“सुधा! तुमने ध्यान दिया?”
“क्या?”
“अपना बंटी कितना बदल गया है!”
पहली बार अपनी पत्नी सुधा संग बलिया से बेंगलुरु बेटा-बहू से मिलने आए चंदेश्वर ने अपने मन की हलचल साझा किया।
“आपने सही कहा जी! मैं भी कल से यही महसूस कर रही हूंँ कि कितनी जल्द समझदार हो गया है अपना नटखट बंटी।”
सुधा को याद है, बचपन में बंटी बहुत जिद्दी हुआ करता था और इसी वजह से उन्हें उसकी हर बात माननी पड़ती थी। उन्हें उसकी हर बात मानने की आदत भी पड़ गई थी।
इंजीनियरिंग करने के बाद बंटी की एमबीए करने की जिद हो या फिर अपनी पसंद की लड़की से विवाह करने कि, उन्होंने खुशी-खुशी मान ली थी।
“लेकिन मुझे उसकी एक बात अच्छी नहीं लगी!”
चंदेश्वर अब असल मुद्दे पर आए।
“कौन सी बात जी?”
सुधा ने अपने दुखते घुटनों पर दर्द निवारक तेल मलते हुए पति से पूछ लिया।
“उसका बहू के साथ रसोई में जाकर खाना पकाना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।”
पत्नी के रहते रसोई में जाकर कभी एक गिलास पानी भी अपने हाथ से लेकर ना पीने वाले पति के मन की पीड़ा सुधा बखूबी समझ गई।
“लेकिन इसमें बुरा क्या है जी?”
“अरे भई! जब रसोई में कलछुल मौजूद हो तो फिर अपना खुद का हाथ जलाने की क्या जरूरत? यह तो सरासर बेवकूफी है।”
“यह बात आपने सही कहा! लेकिन यहां मामला अलग है।” सुधा मुस्कुराई।
“क्या अलग है? जरा मुझे भी तो पता चले!”
“असल में आपकी माता जी ने आपका ब्याह कलछुल से करवाया था! लेकिन हमारे बेटे ने ब्याह अपनी पसंद की लड़की से किया है,…कलछुल से नही!”
#कलछुल / लघुकथा
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)