” कहीं घूमने चलें राधिका ? ” – सीमा वर्मा

 “क्या सोचा है आपने इस बार राधिका  ? “

 — ” किस बारे में सुधीर,  मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है “

सुबह से ही घर की देखभाल में व्यस्त राधिका कराहती हुई बोली।

यों इस घर में  काम करने वाले ‘ हेल्परों ‘  की कमी नहीं है पर सभी हेल्पर अपने -अपने काम सही समय और सुव्यवस्थित ढ़ंग से करें इसकी जिम्मेदारी रधिका जी पर ही है।

इतने बड़े घर में कब कौन कामवाली आ रही है और किसके जाने का वक्त हो गया है यह सब सूचना वे उन्हें ही दे कर जाती हैं।

जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ी चली जा रही है इस बीच सुधीर एवं राधिका को यह पता ही नहीं चला है कि कब शादी के पूरे चालीस साल निकल गए।




किस्मत उन पर इस कदर मेहरबान हुई कि

इन बीतते सालों में  कितने सावन साथ- साथ देखते हुए अब वे दादा- दादी बन चुके हैं।  परिवार की तादाद खुले दिल से बढ़ी है।

एक -एक करके वे दो से बढ़कर बारह हो गये हैं। 

सुधा जी के तो सालों का सपना पूरा हो गया है। लेकिन सुधीर के सपने पूरे हो कर के भी आंखों में घर नहीं कर पाए हैं।

वे घूमने फिरने के शौकीन हैं।  नौकरी में रहते हुए उनका अक्सर टूर पर शहर से बाहर आना -जाना होता रहता था।

लेकिन राधिका  घर की जरूरतों का हवाला देते हुए उनके साथ कभी भी नहीं आती है। 

लेकिन अब सुधीर का पत्नी का इस तरह घूमने -फिरने से मुख मोड़ कर रहना बेहद अखरता है। वे चाहते हैं अन्य दूसरे रिटायर्ड सहकर्मियों की तरह ही वे भी सपत्नीक देशाटन के आनंद उठाएं।

उनकी सरकारी नौकरी थी। पेंशन मिलने की वजह से वे आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं है।




राधिका घर के कामों से फुर्सत पा कर ही उनके साथ बैठ पाती है।

उसका घर के काम से इस तरह तालमेल बिठा कर चलना अब भावनात्मक स्तर पर सुधीर की आंखों में खटकने लगा है।

वे कितनी दफा राधिका जी को समझा चुके हैं ,

” जब बच्चे छोटे थे, तब उनको आपकी जरुरत थी। लेकिन बड़े होते बच्चों की जरुरतें भी बड़ी होती जा रही है राधिका, आप बेवजह उनके पीछे खुद को थकाती रहती हैं “

” आज सुबह पार्क में  मित्रों से बात हुई है सब मिल कर चार धाम यात्रा पर जा रहे हैं। “

” हां तो ? आप क्या चाहते हैं ?”




” अभी बस में दो सीट खाली है मैं उसे हम दोनो के लिए रिजर्व कराने जा रहा हूँ “

” नहीं जी … !

इस बार संभव नहीं हो पाएगा सुधीर जी, बच्चों ने अपने गोवा घूमने जाने की प्लानिंग कर रखी है “

“ओहृ… ! ‌

फिर हमारे इस प्रोग्राम का क्या होगा ? इतने दिनों बाद तो अवसर मिला है” 

” नाती-पोतों से भरे घर में जब सबका खयाल रखने वाली उनकी मम्मियां है तो क्या हमें इतनी भी स्वतंत्रता नहीं कि अपनी मर्जी से घूम फिर सकें “

विक्षुब्ध हो उठे हैं सुधीर !

” राधिका जी, समझने की कोशिश करिए। बच्चे हमेशा अपनी जरुरतों का ध्यान रखते हैं उनमें कहीं भी हमारी जरूरतों की कोई जगह नहीं होती है “

” ये आप कैसी बात कर रहे हैं सुधीर ?

जरा धीरे बोलें,  बच्चे सुन लेंगे, अब वे चाहे जैसे भी हों हमें बुढापा तो इन्हीं के सहारे काटना है ,

नहीं सुधीर, पहले बच्चे घूम आएं फिर हम चलेंगे।

” अभी सारी उम्र पड़ी है , कहाँ भागी जा रही है ? ” राधिका कुछ तुनक कर बोली।  



— सुधीर हताशा से भर कर बोले ,

” यही तो मैं कब से समझाने का प्रयास रहा हूँ राधिका जी,

भागती हुई उम्र कहाँ इन्तजार करती है किसी का ?  ये तुमने किन बेड़ियों में बाँध रखा है खुद को तोड़ डालो इन्हें ,

नहीं तो मुझको ही खुल कर विरोध करना पड़ेगा इन हालातों का ”  

” मैं पूछता हूँ हमारे हाथ क्या सिर्फ इन्हें आशीर्वाद देनें और इनके घर की रखवाली करने के लिए बने हैं ?

विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए हमें अभी तो वक्त मिला है खुद के लिए और आप उसे ही गंवा देना चाहती हैं राधिका ? “



सुधीर जी को इतना भावुक होते पहले कभी नहीं देखा है राधिका ने,

 वह हैरान रह गई… तुरंत विचलित होते अपना सिर सुधीर के चौड़े कंधे पर टिकाते हुए,

” हां जी , सही कह रहे हो , यात्रा वाली बस में सीट रिजर्व करवा ही लो भागती हुई उम्र कहां किसी का इंतजार करती है। “

प्रिय पाठकों आपको राधिका एवं सुधीर जी का परिवार से इस तरह का विरोध करना कैसा लगा ?

अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देंगे इससे हमारी लेखनी का मनोबल बढ़ता है।

#विरोध 

सीमा वर्मा / स्वलिखित /नोएडा

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