काहे की अकड़!!- लतिका श्रीवास्तव  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :कैसी बात कर रहे हैं दहेज !!राम भजिए दहेज लेने देने के जमाने लद गए आपने हमें क्या ऐसा गया गुजरा समझा है कि हम अपने इकलौते लायक बेटे चिन्मय का सौदा करेंगे!!आप हमारे घर आए हैं लेकिन माखन प्रसाद जी आपने तो हमें कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया…!

अशोकलाल जी की बातें सुन कर माखन प्रसाद शर्मिंदा से हो गए अरे नहीं नहीं भाईसाहब मेरा ऐसा कोई आशय नहीं था आप कुछ गलत मत समझिए आपका बेटा तो अनमोल है  उसका कैसा सौदा!!आप कुछ मत सोचिए आप जैसा समझदार समधी मुझे मिल रहा है ये मेरा सौभाग्य है!!

ये हुई ना मेरे समधी जैसी बात।देखिए समधी साहब दहेज के मैं सख्त खिलाफ हूं मेरी श्रीमती जी तो” दहेज मुक्त विवाह अभियान “की प्रमुख संचालक हैं।मैं तो बस अपने दोनो बच्चों की खुशी के लिए आपकी तरफ से एक लेटेस्ट कार का उपहार चाहता हूं अब इतना तो होना ही चाहिए आखिर हम लड़के वाले हैं..और फिर हमने उसकी पढ़ाई लिखाई नौकरी में कितना धन लगाया है….गर्दन टेढ़ी करते हुए लड़के वाले की अकड़ दिखाते हुए अशोकलाल जी ने कहा तो माखन प्रसाद के हाथों के तोते ही उड़ गए

क्या कह रहे हैं..लेटेस्ट कार!!ये तो मेरी सामर्थ्य से बाहर की बात है मेरे बच्चे हैं कोई उपहार देना मेरा भी अधिकार बनता है  वो मैं दूंगा लेकिन कार!!

आप तो इतने चिंताग्रस्त हो गए जैसे मैने हवाई जहाज मांग लिया हो अब लड़के वालों का कुछ तो सम्मान रखना ही पड़ेगा आखिर आप बेटी वाले हैं माखन प्रसाद जी ।

 तभी बाहर से तेज हॉर्न की आवाजें सुनकर वो रुक गए और जल्दी से बाहर निकल कर देखा तो सामने बेटा चिन्मय था ।

अरे बेटा तुम अचानक आ गए !!

हां पापा आप चाहते थे ना मेरे पास कार हो तो लीजिए  देखिए मेरी नई कार!!नई कार लिया तो आप लोगों का आशीर्वाद लेने से अपने आपको रोक ही नहीं पाया सोचा आप लोगो के साथ लॉन्ग ड्राइव करूं हंसते हुए उत्साह से चिन्मय ने कहा और पापा के पैर छू लिए

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरे लिए तो आप हो ना जी !! -मीनू झा

तभी माखन प्रसाद जी आवाजे सुनकर बाहर आ गए

अरे अंकल आप भी हैं यहां आपका भी आशीर्वाद मिल जायेगा कहते हुए चिन्मय ने आगे बढ़ कर उनके भी पैर छू लिए लेकिन माखन प्रसाद जी ने जल्दी से अपने पैर हटा लिया

अरे अरे बेटा  ये क्या कर रहे हो तुम हमारे दामाद बाबू हो हम बेटी वाले हैं सिर झुकाने का काम तो हमारा है तुमने तो कार खरीद ली शादी में यही उपहार देना था..! शर्मिंदा हो गए थे वो और अशोकलाल जी को भी चिन्मय का उनके पैर छूना बेहद अपमानजनक लगा था।

अरे क्या अंकल प्राचीनकाल की बाते कर रहे हैं ये क्या बेटी वाले बेटे वाले बेकार की बाते कर रहे हैं क्यों आप सिर झुकायेंगे किसी के भी सामने सुनिए आपकी बेटी और मैं एक ही कम्पनी में जॉब में हैं दोनों की  समान योग्यताएं है समान वेतन है फिर!!दोनो बराबर हुए ना!जैसे मेरे पापा ने मुझे पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया वैसे ही आपने भी अपनी बेटी के लिए किया..!

शादी के उपहार में कार आप क्यों देंगे जब हमे इस लायक बना दिया है तो हम खुद खरीद लेंगे देखिए मैने अभी ही खरीद ली मेरे पास कार हो यही चाहते थे ना आपलोग !! .क्यों पापा मैं ठीक कह रहा हूं ना!!आइए अब जल्दी से आप सबको अपनी इस नई कार में घुमा के लाता हूं इसी खुशी मेंआज का लंच मेरी तरफ से ।

नई कार और अपने बेटे की भाव भंगिमा व्यवहार से अशोकलाल जी गर्दन झुकाकर कुछ सोचने पर मजबूर हो गए थे  !और माखन प्रसाद जी अपनी बेटी की तारीफ  समधी के सामने दामाद के मुंह से सुन कर और नई कार देख कर अपनी बेटी के सुखद खुशहाल जीवन के प्रति पूर्णतः आश्वस्त हो गए थे।

लतिका श्रीवास्तव

#गर्दन टेढ़ी करना(अकड़ दिखाना)

error: Content is protected !!