” आज हमारे परिवार में एक डॉक्टर और जुड़ गया!अब से मेरी बेटी डॉक्टर नीना मेरे साथ मेरी क्लीनिक में बैठेगी “!
नीना के पिता डॉक्टर रवि चंद्रा ने गर्व और खुशी से कहा!
वे बहुत खुश थे कि उनकी तीसरी पीढ़ी भी डॉक्टर बन गई!
“क्या मतलब नीना आपके साथ क्लीनिक पर बैठेगी?अरे भई !अब डाक्टरी की पढ़ाई पूरी हो गई! उसकी शादी किसी अच्छे से डॉक्टर से करेंगे फिर जहां शादी होगी वहीं अपना काम शुरू कर लेगी!”
रेणुका ने जवाब दिया”!
रवि बोले डॉक्टर ही क्यूं कोई इंजीनीयर या मल्टीनेशनल वाला क्यों नहीं?
रेणुका का जवाब था ” एक ही प्रोफेशन में होंगे तो एडजस्टमेंट में आसानी रहेगी!जैसे मैं और तुम! “
“नहीं मां मैने डाक्टरी की पढ़ाई शादी करने के लिए नहीं की!मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी मेरा सपना पूरा हुआ! मैं पापा के साथ कल से क्लीनिक जाऊंगी”नीना ने अपना निर्णय सुना दिया!
कुछ दिन बाद डाक्टर रवि के एक दोस्त ने उन्हें अपनी जान पहचान का एक रिश्ता बताया!
लड़का महेश भी डॉक्टर था अपनी विधवा मां शीला जी के साथ रहता था!
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शहर के बीचों बीच में उसकी क्लीनिक थी !छोटा शहर होने की वजह से प्रैक्टिस अच्छी चलती थी!
डाक्टर रवि ने भी सोचा महेश की शहर में अच्छी जान पहचान है नीना भी अपना काम आसानी से शुरु कर लेगी!
महेश की एक शादीशुदा बहन थी!उनके पिता बचपन में ही चल बसे थे मां ने ही जैसे तैसे करके दोनों को पाला,पढ़ाया लिखाया था!
महेश ने बचपन से पैसों की तंगी देखी थी !अब जब वो अच्छा कमा रहा था ,अपने सारे शौक पूरे कर लेना चाहता था!उसके दो ही शौक थे अच्छा खाना,अच्छे कपड़े,जूते-चप्पल,धड़ियां !
शुरू से ही महेश अपनी रोज की कमाई मां के हाथ पर रखता था!उसे लगता था मां ने हमें कमी में पाला था,अब यह मौका आया है कि वह भी खुले दिल से खर्च करलें!
महेश एक मायने में दूसरा श्रवण कुमार ही था!बचपन से ही उसके दिल में यह बात बैठी थी कि मां ने हमें बहुत मुश्किल से पाला है!उसकी हर सही-गलत बात को मानना उसका धर्म है!वह किसी हालत शीला जी को दुखी नहीं देख सकता था!मां की कही बात महेश के लिए पत्थर की लकीर थी!
शीला जी पुराने जमाने की दकियानूसी और कंजूस महिला थीं!
क्योंकि उन्होंने शुरू से ही पैसा बचा बचा कर गृहस्थी चलाई थी वे एक एक पैसे को दांत से पकड़ती थीं!
महेश ने सोचा था डॉक्टर बीवी आऐगी दोनों मिलकर कमाऐंगे,बड़ा सा घर बनाकर ठाठ से रहेंगे!
डाक्टर रवि ने अपनी इकलौती बेटी के ब्याह में कोई कोर कसर न छोड़ी!
सगाई पर उन्होंने महेश को कार भी दी!
शीला जी सामान और कार देख कर बहुत खुश थीं कि बेटा अब ठाठ से कार में जाया करेगा!
शादी की गहमा गहमी खत्म हुई तो नीना ने महेश से अपने लिए भी किसी अस्पताल में या प्राइवेट काम देखने की बात कही!
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बहू से मुंह से काम पर जाने की बात सुनते ही शीला जी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा!तमक कर बोली “इतने दिन से इस घर को संभाल रही थी,अब इतना दम ना है जो तुम्हारे पति के साथ साथ तुम्हारी भी चाकरी करूं!”
महेश को खाने पीने का एक ही तो शौक है!अब तक उल्टा सीधा बनाकर खिला दिया !अब तो मैं भी चूल्हे चौके के झंझट से निजात पाकर बहू के हाथ की गर्म रोटी खाना चाहूं!”
मुकेश को सपने में भी अंदेशा नहीं था कि शीला जी उसकी पत्नी को काम करने की इजाज़त नहीं देंगी!
वक्त की नजाकत देखते हुए उसने शीला जी को मना लिया कि एक खाना बने वाली रख लेंगे!नीना सुबह उससे सब काम करा कर काम पर निकल जाएगी!शीला जी को परेशानी नहीं होगी!
एक प्राइवेट अस्पताल में नीना को गायनोकोलोजिस्ट का जाॅब मिल गया!
एक तो बड़े घर की लड़की ऊपर से काम पर जाऐगी,कमाकर लाएगी,अम्मा जी को अपना सिंहासन डालता सा लगा!
नीना को घूस.ने का बहुत शौक था उसका मन था कि जाॅब शुरू करने से पहले वह महेश के साथ दो-चार दिन को कहीं घूमने जाऐ!पर अम्मा जी ऐन मौके पर तबियत खराब का बहाना लगा कर उनका प्रोग्राम कैंसिल करा दिया!नीना के मन की मन में रह गई!
खैर किसी तरह नीना काम पर जाने लगी! वह शुरू से ही हास्टल में रहकर पढ़ी थी उसे घर के काम की आदत भी नहीं थी फिर भी वह हरसंभव कोशिश करती कि घर का सब काम करवा कर ही घर से निकले!शीला जी को शिकायत का मौका ना दे!
महेश और नीना के टाइम अलग अलग थे!शीला जी चाहती थीं कि नीना ऑटो में जाऐ और महेश कार से!
नीना इसको भी बर्दाश्त कर गई!
अम्मा जी ने ठान लिया था कि वे नीना को नौकरी करने ही नहीं देंगी!महेश के सामने वे
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आऐ दिन वे कामवाली और नीना की झूठी शिकायतें करतीं!नीना का दिल तब कचोटता जब महेश भी नीना को ही गलत समझकर बजाय अम्मा जी को समझाने के उनका ही पक्ष लेकर उल्टे नीना को समझाने लगता!
अम्मा जी की रोज-रोज की चकर चकर से तंग आकर अंत में कामवाली भाग गई!
नीना दिल ही दिल में घुटती रही!जिसके लिए वह अपने मां-बाप और मायके का सुख आराम छोड़कर आई जब उसे ही उसकी भावनाओ की कद्र नहीं तो वह अपने दिल का दर्द किससे बांटे!
अम्मा जी को महेश और नीना का एकसाथ कहीं आना जाना ,बोलना बतियाना बिल्कुल नहीं सुहाता था!नीना के खाने पीने उठने बैठने पर हर वक्त अम्मा जी की पैनी नज़र रहती!उसे अपने घर घर नहीं कैदखाना सा लगता!अम्मा जी चाहती थी जितनी देर महेश घर में रहे उनके पास उनके साथ रहे जैसे ब्याह के पहले रहता था!
महेश की भी हिम्मत नहीं थी कि वह अम्मा जी को घर में छोड़कर कभी नीना को बाहर ले जाए डिनर करा लाऐ!
कभी वे लोग रात को कमरे में टी.वी.पर फिल्म देखते तो भी वे दस बार दरवाजा खटखटा कर आवाज देती कभी उनकी नींद खराब होती तो कभी सुबह अस्पताल कैसे जाओगे का बहाना देती!
नीना को समझ नहीं आ रहा था अगर अम्मा जी को इतना ही अपने बेटे से प्यार था तो शादी करने क्यूं चल दी थीं!प्रणय के आंतरिक क्षणों में भी नीना महेश के साथ सहज ना हो पाती!उसे हर वक्त अपने और महेश के बीच अम्मा जी रूपी दीवार नज़र आतीं!
नीना अपना दर्द किसे बताए जो किसी से कहा भी न जाए और सहा भी ना जाए! मां-बाप दोनों दिल के मरीज थे!कितने चाव से शादी की थी बेटी अपने घर में खुश नहीं ये जान कर क्या बीतेगी!यही सोचकर बर्दाश्त कर रही थी!
उसे अम्मा जी से ज्यादा शिकायत महेश से थी वह मां और बीवी के बीच तालमेल बैठाना ही नहीं चाहता था उसे हर वक्त अम्मा जी की फिक्र लगती कहीं उन्हे कुछ बुरा ना लग जाए!
एक अजीब सी दूरी महेश और नीना के बीच बढ़ने लगी!
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फिर एक दिन नीना को पता चला वो मां बनने वाली है एक तरफ नन्हें मेहमान के आने की खुशी!दूसरी तरफ अम्मा जी का रवैया!उनके मन में फिर संशय का सर्प सर उठाने लगा!बच्चा हो जाऐगा तो महेश तो पूरी तरह से नीना के चंगुल में हो जाएगा तब मेरा क्या होगा!
महेश थोड़ा भी नीना का ख्याल रखने की कोशिश करता तो दस बातें सुनाकर कहतीं!”हमने भी बच्चे पैदा करे अपने आदमी से ये चोंचले ना उठवाऐ!आजकल के जोरू के गुलाम बच्चे की खबर सुनते ही बीवी के आगे पीछे घूमने लगै हैं!जैसे दुनिया का अनहौता काम करने जा रही हों!”
आऐ दिन के प्रवचन से महेश ने भी अम्मा जी के सामने नीना को पूछना छोड़ दिया!नीना खुद डॉक्टर थी उसने समझ लिया उसे अपना ख्याल कैसे रखना है!
नीना डिलीवरी के लिए मायके चली गई! बेटा हुआ कुछ दिन बाद नीना वापस आ गई!अम्मा जी को पोते से ज्यादा दिलचस्पी और खुशी नीना के मां-बाप के दिये हुए सामान में थी!
नीना नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि जानती थी घर में रहेगी तो हर वक्त अम्मा जी के तीखे जहर बुझे व्यंग बाण सहने पडेंगे!कम से कम थोड़ा-बहुत वक्त तो चैन शांति से कटेगा!
नीना ने आया रख ली!वह आया को बच्चे के साथ अपने साथ ही ले जाने लगी!
कुछ समय ठीक से बीता!कि बच्चे को निमोनिया हो गया!पता चला उसका बार बार डायपर बदलने के आलस में आया उसे गीला ही रखती!
एक तरफ घर का काम,बच्चा और नौकरी!क्या सपने देखे थे क्या भाग्य में मिला?
नीना के इस दर्द को वही जान सकता जिस पर बीती हो!
एक दिन अम्मा जी तो चली गई पर अपनी सास रुपी आत्मा महेश के अंदर प्रवेश करा गई!
बचपन से उनके साथ रहकर उनकी बातें सुन सुनकर महेश की सोच भी अम्मा जी की तरह हो गई थी!बात बात पर टोकना और नीना के हर काम में नुक्स निकालना उसकी दिनचर्या में शुमार होने लगा था!
महेश की प्रैक्टिस दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी!
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पैसे के साथ-साथ उसका गुरूर भी बढ़ता जा रहा था!
एक दिन महेश ने नीना को नौकरी छोड़कर घर और बच्चा संभालने को कह दिया!
डाक्टर महेश की वाइफ किसी के नीचे काम करे उसे ये गवारा नहीं था!
महेश ने कहा जब वह इतना कमाता है तो नीना को कहीं नौकरी करने की क्या जरूरत !
नीना ने समझाना चाहा कि वह नौकरी पैसे के लिए नहीं बल्कि अपनी पढ़ाई को मुकम्मल करने के लिए कर रही है!पर महेश के ऊपर रिच लुक का भूत सवार था उसने नीना की हर दलील को नकार दिया!
नीना के मां-बाप ने भी महेश को समझाना चाहा पर महेश ने उन्हें यह कहकर नकार दिया कि वे उनके पर्सनल मामले में दखल न दें तो अच्छा!
महेश ने पैसा तो बेइंतहा कमाया ,वह तो जैसे पैसा कमाने की मशीन बन कर रह गया!उस पैसे को ऐंजॉय करने और नीना के साथ वक्त बिताने का उसके पास टाइम ही नहीं था!
धीरे धीरे डाक्टर नीना डाक्टर की जगह डॉक्टर महेश की मिसेज बनकर रह गई!
गले में पड़े स्थेस्कोप की जगह घर की जरूरतों का सामान मंगाने,किचन में खड़े होकर खाना बनाने/बनवाने,मेहमानों की खातिर दारी ने ले ली!
नीना के दिल का अनकहा दर्द उसे हर वक्त सालता कि अपना घर और परिवार बचाने के लिए उसने अपना कैरियर छोड़ दिया, अपने अरमानों को दफ्न कर दिया, अपने सारे शौक छोड़ दिये!अपनी आईडेंटिटी खत्म कर दी!फिर भी आखिर में क्या मिला ?आज उसके पास धन दौलत,नौकर-चाकर गाड़ी बंगला सबकुछ था।नहीं था तो पति का प्यार ,उसका साथ और थोड़ा सा समय! आपसी समझ और एक दूसरे के विचारों के अंतर के कारण उनका जीवन 36 का आंकड़ा बनकर ही रह गया!वो रेल की उन पटरियों की तरह थे जो साथ चल तो रही थीं पर हमेशा अलग रही!
कुमुद मोहन
सच्ची घटना पर आधारित स्वरचित-मौलिक!
#अनकहा दर्द