जैसे ही वैष्णवी ने मोहन काका आवाज लगाई
राघव ने बुढिया द्वारा दी गई साड़ी के किनारे को वैष्णवी के माथे पर लगाया जिससे वैष्णवी शांत पड़ गई।
बिलकुल वैसे ही जैसे मंदिर में माता वैष्णो देवी के पास ले जाकर हुई थी…
राघव और यशोदा बिलकुल अचंभित थे
ऐसा कैसे हो सकता है
बिलकुल माता वैष्णो देवी की तरह ही उस बुढिया माता के साड़ी के किनारे में शक्ति कहां से आ सकती है।
ये सारी बातें उन दोनो के मन मे चल ही रही थी की उस गांव वाले के कान में अपने नाम की हल्की गूंज चली गई थी जिस कारण वो मंदिर परिसर में आया और पूछने लगा ..
आपने मुझे बुलाया था क्या
नही नही ….राघव ने बोला
आप लोग कहा से आए है ….मोहन ने पूछा
हम यही 25 किलोमीटर दूर के गांव से आए है…राघव जवाब देकर आगे बढ़ गया और अपने घर चला आया।
यशोदा मुझे ये समझ नही आ रहा की वैष्णवी उस आदमी का नाम कैसे जान गई थी
और जब मैने बुढिया माता के दिए साड़ी के किनारे को वैष्णवी के माथे से लगाया तो वैष्णवी बिलकुल उसी तरह से शांत हो गई जैसे माता के मंदिर में माथे लगाने के बाद हुई थी..
यशोदा बोली ….. हां जी
मैं भी यही सोच रही हूं और मुझे तो वो बूढ़ी माता कोई सिद्ध माता लग रही है
कोई बात नही
कल वो फिर आएगी ऐसा कहकर गई है और उन्होंने अपने बारे में बताने के लिए भी कहा है।
तुम उनके लिए कल खीर पुड़ी और हलवा बना देना …
वैष्णवी अब सामान्य लग रही थी
उसकी वो राखी वाली जिद बंद हो गई थी
अगले दिन सुबह सुबह वैष्णवी उठकर अपनी मां के पास जाकर दुलार लगाते हुए कहती है मम्मी मुझे हलवा पुड़ी खाने है
कोई बात नही बेटा आज मैं वही बना रही हूं
लेकिन मम्मी मैं बना हुआ सारा हलवा पुड़ी खाऊंगी मैं किसी को भी उसमे से नही दूंगी
यशोदा को लगा जैसे बालपन में ये बाते बोल रही है …तो उसने भी अच्छा बेटा किसी को मत देना
कुछ ही देर में बुढिया लाठी टेकते हुए आकर दरवाजे के पास आकर बोली
बेटी मैं आ गई
कुछ खाने को है तो दे दे
यशोदा दौड़कर आया और उसे अपने घर में ले जाने लगी
तभी
बुढिया कहती है
नही बेटा अभी मेरा प्रवेश तुम्हारे घर में निषेध है इसलिए भोजन बाहर ही ले आओ
ऐसा क्यों कही रही माता जी आपको कोई नही रोक रहा मेरे घर के अंदर जाने से….राघव बोला
तुमलोग बहुत भोले हो मेरे बच्चे
तुम अभी कुछ नही जानते
इसलिए तो मैं आया हूं तुम्हारे घर
क्योंकि अब समय आ गया कुछ राज पर पर्दा हटाने का
पहले मुझे भोजन कराओ तब तो मैं कुछ सुनाऊंगी
परंतु
ये क्या
वैष्णवी ने सारा हलवा जूठा कर दिया और खीर में अपने जूठे हाथ को डूबो दिया
यशोदा वैष्णवी को डांटने लगी तभी आवाज सुनकर बुढिया राघव को बोलती है अपनी बच्ची को मत डांटों
यशोदा को इधर बुलाओ
राघव यशोदा को बुलाता है
क्या हुआ मेरी बेटी उसने खीर जूठा कर दिया?
हां माताजी
पर आपको कैसे पता चला
मुझे सब पता है मेरी बच्ची
जाओ वैष्णवी को लेकर आओ मेरे पास और उसके सर पर वो साड़ी का किनारा लगा कर लाना
जी माताजी …कहकर यशोदा और राघव वैष्णवी को लाने अंदर गए
पर वैष्णवी बाहर आने से इंकार करने लगी ऐसा लग रहा था जैसे उसे सबकुछ पता चल गया हो
लेकिन राघव ने जैसे ही साड़ी का किनारा उसके सर पे रखा वो अब सामान्य हो गई और उनलोगों के साथ बाहर आ गई।
अभी वो बुढिया से नजर मिला रही थी
जबकि पिछले मुलाकात में वो नजरे चुरा रही थी
राघव बेटा जरा वो साड़ी का किनारा उसके सर पर से हटाना
राघव ने जैसे ही उसके सर पर से वो किनारा हटाया वैसे ही वैष्णवी के हाव भाव बिलकुल कल मंदिर है समय हुए भाव भंगिमा से मिल रही थी
राधिका……..
ओ राधिका…
मुझे देखो मेरे बच्चे ….बुढिया बोली
मुझे नहीं देखना आपको
आप चली जाओ
आप बहुत गंदी हो
मेरे बच्चे
अनजाने में हुए गलती की इतनी बड़ी सजा तो मिल चुकी है मुझे
अब मुझे माफ करके मेरा उद्धार करो राधिका
अब और सहने की शक्ति नही है मुझमें
ह्ह्ह….. राधिका ने झिड़की दी
आप तो फिर भी हो
मैं अपनी पीड़ा किससे व्यक्त करूं?
कैसे अपना दर्द बताऊं
मैं होते हुए भी नही हूं
तुम्हारी मुक्ति में ही मेरी मुक्ति है मेरी बच्ची
मैं तुम्हे मुक्त कराकर ही चैन से अपने धाम जा पाऊंगी
मैं तुमसे फिर बात करूंगी
इतना कहकर बुढ़िया बोली राघव बेटा साड़ी का किनारा हटा दो
साड़ी का किनारा हटाते ही वैष्णवी अपनी भाव भंगिमा में आ गई।
माता ये क्या था …… यशोदा बोली
ये सच्चाई थी मेरी बच्ची
सच्चाई …कैसी सच्चाई माता जी (राघव बोला)
बेटी यशोदा तुम वैष्णवी के जूठन खीर ले आओ..
नही माता …
वैष्णवी का जूठन मैं आपको नही खिलाऊंगी
आप पहले अपनी सच्चाई बताओ
आप कौन हो?
बेटी इतनी जल्दी भरोसा उठ गया मुझपर से?
कुछ देर पहले तक तो तुम मुझे अपने घर के अंदर ले जा रही थी
यशोदा को अपने आप पर लज्जा आ गई वो तुरंत बुढिया के पैरों में गिर पड़ी और हांथ जोड़कर बोली मां मुझे माफ कर दो , मैं अपनी बेटी की हालत देखकर दर गई हूं इसलिए आप पर शक कर लिया.. और मैं ये भी भूल गई की वैष्णवी आप के कारण ही मेरी गोद में आई
मुझे माफ कर दो मां
मुझे माफ कर दो
राघव भी यशोदा के व्यवहार के कारण शर्मीदा हो गया था उसने भी हाथ जोड़कर माफी मांगी
अरे मेरे बच्चों
माफ करने वाली मैं कौन होती हूं
माफी तो मुझे चाहिए तुम्हारी बच्ची से… नही तो मैं जन्म जन्मांतर तक पृथ्वी पर यू हीं भटकती रहूंगी
जाओ मैंने तुझे माफ किया
खीर ले आओ …
यशोदा भागी भागी गई और खीर पुड़ी और हलवा जो की वैष्णवी द्वारा जूठी कर दी गई थी लेकर आई और सामने परोस दिया
खाना खाते खाते एक दिव्य तेज का आवरण उस बुढिया के शरीर पर चादर की तरह फैल गई और वही आवरण वैष्णवी को भी पूरी तरह से ढंक लिया ।
ऐसा होते हुए राघव और यशोदा बिलकुल साफ साफ देख रहे थे
उन दोनो के हांथ उस बुढिया की ओर श्रद्धा से जुड़ गए और जुड़े ही रहे।
खाना खाने के बाद बुढिया कहती है आओ इधर बैठ जाओ मेरे बच्चे
यशोदा और राघव दोनो उनके सामने बैठ गए और बुढिया ने कहना शुरू किया……
अगला भाग
कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–4) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi
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