कहां हूं मैं अभागन – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

बड़े घर के बिगड़ैल बेटे से ब्याह दी गई ज्योति।मन में नई नवेली दुल्हन के सपने लिए ससुराल आ गई ज्योति। मायके में सौतेली मां के जुल्म सहते सहते तक गई थी ज्योति चार साल की थी जब मां छोटे भाई के जन्म के समय चल बसी ।दो दिन का छोटा सा छोटू उसकी देखभाल कौन करेगा इसी चक्कर में ज्योति के पिता सुरेश की दादी ने दूसरी शादी करा दी । दूसरी मां साल के अंदर ही मां बन गई।एक बेटी फिर घर में आ गई।

लेकिन ज्योति की सौतेली मां ज्योति और छोटे भाई छोटू पर बहुत जुलम करती ।बस ऐसे ही समय कट रहा था । पिता सुरेश मां के आगे पीछे घूमता रहता ज्योति और छोटे पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था ।बस ऐसे ही ज्योति धीरे धीरे पंद्रह साल की हो गई । किसी तरह आठवीं तक पढ़ाई कर ली थी पढ़ने लिखने में तो उसका मन लगता था लेकिन मां घर का सारा काम करवाती जिससे उसको समय नहीं मिल पाता बस किसी तरह स्कूल चली जाती थी।

स्कूल में ज्योति की टीचर माला ज्योति पर बहुत तरह खाती थी और उसकी मदद भी करती रहती थी पढ़ाई में ठीक थी ज्योति  टीचर माला चाहती थी कि ज्योति आगे पढ़े । आठवीं पढ़ने के बाद घर से मनाही है गई पढ़ने की लेकिन टीचर माला ने ज्योति की प्राइवेट फार्म भरा दिया कि किसी तरह आगे पढ लें और ज्योति की पढ़ाई लिखाई में मदम भी करती रहती थी ।

भाई छोटू का मन नहीं लगता था पढ़ने लिखने में पढ़ें चाहे न पढ़ें जब मां बाप ही ध्यान नहीं दे रहे हैं तो इस उम्र में बच्चों को क्या समझ । ऐसे ही एक दिन मां की पिटाई से क्षुब्द होकर छोटू घर से भाग गया उसका आजतक पता नहीं कि वो कहां गया।

शहर के धनाढ्य विश्वनाथ जी के यहां रूपये पैसे की कोई कमी न थी । तीन बेटे थे जिसमें दूसरा बेटा तो सबसे पहले ही लव-मैरिज कर चुका था और तीसरा बैंगलोर में बी-टेक कर रहा था । लेकिन बड़ा बेटा राजीव न तो पढ़ाई लिखाई की थी और न ही कोई काम धंधा ही करता था ।घर का बिजनेस और पैसा था बस उसी में लगा रहता था । आदतें बिगड़ चुकी थी उसकी न जाने कौन-कौन सा नशा करता था भाई स्कूल करके पढ़ाई छोड़ दी

थी। शादी ब्याह का भी कहीं कुछ नहीं हो पा रहा था।सेठ विश्वनाथ इस चक्कर में थे कि कोई गरीब घर की लड़की मिल जाए जिससे वो राजीव का खाने पीने कि और उसकी देखभाल करें कोई अच्छी लड़की तो शादी करेंगी नहीं ।घर में रूपये-पैसे की कोई कमी न थी पड़ी रहेगी आराम से लड़की। बात सुरेश और उसकी बीबी के कानों तक भी पहुंची और दोनों तैयार हो गए ज्योति को उस नशेड़ी से ब्याहने को ।

ज्योति ने भी सोचा कि यहां दिनभर सौतेली मां के ताने और मार सहने से तो अच्छा ससुराल होगा। लेकिन उस #अभागन को क्या पता था कि वो एक नरक को छोड़कर दूसरे नर्क में जा रही है।सोलह साल की ज्योति शादी के जोड़े में लिपटी लम्बा सा घूंघट निकाले सुहागसेज पर बैठी थी । तभी थोड़ी देर में लड़खड़ाते कदमों से राजीव ने कमरे में प्रवेश किया ।

उसके मुंह से तेज दुर्गन्ध आ रही थी शराब की ‌पलंग पर बैठते ही कहने लगा तुम मेरी बीबी हो अब तुम्हें मेरा सारा काम करना पड़ेगा ।इसी तरह बड़बड़ाते बड़बड़ाते कब वो गहरी नींद में सो गया पता ही नही चला।

यही सिलसिला रोज चलता रहा कभी कभी कम नशे में हो तो अपनी हवन की भूख मिटा देता था और सो जाता था।बस यही दिनचर्या थी रोज की । कभी कभी ज्योति पीने के लिए मना करती तो दो चार थप्पड भी जब दिए जाते ज्योति को।बेचारी बस ऐसे ही जीवन व्यतीत करती रही । दूसरे साल ज्योति ने एक बेटी को जन्म दिया ,

उसने सोचा कि बच्ची के आ जाने से शायद राजीव कुछ बदल जाए पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ।जब भी कमरे में बच्ची रोने लगती राजीव गांधी गलौज करने लगता ,ले जा इसे कमरे से बाहर सोने नहीं दे रही । ज्योति खून के घूंट पीकर रह जाती।

बेटी धीरे धीरे बड़ी हो रही थी वो सहमी सहमी सी रहती लेकिन ज्योति का वो बहुत बड़ी सहारा थी ।घर में सास-ससुर भी राजीव के मामले में कुछ नहीं बोलते थे ।उनको पता था कि अब राजीव सुधरने वाले नहीं हैं। जैसा चल रहा है बस वैसे ही चलने दो । हां बच्ची के पढ़ाई लिखाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे दादा दादी। ज्योति भी समझ गई थी कि अब बेटी के सहारे ही जिंदगी कटेगी।

बेटी स्नेहा पढ़ने लिखने में अच्छा मन लगाती थी और अब बड़ी हो गई थी बीकाम कर रही थी वो समझ गई थी कि मां की जिंदगी अब मैं ही बदलूंगी।स्नेहा पुलिस में जाने की अच्छी तैयारी कर रही थी साथ ही जूडो-कराटे भी सीख रही थी । ज्योति सोचती थी कि मैं जो न कर पाई अब मेरी बेटी करेगी ।

स्नेहा भी देखती समझती थी कि घर में मेरी मां की क्या हालत है । ज्योति ने अब सोनी लिया था कि बेटी के ही सहारे अब मैं जिंदगी पार करूंगी उसने अब राजीव की फ़िक्र करना छोड़ दिया था । जहां पड़े हैं पीकर पड़े रहो वहीं।

आज स्नेहा को पुलिस वर्दी में देख कर ज्योति गदगद थी ।फूली नहीं समा रही थी जो वो न कर पाई वो आज उसकी बेटी ने कर दिखाया । स्नेहा बोली मां अब तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है।और ज्योति को गले से लगा लिया । ज्योति सोनी रही थी मैं तो अभागों थी लेकिन स्नेहा को पाकर मैं कहां अभागों रह गई मेरे तो भाग्य जग गये । बेटी मेरे लिए सौभाग्य का सूचक बनकर आई है । अपने भाग्य के साथ साथ मेरे भाग्य को भी चमका दिया 

धन्यवाद

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

9 जून 

#अभागन

VM

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!