कैसी मां हो तुम – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

शनिवार के साप्ताहिक बाजार से सरिता अपनी सास की मनमसंद सब्जियां खरीद लाई थी।क्रिसमस की इस बार लंबी छुट्टी पड़ी थी।सासू मां की खुराक बहुत ही कम थी,जीभ पर भी लगाम लगा कर रखतीं थीं वह।रोज़ तो सरिता सुबह बनाकर जाती थी और काम वाली दीदी समय पर गर्म करके जतन से देती थी।

सरिता जानती थी,मां कभी भी मुंह से कुछ अलग से नहीं मांगेगी ।ना अचार ना पापड़ और ना ही सलाद,उन्हें खाने के साथ कुछ भी अलग से खाना पसंद नहीं था।

छुट्टी के दिन पारंपरिक सब्जियां जब बनाती सरिता तो,मां बड़े शौक से खातीं।तीस साल से,जब से बहू बनकर आई है सरिता ,मां को कभी भी खाने में नुस्ख निकालते नहीं देखा।

आज भी रविवार को भांजी, मिर्ची,और बाकी सब्जियों की डंडियां तोड़ -तोड़कर रख रहीं थीं,और कह रहीं थीं”बहू, अब मटर खाया नहीं जाता।एक दिन पीसकर कचौड़ी बना कर देना तो।लौकी का सूक्तों भी बनाना छुट्टियों में।गर्म दाल के साथ बैंगन फ्राई हो ,तो मुझे कुछ और नहीं चाहिए।”

सुधा ने गरम होते हुए कहा”कहां खाती हैं आजकल आप ठीक से खाना?एक करती चांवल में ही पेट भर जाता है आपका। इंसुलिन लेती हैं पता है ना!कम खाने से शुगर लो हो जाएगा,तो बस कहानी ख़त्म।”

वह शांत रहती और हमेशा कहतीं कि आजकल बहुत ज्यादा खा रहीं हूं।सरिता की हर बात को हंसकर टाल देतीं।आज शाम को कचौरियों के लिए मटर उबालकर मसाला तैयार ही कर रही थी,कि छोटी ननद का फोन आया”भाभी ,बड़े जीजाजी नहीं रहे।”

सरिता के पति की छोटी बहन थी रमा।उसके पति इस घर के बड़े और लाड़ले दामाद थे।मां तो अपने दामाद को बेटा ही मानती थी।कैसे कहें सरिता उनसे इतने बड़े दुख की बात।उन्हें इतनी ठंड में अकेले छोड़कर जा भी नहीं सकती,और ना उन्हें ले जा सकती।हार कर बेटे को भेज दिया।मन बहुत खराब हो रहा था।ऐसे समय में भाई-बहन का होना बहुत जरूरी होता है।भाई तो रहा नहीं,भाभी भी नहीं जा पा रही मां की वजह से।

रात को रोटी बनाई मां के लिए। कचौड़ियां बनाने का बिल्कुल भी मन नहीं हुआ।खाते समय मां ने अप्रत्याशित रूप से पूछा”अरे, कचौड़ियां नहीं‌ बनाया क्यों?”सरिता ने झूठ बोल दिया कि मन नहीं किया। वो पहली बार गरम हुई सरिता ,

पर और कहा”देखो बहू,हमारी आत्मा में ही परमात्मा का निवास है।मैं तो ठहरी बूढ़ी,पर तुम तो अभी जवान हो।मन की भी ख़ुदा होती है।इच्छाओं को‌ नहीं मारना चाहिए।”।सरिता ननदोई की आकस्मिक मौत से दुखी थी ,और मां को बता भी नहीं पा‌‌ रही थी।थककर कचौड़ी बेलने को कहा बाई को।

बाई‌ के  हांथों चाय भेजा‌ उन्हें तो उन्होंने बाई को‌ समझाया”श्यामा क्या हुआ है रे दीदी को?कोई बुरी खबर आई है क्या?कल से बहुत परेशान हैं।कुछ बोल भी नहीं‌ रही।नाती भी रात को‌ बाइरोड निकल गया।कल से इसने कुछ नहीं खाया है।बुरी खबर होगी तो‌ तेरह दिन‌ तक कुछ अच्छा नहीं खा‌ पाएगी।

इसीलिए आज मैंने कचौड़ियां बनवाई।कुछ अच्छा तो पड़े बहू के पेट में,पता नहीं क्या दुख आए ने सिरे से।”श्यामा ने आकर सरिता को बताया तो सरिता मां के पास जाकर उन्हें सीने से लगाकर रोने लगी।”मां तुम्हारा बड़ा दामाद नहीं रहा।

कल ही उसकी अटैक से मौत हुई।कल तुम्हें बता नहीं पाई।क्या करोगी जाओगी क्या?बेटे के साथ या मेरे साथ चलो।”

उन्होंने ठंडे स्वर में कहा”मूझे ले जाना इतना भी आसान नहीं।पैर टूटा है,ऊपर चढ़ नहीं पाऊंगीं।मुझे लेकर सब हैरान‌ हो जाएंगे।तुम चले जाना।मेरी चिंता मत करना।”सरिता ने कहा”आपके बोलने‌ सेही मेरी चिंता खत्म कहां होंगी।आपको छोड़कर कैसे जा पाऊंगीं मैं।”

आज इतने दुख के समय भी आपकी जिद से कचौड़ी बनाना पड़ा।खाते ही नहीं बन पा रहा।सुधा बड़बड़ा रही थी और गरम हो रही थी उन पर। उन्होंने अपना हांथ सुधा के सर पर रखा और बोलीं”मुझ जैसी अभागन कौन होगी।पति चला गया,इकलौता जवान बेटा चला गया और अब दामाद चला गया।मेरी वजह से तुम भी नहीं जा पा रही।अपने -अपने हिस्से का दुख सभी को झेलना पड़ता है।तुम्हारे दुख में सिर्फ मैं ही थी तुम्हारे पास।तुमने अपना दुख म

भुलाकर मेरी सेवा की।अब मेरी बेटी के दुख में दुखी होकर खाना छोड़ने से जाने वाला वापस तो नहीं आएगा ना?मुझे तुम्हारी चिंता है।”

सरिता अवाक होकर पूछी”कैसी मां हो तुम?अपनी बेटी का दुख नहीं दिखता तुम्हें?

वो भी सहज होकर बोलीं”मुझे अब सबसे पहले अपनी बहू का दुख दिखता है,क्योंकि सिर्फ उसे अपनी मां के दुख की परवाह है।

शुभ्रा बैनर्जी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!