कचरे का डिब्बा – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मां देख मैं क्या लाया हूं.. वीनू ने चहकते हुए कहा तो मुनिया बर्तन रगड़ते पलट कर देखने लगी क्या है री इत्ता चहक रहा है

देखा तो वीनू के हाथ में एक अधखाया सेब फल था जो सड़ गया था।कहां से लाया किसका जूठा है .. मुनिया हाथ का काम छोड़ कर खड़ी हो गई।

सोनू भैया ने दिया … सहमकर वीनू बोल उठा।

तूने मांगा होगा मुनिया नाराज थी।

नहीं मैने नही मांगा था मैं तो बस उनके पास खड़ा था.. वीनू ने असली बात कि सोनू  खराब सेब के टुकड़े को डस्ट बिन में फेंक रहा था लेकिन उसे वहीं खड़ा देख ले वीनू तू खा ले कहते उसे दे दिया था … छिपाते हुए त्वरित सफाई दी ।

क्यों खड़ा था वहां …ये सेब पाने के लिए..!!बोला था ना तुझे चुप से यहीं जमीन पर बैठा रह क्या जरूरत है घर में डोलने की ताका झांकी करने की भैया को पढ़ने दे अभी मैम साब देख लेंगे तो तुझे और मुझे काम से भगा देंगी मुनिया ने उसके हाथ से सेब झपटते हुए डपटा पर वीनू ने ज्यादा मजबूती से सेब को पकड़ लिया था मानो वह कोई अलभ्य वस्तु हो फिर चुपके से शर्ट के अंदर छुपा लिया..!!

वीनू का हाथ पकड़ उसे वहीं अपने पास झपट कर  बिठाते हुए मुनिया फिर से बर्तन रगड़ने बैठ गई पर मन बहुत आकुल हो गया उसका।

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वीनू को वह इसीलिए लाना ही नही चाहती अपने साथ।चार घरों का काम करती है साथ में वीनू जब भी उसके साथ आता है उन घरों की चमक दमक आंखें फाड़कर देखता रहता है।

छोटे से एक कमरे के मकान में सिकुड़ कर लाइन लगा कर हैंडपंप के नाप नाप कर पानी से  गुजारा चलाने वाले घर का अबोध वीनू विशाल सुविधायुक्त कमरों ,सुस्वादु व्यंजनों से भरी महकती डाइनिंग टेबल ,दर्पण की मानिंद चमकते टाइल्स वाले फर्श,अनोखे वाशबेसिन ,डिजाइनर नल से बहती भरपूर पानी की धार देख भौचक्का रह जाता है ,आरामदायक विशाल शयनकक्षों को जब मुनिया झाड़ू बुहारती है तो वीनू मां की नजर बचा धीरे

से बिस्तर पर बिछी मखमली चादर को छूकर आनंद महसूस करता है, विशाल आदमकद आईने में निहार कर खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगता है आईने में उसे अपनी मैली शर्ट की परतें और बेढंगा हाफ पैंट इतने बुरे नजर आते है जितना वह उन्हें पहनकर महसूस नहीं करता ।फिर भी कभी कभी उन आइनो के सामने देर तक खड़ा होकर वह खुद में खुद को ढूंढने की कोशिश करने लग जाता है।

वीनू को सबसे अच्छे लगते हैं सोनू भैया मेमसाब के इकलौते पुत्र  लाडले दुलारे..! दुनिया भर की कीमती वस्तुएं उनके पास हैं लैपटॉप से पढ़ाई करते हैं किताब से नहीं। वीनू अचरज से छुप छुप कर देखता है उसमे गेम भी खेलते हैं और जो बात सबसे ज्यादा प्रलोभित करती है वह है स्वादिष्ट खानपान ऐसी ऐसी चीजे खाते रहते हैं

जिन्हे वीनू ने सपने में भी नहीं देखा।कितना अच्छा है सोनू भैया को!! इतने आराम से पढ़ाई करते हैं इतनी शानदार कुर्सी टेबल लैपटॉप फिर बढ़िया बैठे बैठे मनुहार से बढ़िया खाने पीने का विविध सामान..!! हर बार अपना एक कमरे का सिकुड़ा कमरा उसकी आंखों के सामने आ जाता।

मुनिया समझ रही थी वीनू के मन की उथलपुथल। वह नहीं चाहती थी यहां आकर सब देख देख कर उसके बालसुलभ उजले मन में अपने घर अपने रहन सहन के प्रति घृणा उपजे हीन भावना पनपे और सोनू और उसके घर की सुविधाओ के प्रति उसकी आसक्ति बढ़ती जाए ।वह चाहती थी वीनू ये सब देख कर ऐसा ही बनने को संकल्पित हो खुद को सक्षम बना सके ना कि खुद को बौना महसूस कर परवलंबित होने लगे।वह यह भी

महसूस कर रही थी कि सोनू वीनू के प्रति हमदर्दी के साथ उपेक्षा का भाव रखता है खाने के सामान के प्रति उसकी ललक देख वह अक्सर उसे कुछ खाने को देता रहता है ऐसा खाने का सामान जो खराब हो गया हो या प्लेट में ज्यादा होने से बच गया हो जिसे वह फेंकना चाहता हो जिसे मुनिया के लाख समझाने पर भी वीनू लपक कर हाथ फैला कर ले लेता है यही बात मुनिया को चीर डालती थी।वह नही चाहती थी वीनू लोगों की सहानुभूति पर जिए।

आज सोनू ने अपना जूठा खराब सेब वीनू की ओर बढ़ा दिया उसे भी वीनू ने प्रफुल्लित होकर ले लिया मुनिया व्याकुल हो उठी।

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वीनू अब इतना छोटा भी नहीं है अभी से इसकी नीयत और विचारधारा प्रदूषित हो रहे हैं।इसे इतनी समझ तो होनी ही चाहिए की जिन सामान जिस वस्तु पर अपना स्वत्व नहीं हो अधिकार नहीं हो उससे दूर रहना चाहिए।पराए सामान पर इसकी लोलुप दृष्टि और फेंक कर दिए जाने पर भी हाथ फैलाकर ग्रहण कर लेना मुनिया के आत्मसम्मान को कुचल देता था।उसका घर छोटा हो उसके पास रूखा सूखा ही सही पर खुद उसका तो है उस पर उसका अधिकार तो है वह संतुष्ट थी लेकिन अपने वीनू के कुसंस्कारित होते मानसिक धरातल के कारण गहरी चिंता खाए जाती थी।

मुनिया काम हो जाए तो इधर आना मेमसाब की आवाज से वह चौंक उठी और जल्दी से सारे धुले बर्तन उठाकर किचन में रख आई ।

जी मेमसाब काम हो गया बताइए और क्या करना है विनीत भाव से उसने पूछा तो मेमसाब ने डाइनिंग टेबल पर सुबह का बचा खुचा सारा खाना उसकी ओर बढ़ा दिया ले ये सब लेती जाना वीनू खा लेगा …. वीनू की आतुर आंखें चमक उठीं थीं यही तो वह चाहता था शायद इसी लालच में तो वह मां के साथ जिद करके आ जाता था मेमसाब उसे बहुत अच्छी नेक महिला लगती थी।

जी मेमसाब मुनिया ने सामान लेने को आगे की तरफ कदम बढ़ा दिए..!

.. देख ले मुनिया अगर नही ले जाना हो तो कचरे के डिब्बे में डाल देना कहती मेमसाब सपाटे से बाहर गार्डेन चली गईं थीं।

परंतु उनकी इस बात से मुनिया के कदम तो वहीं जम गए थे।

उसकी और वीनू की हैसियत कचरे के डिब्बे जैसी हो गई है क्या!!

मां मां जल्दी कर देख आज तो खीर भी बची है और ये देख आलू वाली पूरी भी कितना सारा खाना है मां आज तो दावत हो गई मेरी … वीनू एक पॉलिथिन में अपने छोटे छोटे हाथों से बड़े बर्तनों की बची खाद्य सामग्री खाली करने के जतन कर रहा था… !!

ला दे मुझे मैं खाली करती हूं मुनिया ने नन्हे हाथों से पॉलिथिन झपटते हुए कहा और सारा खाना उसमें भरती चली गई.. अरे मां ये क्या कर रही है खीर अलग रखना था सब्जी अलग तूने सब मिला दिया.. वीनू चिल्ला उठा तब तक मुनिया ने बाहर आकर खाना भरी पॉलिथिन गार्डन के सामने  हाथ फैलाए खड़े एक भिखारी को दे दी थी..!

मेमसाब कचरे के डिब्बे में फेंकने से तो अच्छा है एक भिखारी के पेट में जाए इससे अच्छी भीख इसके लिए और क्या होगी यह बिचारा तो भीख मांगकर ही गुजारा कर पाता है अचरज से ताकती मेमसाब को सन्न करती मुनिया विलाप करते वीनू का हाथ घसीटती चल पड़ी।

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मां मेरा खाना तूने उस भिखारी को क्यों दिया क्षोभ और बेबसी थी वीनू के आर्त स्वर में.!

वीनू …वह खाना तेरा नहीं था भिखारी का ही था क्या तू भिखारी है!! अब से इज्जत से अपनी खुद की सूखी रोटी खाना सीख ले ..या सूखी रोटी को सेब बनाने की कोशिश करना सीख ले!गहरे दृढ़ स्वर में मुनिया गरज उठी थी।

हतप्रभ खड़ी मेमसाब अपने बरताव पर ग्लानि महसूस कर उठीं थीं और रोता हुआ वीनू भिखारी से अपनी तुलना कर मां की बात का मर्म समझने की कोशिश करता चुप सा हो गया था .. फिर धीरे से शर्ट के अंदर छुपाया अधखाया खराब सेब का टुकड़ा निकाल कर पूरी ताकत से नाली में फेंक दिया था।

लतिका श्रीवास्तव

#आत्मसम्मान

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