे पारिवारिक संबंध थे तो रमन और रश्मि को कुछ ग़लत लगता नहीं था।

                      एक बार दीक्षा की मौसी घर आई हुई थी।घर पर दोनों राजन और‌ रमन और दीक्षा के मौसा जी भी सब बैठे शराब का सेवन कर रहे थे तो राजन बार बार दीक्षा को बुला रहे थे बेटा इधर आओ मेरे पास बैठो ।पर दीक्षा अब थोड़ी बड़ी हो रही थी तो उसे राजन अंकल की गोद में बैठने में  थोड़ी झिझक आने लगी थी।और फिर गोद में बैठा कर कसकर पकड़कर उसके गाल पर चुम्बन करने लगते। अचानक अंदर से रश्मि की बहन नयना बाहर आई तो देखा राजन दीक्षा को कसकर पकड़े हुए है और गलत तरीके से छू भी रहे है ।नयना तुरंत अन्दर गई और रश्मि को बुलाकर कहने लगी रश्मि तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है कि दीक्षा अब छोटी बच्ची नहीं है । रमन के दोस्त उसको गोदी में बैठाए है और चुंबन ले रहे हैं और गलत तरीके से छू भी रहे हैं । दीक्षा कितना  अपने को बेबस समझ रही है ।नहीं दीदी उनके बेटी नहीं है न इसलिए वो दीक्षा को बहुत प्यार करते हैं रश्मि बोली । पट्टी बंधी है तुम्हारी आंख पर रश्मि। आंखें खोलो नहीं तो बहुत पछताओगी ।जब कभी कुछ अनहोनी हो जाएगी।दूर रखों दीक्षा को उनसे एक बार बोल दो कि अब दीक्षा बड़ी हो रही है दूर से बात करें। दीक्षा बोली हां मौसी मुझे भी अच्छा नहीं लगता अंकल इतनी जोर से पकड़ लेते हैं और मेरे गालों पर चुम्बन देने लगते हैं शराब की बू आती है।मत जाया कर बेटा उनके पास बुलाया करें तो कोई बहाना बना दिया कर तेरी मां को तो कुछ नजर नहीं आ रहा है।

                     आज सुबह के दस बजे थे तभी रमन के पास फोन आया कि चाचा जी नहीं रहे जो उसी शहर में रहते थे जहां रमन रहते थे। दीक्षा के पेपर चल रहे थे ‌‌‌आजकल स्कूल से जल्दी आ जाती थी तो रश्मि बोली बेटा घर पर रहना श्यामा आए तो घर के काम करा लेना और फिर दरवाजा भी बंद कर लेना मैं और पापा चाचा जी के यहां जा रहे हैं आंतें है थोड़ी देर में। ठीक है मम्मी रश्मि और रमन चले गए श्यामा भी काम करके जा चुकी थी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌दीक्षा जैसे ही दरवाजा बंद करने गई तो देखा राजन अंकल आ रहे हैं ,अरे बेटा कैसी है ठीक हूं अंकल । लेकिन मम्मी पापा तो है नहीं अंकल वो चाचा जी नहीं रहे तो वहां गए हैं । अच्छा मेरी बेटी तो है आज उसी से बात करते हैं।राजन की आंखों में शरारत तैर गई और वो अंदर आंके सोफे पर बैठ गए।

         आए हुए दस मिनट ही हुए थे कि राजन बोले बेटा जरा पानी ले आना । दीक्षा पानी लेने अंदर गई तो राजन ने धीरे से दरवाज़े की कुंडी बंद की और दीक्षा के पीछे पीछे अंदर पहुंच गए और चुपके से रसोई में खड़े हो गए दीक्षा जब पानी का गिलास भरकर आगे आने को हुईं तो कातिलाना हंसी हंसते हुए राजन ने दीक्षा को कसकर पकड़ लिया । दीक्षा चीखने लगी छोड़ो मुझे अंकल,मैं पापा से आपकी शिकायत करूंगी । लेकिन राजन उसे पकड़कर उसके कपड़ों से छेड़छाड़ करने लगा । दीक्षा छोड़ो, छोड़ो चिल्ला रही थी ‌‌‌इस  बीच गिलास का पानी नीचे गिर गया और राजन का पैर थोड़ा फिसल गया । दीक्षा की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गई और वो उठकर बाहर भाग खड़ी हुई ।और बाहर बैठकर रोने लगी।

                 राजन् थोड़ा संभला और वहां से भाग लेने में ही अपनी भलाई समझी। थोड़ी देर में रश्मि और रमन भी आ गाए । दीक्षा रश्मि को पकड़कर रोने लगी क्या हुआ बेटा क्यों रो रही हो और ये तुम्हारे कपड़े क्यों गीले है दीक्षा बहुत घबराई हुई थी।वो मम्मी राजन अंकल क्या राजन अंकल उन्होंने मेरे को कसकर पकड़ लिया था और वो मेरे कपड़े उतार रहे थे । रश्मि और राजन दोनों सकते में आ गए।रमन बोले ये क्या कर दिया राजन इतना बड़ा विश्वासघात तुम दोस्त थे मेरे परिवार जैसे ही थे हम दोनों ।आज से और अभी से उससे सारे रिश्ते खत्म मेरे घर के दरवाजे बंद हो गए उसके लिए । इतना बड़ा धोखा । क्या होता आज मेरी बेटी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहती कितना बड़ा कलंक लग जाता उसके चरित्र पर । रमन और रश्मि ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि आज से अभी से राजन से सबकुछ खत्म।   

                    राजन भी समझ गया था कि दीक्षा ने सबकुछ रमन को बता दिया होगा अब वो किस मुंह से रमन के घर जाएगा । इसलिए राजन ने स्वयं ही जाना छोड़ दिया।

               आज रश्मि के पास दीदी नयना का फोन आया तो रश्मि रोने लगी अरे क्या हुआ रश्मि रो क्यों रही हो दी आज बहुत बड़ा कलंक लगने से रह गया आप ठीक कहती थी राजन अच्छा आदमी नहीं था वो दीक्षा पर गलत नजर रखता था । फिर रश्मि ने वो सब बताया जो कुछ हुआ था।ये सच बात है रश्मि जिसपर हम बहुत विश्वास करते हैं वहीं हमें धोखा देते हैं । आगे से ध्यान रखना दीक्षा बड़ी हो रही है अब । हां दीदी।

           शहर के सबसे रूतबे दार और रईस लोगों में राजन की गिनती होती है। लेकिन उनकी गंदी नीयत और गंदी मानसिकता के बारे में कोई नहीं जानता।आज जब स्टेज पर दीक्षा ने राजन को देखा तो चलचित्र की तरह सबकुछ उसके आंखों के सामने घूम गया। दीक्षा सोंचने लगी ऊपर से उजले दिखने वाले लोग अंदर से कितने काले होते हैं। दीक्षा मन ही मन सोचने लगी किसी भी बेटी के साथ बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो क्या वो कभी भूल सकती है ।शायद नहीं ताउम्र याद रहता है।

         दोस्तों किसी के भी ऊपर जरूरत से ज्यादा विश्वास न करें चाहे अपना हो चाहे पराया। सबसे ज्यादा वही धोखा मिलता है जहां जरूरत से ज्यादा विश्वास हो। ध्यान रखें अपने बच्चों का ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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