कड़वाहट – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi

वर्तिका पिछले दस दिनों से मायके में ही थी। उसका उतरा हुआ और मायूस चेहरा देखकर उसके मां-बाप को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस हुआ क्या है… कुछ पूछने पर भी वह बस हां हूं मैं टाल दिया करती थी। कुल 3 महीने ही तो हुए हैं

उसके विवाह को..फिर ऐसा क्या हो गया कि तीन महीनों में ही वह इतनी मुरझा गई। एक बात और उन्होंने गौर की कि ना तो वर्तिका समीर को फोन करती है और ना ही उसके पति समीर का कोई फोन आता है… उसके पिता तो समीर से बातें करने को उद्यत हो गये लेकिन फिर मां ने रोक दिया

कि हर बात में शीघ्रता करना उचित नहीं है… कुछ दिन देख लेते हैं,उसे हुआ क्या है..हो सकता है नई जगह पर गई है तो वह अपने आप को उसके अनुरूप ढाल नहीं पा रही होगी।थोड़ा समय देकर देखते हैं कि क्या होता है। हो सकता है उसका मन शांत हो तो फिर सब कुछ सही हो जाए। तो पिता ने भी उनकी बात मानकर फिलहाल समीर से बात नहीं की।

       देखते देखते 15 दिन गुजर गए। 

आज वर्तिका की बड़ी बहन रीतिका आने वाली थी। उसके बच्चों का ग्रीष्म अवकाश प्रारंभ हो चुका था। तो वह छुट्टियां बिताने मायके आ रही थी। 

                 नियत समय पर रीतिका घर आ गई। बहुत गर्मजोशी से उसका स्वागत हुआ। बच्चों के आने से पूरे घर में चहल पहल हो गई। खाने पीने के पश्चात बच्चे टीवी देखने में व्यस्त हो गए और दोनों बहनें कमरे में आकर बातें करने लगी।

वर्तिका सामान्य दिखने का भरसक प्रयत्न कर रही थी लेकिन उसकी उदासी और मायूसी रीतिका से छिपी ना रह सकी। आखिर रीतिका ने पूछ ही लिया..”- क्या बात है वर्तिका, अभी तो तेरे विवाह को तीन ही महीने हुए हैं पर जो उत्साह और रौनक तेरे चेहरे पर होनी चाहिए

वह दिखाई नहीं दे रही।। बता ना क्या हुआ है..” वर्तिका एकदम सकपका गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। उसने दृष्टि झुकाते हुए कहा,”- नहीं नहीं दीदी, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो बिल्कुल ठीक हूं और बहुत खुश हूं। समीर भी मुझे बहुत चाहते हैं।”

… रीतिका कुछ पल उसका चेहरा देखती रही फिर खींचकर उसे अपने अंक में भर लिया…”- अब अपनी बड़ी बहन से भी बातें छुपाएगी?? बता तो सही क्या हुआ.. हो सकता है कि मुझे बताए तो हम दोनों मिलकर कोई हल निकाल लें ।”

     रीतिका का स्नेह और सहानुभूति पाकर वर्तिका फूट फूट कर रो पड़ी। “-क्या बताऊं दीदी ….मैं और समीर एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं… किसी भी बात में हम दोनों की राय नहीं मिल पाती। समीर तो मेरी एक नहीं सुनते हैं… हमेशा अपनी ही चलाते हैं…

मैं तंग आ चुकी हूं। वहां से तो यही कह कर आई कि कुछ दिनों के लिए मायके जा रही हूं पर सच कहूं तो अब यहां से जाने का मेरा बिल्कुल मन नहीं है। वह घर नर्क की तरह लगता है मुझे… मैं नहीं रह सकती वहां उस माहौल में… रोज-रोज की खिच खिच सहने की अब मुझ में शक्ति नहीं है…

समीर हर बात पर मेरा विरोध करते हैं और हर बात पर ताने मारते हैं…बोलो ना… मैं कितना बर्दाश्त करूं… मुझे नहीं लगता मैं समीर के साथ अपना पूरा जीवन बिता पाऊंगी… अच्छा तो यही होगा कि हम दोनों इसी मोड़ पर अपने रास्ते अलग कर लें।”

        उसकी बात सुनकर रीतिका हतप्रभ रह गई…”-यह कैसी बातें कर रही है वर्तिका…इतने बड़े-बड़े निर्णय ऐसे भावातिरेक में नहीं लिए जाते… बहुत कुछ सोचना पड़ता है… तेरे आगे अभी पूरा जीवन पड़ा है… देख मां बाबूजी का स्वास्थ्य भी अब सही नहीं रहता है… इन सब बातों से तो उन्हें भी तनाव होगा। मैं यह नहीं कह रही हूं कि तू जीवन भर सब कुछ सहन करती रह पर हम कुछ परिवर्तन लाने का प्रयास तो कर सकते हैं ना एक बार..”

    उसकी बात सुनकर वर्तिका के चेहरे पर उलझन के भाव तैर गए। “-तुम क्या कह रही हो दीदी.. मैं कुछ समझी नहीं…”

     रीतिका का चेहरा गंभीर हो गया। उसने कहा , “- देख वर्तिका, मैं तुझे इसलिए यह सब नहीं कह रही हूं ताकि तुझे बुरा लगे बल्कि जो सत्य है वही कह रही हूं। मैंने भी तुझे बचपन से देखा है…तू भी जिद्दी है और यह संयोग की बात है कि समीर का स्वभाव भी कुछ-कुछ वैसा ही है।

इसीलिए अब तुम दोनों के बीच में अहं का टकराव हो गया है लेकिन तुम दोनों को ही यह समझना पड़ेगा कि विवाह जब होता है तो वह केवल दो व्यक्तियों के बीच ही नहीं होता बल्कि दो परिवार जुड़ जाते हैं…दो भावनाएं जुड़ जाती हैं..एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए दोनों को ही अपने अंदर परिवर्तन लाने पड़ते हैं

और कई समझौते करने पड़ते हैं, तभी खुशियों के फूल खिलते हैं..अगर मेरी माने तो तो यहां अभी एक-दो दिन और रह जा…दोनों बहनें जमकर बातें कर लेंगे और उसके बाद तू घर चली जा… और बस इतना करना मेरी बहना कि जब भी तुम दोनों के बीच कोई मुद्दा उठ जाए या कोई भी बात बढ़ने लगे तो उस बात पर तू बिल्कुल शांत हो जाना

और उसको एक सुखद मोड़ देने का प्रयास करना। मैं जानती हूं कि यह सरल नहीं है लेकिन एक प्रयास करने में क्या बुराई है। मुझे लगता है ऐसा करने से समीर को भी धीरे-धीरे अपनी गलती समझ में आएगी और वह भी अपने अंदर परिवर्तन लाने का प्रयास करेगा। और इसके बाद भी अगर बात नहीं बनती है तो फिर जैसा तू चाहे वह करना…”

        थोड़ी हिचकिचाहट के बाद वर्तिका ने स्वीकृति दे दी। उसने भी सोचा कि कि इस रिश्ते को एक अवसर तो देकर देख ही सकते हैं अचानक उसके आंखों के सामने वह दृश्य तैर गया जब उसके सर में दर्द हो रहा था तो समीर ने उसका कितना ख्याल रखा था। उसकी आंखों में आंसू आ गए। …’ नहीं नहीं… वह एक बार तो प्रयत्न अब अवश्य करके देखेगी… नए सिरे से एक नई शुरुआत करेगी…’

          दो दिन मायके में रहने के बाद वर्तिका ने अपना सामान बांध लिया और सबसे विदा लेकर घर पहुंच गई। समीर अभी दफ्तर में ही था। अपने पास रहने वाली दूसरी चाबी से घर खोलकर वर्तिका घर के अंदर आ गई। उसने अच्छे से पूरे घर की साफ सफाई की। हल्का श्रृंगार किया और अच्छा सा खाना बनाकर समीर की प्रतीक्षा करने लगी।

शाम को समीर दफ्तर से वापस आया तो घर खुला देखकर और वर्तिका को सामने देखकर आश्चर्यचकित रह गया। फिर व्यंग्य से होंठ टेढ़े करते हुए उसने कहा, “-क्यों हो गए तेवर ढीले… हो गया ना दिमाग ठंडा…आ गई वापस!! उसका व्यंग्यपूर्ण स्वर सुनकर तिलमिला गई

वर्तिका मगर फिर उसने अपने आप को शांत करते हुए मुस्कुराते हुए कहा…. “- हां दिमाग तो ठंडा होना ही था तुम्हारे प्यार की शीतलता में बेचारा भला कितनी देर तक गर्म रह पाता…. चलो अब जल्दी से हाथ मुंह धो लो…मैंने तुम्हारे पसंद का खाना बनाया है। सच कहें तो समीर को इस उत्तर की बिल्कुल आशा नहीं थी। उसे भी वर्तिका की ओर से कुछ जले कटे उत्तर की ही प्रत्याशा थी। 

अतः उसकी इस बात पर कुछ उलझन के साथ वह शांत रह गया और हाथ मुंह धोने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया। हाथ मुंह धो कर आया तो पाया कि वर्तिका बिल्कुल सामान्य व्यवहार कर रही थी और मायके की बातें उसके साथ साझा कर रही थी। दोनों बहनों की मस्तियां सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। इस पर वर्तिका ने भी उसकी नाक खींचते हुए कहा,”- जनाब.. आपको बड़ा मजा आ रहा है।”

     इस पर समीर अचकचा गया। फिर अचानक उसे अपना पुराना गुस्सा याद आ गया…वह इतनी जल्दी अपने अहं का त्याग नहीं करना चाहता था। इसलिए उठा और अपने कमरे में जाकर सो गया। वर्तिका फिर उदास हो गई लेकिन फिर अपने उदासी को उसने दूर धकेलना का प्रयास किया

और रसोई समेट कर वह भी सो गई।। सुबह समीर की आंख खुली तो वर्तिका ड्रेसिंग टेबल के सामने अपनी गीले बालों को सवार कर मांग भर रही थी। उसने हड़बड़ाकर घड़ी की तरफ देखा फिर झल्ला कर कहा..”- अरे इतनी देर हो गई मुझे जगाया क्यों नहीं.. अब यह राजकुमारी की तरह श्रृंगार ही करती रहोगी या कुछ नाश्ता भी बनाओगी…मुझे पहले ही देर हो चुकी है। जीवन में श्रृंगार के अलावा भी बहुत सारी चीज़ें होती है।” 

             उसकी बात सुनकर वर्तिका को बहुत तेज गुस्सा आया लेकिन फिर उसने संयम रखते हुए मुस्कुरा कर कहा,”- अजी जब सपनों का राजकुमार सामने हो तो हम तो राजकुमारी की तरह ही रहेंगे ना… आप फिकर मत करिए.. मैं नाश्ते की तैयारी कर चुकी हूं…आप जब तक नहा कर आएंगे आपका नाश्ता आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा…तो राजकुमार जी ! अब जल्दी नहाने जाइए…”

        समीर समझ नहीं पा रहा था कि अब वर्तिका को गुस्सा क्यों नहीं आ रहा है। उसने कनखियों से वर्तिका की तरफ देखा तो गीले बालों में ताजगी भरा चेहरे और चमकती हुई बिंदिया और सिंदूर की रेखा के साथ वर्तिका बेहद प्यारी लग रही थी। मन किया दौड़कर बांध ले उसे अपने बाहुपाश में… उसने झटपट अपनी दृष्टि फेर ली और नहाने के लिए चला गया। वह नहा कर आया तब तक वर्तिका नाश्ता लगा चुकी थी। 

               फटाफट नाश्ता करके दफ्तर जाने के लिए घर से निकला तो वर्तिका ने आगे बढ़कर प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ उसके लैपटॉप का बैग उसे थमाया। उसकी मुस्कुराहट.. उसके गीले बालों से आते हुए खुशबू… सब कुछ समीर को बहुत मनमोहक लग रहा था।समीर ने अचानक पलट कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके कानों में फुसफुसाया…”-अब कभी मुझे छोड़ कर मत जाना…तुम्हारे बिना यह घर-घर नहीं लगता।” वर्तिका मन‌ ही मन रीतिका को धन्यवाद देते हुए समीर की बाहों में समा गई कि बिगड़ने से पहले संभल गई.. सारी कड़वाहट इस युुक्ति से कपूर की तरह उड़ गई और उसकी दुनिया में बहार आ गई।

निभा राजीव “निर्वी” 

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

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