कलंक – के कामेश्वरी   : Moral Stories in Hindi

नमन का फोन आया है कि माँ गुजर गई है । मनन ने बात सुनकर बिना कुछ कहे फोन रख दिया । कार ड्राइव करते हुए ही पिहू ने पूछा कि किसका फ़ोन था ।

नमन का फोन है । कह रहा था कि माँ चल बसी है एक बार अंतिम संस्कार के लिए आ जाओ ।

पिहू ने कहा कि देखो मनन मुझे मालूम है कि शादी के पहले ही तुमने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हारी बीती ज़िंदगी के बारे में कुछ ना पूछूँ इसलिए मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं पूछा है और ना ही आज पूछूँगी लेकिन नमन ने जब बताया है कि माँ नहीं रहीं हैं तो एक बार जाकर देख आते हैं ।

मनन अपने सर को दोनों हाथों से दबाते हुए कहता है कि जब भी इस औरत के बारे में सोचता हूँ तो मेरा सर दुखने लगता है इसलिए मैं उसके बारे में सोचना भी पसंद नहीं करता हूँ ।

पिहू ने कहा कि मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगी परंतु मेरे ख़्याल से तुम्हें जाना चाहिए फिर आगे तुम जानो । मनन ने कहा कि यह सही है कि मैंने तुम्हें मना किया था मेरी बीती बातों को पूछने के लिए लेकिन आज मैं तुम्हें सब बता देता हूँ शायद तब मेरे दिल का बोझ कम हो जाएगा ।

जब मैं छठवीं कक्षा में पढ़ता था तब मेरा छोटा भाई दूसरी कक्षा में पढ़ रहा था ।

मेरे पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे । थोड़ी सी तनख़्वाह में भी हम बहुत खुश थे और आराम से एक गाँव में रहते थे ।

एक दिन ऑफिस से आते समय उनका एक्सिडेंट हो गया था और उनकी मृत्यु हो गई थी । हमारे नाना के घर से या हमारे दादा के घर से हमें कोई मदद नहीं मिली थी ।

माँ ने ही हिम्मत करके पिताजी के आए हुए पैसों से कुछ महीनों तक घर चलाया था । हमारे ही स्कूल के एक मास्टर जी थे जिनका नाम श्यामसुन्दर जी था । उन्होंने माँ को बच्चों सहित अपने घर में रहने के लिए कहा बिना शादी के वह उनके घर में नहीं रह सकती हैं । इसलिए उन दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर ली थी ।

स्कूल में मुझे लोग चिढ़ाने लगे थे । यह मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया था तो मैं एक दिन बिना किसी को बताए घर से भाग निकला । उस दिन के बाद मैंने घर की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा ।

मैं एक घर में काम करने लगा था । उनके बच्चों की किताबों को लेकर उन्हें पढ़ा देता था छोटे का होमवर्क करा देता था जिसे देख उन्होंने एक दिन मुझसे कहा मैं तुम्हें पढ़ने के लिए स्कूल भेजूँगा तुम पढ़ोगे क्या ?

मैं पढ़ने के लिए तैयार हो गया । उस दिन से मैंने पढ़ाई पर ध्यान दिया और उस घर के मालिक के कारण मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली और एक कंपनी में नौकरी करने लगा ।

आज भी मेरे मन में यह बात बैठ गई है कि माँ ने मास्टर जी से शादी करके खुद तो कलंकित हो गई थी और उस कलंक के दाग ने हमें भी नहीं छोड़ा है ।

इसलिए मैं उनके बारे में सोचना नहीं चाहता हूँ । लेकिन भाई के साथ मेरी बातचीत चलती रहती है । वह नए पिताजी के साथ मिलकर रहने लगा वह छोटा सा था इसलिए एडजस्ट हो गया था। मैं हमेशा डिप्रेशन में ही रहता था तुम्हारे आने के बाद मेरी ज़िंदगी में बदलाव आया है ।

 तुम्हारे साथ मैं बहुत खुश हूँ और मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरी बीती बातों का असर हमारे शादी शुदा रिश्ते पर पड़े ।

अब तुम सब कुछ जान गई हो तो चलो गाँव जाते हैं । पिहू ने ही ड्राइविंग को सँभाल लिया था मनन रिलेक्स होकर आँखें बंद करके बैठा हुआ था ।

वे लोग गाँव के अंदर पहुँचते ही मनन ने आँखें खोली और आसपास देखने लगा था । पूरा गाँव बदल गया था । इनकी गाड़ी जैसे ही घर के पास पहुँची सारे लोग उनके पास आकर कहने लगे थे कि अच्छा हुआ आप लोग आ गए हैं । वह आपको बहुत याद करती थी । आपका इंतज़ार करते हुए ही उनकी मौत हो गई है ।

मनन सोच रहा था कि मैं माँ को बुरा मानता था लेकिन यहाँ पूरा गाँव उनकी तारीफ़ कर रहा है ।

मनन माँ के पार्थिव शरीर को अपलक देखते हुए खड़ा रहा उसकी आँखों से एक बूँद आँसू भी नहीं गिरा था । भाई उसके गले लगकर रो रहा था और कह रहा था कि भाई पिताजी भी तुम्हारे बारे में रोज याद करके आँसू बहाते थे ।

मनन ने कुछ कहा नहीं और सारे कार्यक्रम विधिवत पूरा किया । तेरहवीं ख़त्म करके वह वापस जाने लगा था तो नमन ने कहा कि भाई पिताजी से भी मिल लो ना ।

मनन ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं और बाहर की तरफ़ जाने लगा तो नमन उसके पीछे भागकर आया और कहने लगा कि पिताजी ने तुम्हारे नाम पर पत्र बहुत पहले ही लिख कर रखा है । उन्होंने कहा कि जब भी तुम आओगे यह पत्र तुम्हें दे दूँ ।  इसलिए इस पत्र को पढ़ लो ।

मनन ने पत्र को अपने हाथों में ले लिया और कार की तरफ़ बढ़ गया । कार में बैठकर थोड़ी दूर जाने के बाद पिहू के हाथ में पत्र रखते हुए कहा कि तुम ही इसे पढ़ दो मेरी हिम्मत नहीं है मैं कार ड्राइव कर दूँगा ।

पिहू ने पत्र पढ़ना शुरू किया मनन बेटा मुझे मालूम है कि तुम मुझे पसंद नहीं करते हो । मेरी बात सुनना भी नहीं चाहते हो इसलिए मैं लिखकर तुम्हें जो भी हुआ बताना चाहता था। लेकिन तुम बिना किसी को बताए घर से भाग गए थे ।

हम दोनों तुम्हारा इंतज़ार करते रहे पर तुम नहीं आए । मैंने यह पत्र बहुत पहले ही लिख कर रखा था और नमन से कहा था कि जब भी तुम आओगे तुम तक यह पत्र पहुँचा दें ।

बेटा मैं अब विषय पर आता हूँ ।

तुम्हें याद होगा तुम्हारे पिताजी के गुजर जाने के बाद तुम्हारे दादा या नाना की तरफ़ से किसी ने भी पीछे मुड़कर तुम लोगों की तरफ़ नहीं देखा था ।

माँ ने ही तुम लोगों की देखभाल की थी । तुम लोग बहुत छोटे थे तुम दोनों को ख़बर नहीं है कि एक अकेली औरत को दुनिया चैन से जीने नहीं देती है । एक रात मैं अपना काम ख़त्म करके घर आ रहा था तो मुझे तुम्हारे घर से चीखने की आवाज़ें सुनाई दी तो मैं भाग कर देखने के लिए गया था कि क्या हुआ होगा देखा तो हमारे गाँव का सरपंच तुम्हारी माँ की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहा था ।

मैं जैसे ही दरवाज़ा खोलकर अंदर गया तो मुझे देखते ही वहाँ से भाग निकला और दूसरे दिन पूरे गाँव में यह बात फैला दी थी कि मैं तुम्हारी माँ की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहा था ।

गाँव में सब ने माँ के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया था कि पति के मरते ही दूसरे मर्दों को रिझा रही है । इनकी बातों को सुनकर सहन ना करने की वजह से उसने आत्महत्या करनी चाही ।

मैंने उन्हें मुझसे शादी करने के लिए राजी किया था ताकि लोगों का मुँह बंद कर सके । तुम्हारी माँ ने मुझसे शादी मजबूरी में की थी ।

एक बात बताऊँ पाँच साल पहले मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ कार में वापस आ रहा था कि हमारा बहुत बड़ा एक्सिडेंट हुआ था। जिसमें वे दोनों तो गुजर गए थे और मेरी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी । मैं और तुम्हारी माँ सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता निभा रहे थे । हम दोनों के बीच कोई और रिश्ता नहीं था क्योंकि मैं उसके लायक़ ही नहीं हूँ ।

पत्र के पूरा होते ही मैंने पिहू से वापस गाँव की तरफ़ चलने के लिए कहा और माँ की चिता के पास बैठकर रोने लगा । उसी समय पिताजी के एक दोस्त वहाँ पहुँचे और मुझसे कहा कि रोने से कोई फ़ायदा नहीं है । तुम चाहो तो प्रायश्चित करने के बहुत से तरीक़े हैं ।

मुझे उनका इशारा समझ में आया । मैं पिताजी के पास जाकर उनसे माफी माँगी और उनको अपने घर लेकर चला गया । उनकी इस तरह से देखभाल की थी कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए हैं और मेरी बेटी के साथ खेलते हुए प्रसन्न हैं । मैं भी खुश हूँ कि अपनी गलती को मैंने इस जन्म में ही सुधार लिया है ।

के कामेश्वरी

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