कभी नहीं – रजनी श्रीवास्तव “अनंता” : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:

“तुम यहाँ?” 

आकाश को अपने घर पर देखकर सीमा चौंक गई। 

“क्यों? नहीं आना चाहिए था?” मुस्कुराते हुए आकाश ने पूछा।

“मैं क्या कहूं, तुम ज्यादा अच्छे से बता सकते हो! कहो, कैसे आना हुआ?” सीमा ने बिल्कुल सपाट लहजे में पूछा।

आकाश थोड़ा सकपकाया, फिर संभलते हुए बोला-

“माँ जी की तबीयत खराब है तो, देखने चला आया।”

उसने सीमा की माँ की तरफ देखते हुए कहा। सीमा अच्छी तरह से समझ रही थी कि यहाँ आने का कारण यह तो बिल्कुल भी नहीं होगा।

“फोन पर भी हाल-चाल पूछ सकते थे!”

सीमा की माँ जो अभी तक, पलंग से टेक लगाए, गिलास हाथ में लिए, बैठी चुपचाप सुन रही थीं, बोल पडी़ं-

“ऐसे कौन कहता है भला!” “ऐसा यही कहते थे। जब मैं तुम्हारी बीमारी में देखने के लिए जाना चाहती थी, जाना क्या है? वीडियो कॉल करके बात कर लो, देख भी लोगी।”

माँ के हाथ से पानी का ग्लास लेकर साइड टेबल पर रखते हुए उसने बहुत शांति से, आकाश की कही बात को दोहरा दिया। आकाश का मुंह उतर गया। सीमा की माँ बोली- “बेटा यह क्या तरीका है बात करने का! न चाय पानी पूछा, न हाल-चाल, सीधे सवाल-जवाब पर उतर आए!”

 सीमा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला हीं था कि माँ ने रोक दिया। 

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“जाओ बेटी, कुछ चाय नाश्ता लेकर आओ।” आकाश मन हीं मन बहुत खुश हो रहा था। सीमा ने एक भरपूर नज़र आकाश पर डाली, जैसे उसका दिमाग़ पढ़ लेगी और उठकर किचन में चली आई। 

आकाश उसे बिल्कुल अनदेखा करके माँ से बात करने में लगा रहा। कैसी तबीयत है? डॉक्टर ने क्या कहा? इत्यादि। 

चाय का पानी चूल्हे पर चढ़ाया तो सासुमाँ की आवाज कानों में गूंज उठी “एक ढंग की चाय बनाने तो आती नहीं तुम्हें! जिस काम के लिए जन्म हुआ है वह काम तो ठीक से आना हीं चाहिए।”

“बड़े-बड़ों को आज तक पता नहीं चल पाया कि उनके जन्म का क्या उद्देश्य है। इनको तो दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो गई है।” सोच कर उसे हंऀसी आने लगी। यह बात कहती तो वह बुरा मान जाती इसलिए, उनकी डांट का बुरा माने बिना उसने हऀसते हुए पूछा-

“किस काम के लिए जन्म हुआ है मेरा?”

“उसी के लिए जिसके लिए हर औरत का होता है। त्याग, सेवा, समर्पण, परिवार का पोषण, यही तो नारी जाति का फर्ज है। यह सब तुम्हें तुम्हारी माँ ने नहीं सिखाया और इस तरह से सास से बात की जाती है? तमीज नहीं सिखाई तुम्हारी माँ ने!”

“माँ ने तो सिखाया था कि सास माँ होती है! और सवाल पूछना बदतमीजी तो नहीं होती।”वह सोच के रह गई। 

“और, हर बात में तुम हंसने क्यों लगती हो? इतना हंसना अच्छी बात नहीं! एक तो जब से आई हो तब से इनकी तबीयत अच्छी नहीं रहती।” वो गुस्से में बोली। सीमा का मुंह उतर गया। 

“इसमें मेरी क्या गलती है, मैं जितना हो सके, सेवा करने से  नहीं चूकती।” 

उसने विरोध जताने की कोशिश की। 

“तो कोई एहसान तो नहीं करती, सेवा करना तो स्त्री का धर्म है। किस बात की टीचर हो यह सब नहीं जानती! क्या सिखाओगी बच्चों को! और बीमार भी तो वो, तुम्हारी वजह से हीं हैं। पता नहीं यह साल कैसे कटेगा।”

वह अवाक खड़ी रह गई। 

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“अब खड़ी-खड़ी देख क्या रही हो? चाय कड़वी हो जाएगी गैस बंद करो।”

“ओहहहह” 

वह सोचों से बाहर आई। 

चाय उबल चुकी थी, जल्दी से गैस बंद किया। बाहर से आकाश की आवाज आ रही थी वह अपनी माँ की तबीयत के बारे में बात कर रहा था। 

“क्या हुआ माँजी को?”

चाय लाकर उसने टेबल पर रख दिया और पूछ बैठी। 

“एक सप्ताह हुए, सीढ़ियों से गिर गई थीं, पैर टूट गया है।”

आकाश में बताया तो, उसे सचमुच अफसोस हुआ। 

“ओहहह!”

“एक्चुअली मैं तुमको लेने आया हूँ!”

आकाश ने मौका देखकर अपनी बात कही और सीमा की माँ की तरफ देखकर बोला- 

“मैं सीमा को लेकर जा सकता हूंँ?”

“हां-हां बेटा क्यों नहीं यह तुम्हारी अमानत है!” 

सीमा की माँ खुश होते हुए बोलीं मगर सीमा उबल उठी।

“आज चार महीने के बाद तुम मुझे माँ की सेवा करने के लिए लेने आए हो! वह तुम भी कर सकते हो! कामवाली रख सकते हो। मेरी माँ के लिए तुमने सजेस्ट किया था न, कामवाली रखने को!” 

“माँ जी जरा समझाइए इसे, इसको किसी ने निकाला थोड़े हीं था। यह खुद अपनी मर्जी से चली आई थी। मैंने कितना रोका, नहीं मानी। मानता हूं मैं उस समय बोल नहीं पाया! लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं हूं न! कोई इसे कुछ नहीं कहेगा!”

“तुम तब भी थे! जब मेरे होने को लेकर सवाल उठाए जा रहा थे।” 

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सीमा ने कहा तो उसकी माँ ने उसे समझाने की कोशिश की-

“बेटा सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।”

“मैं कहां पीछे हट रही हूंँ, कर रही हूं न तुम्हारी सेवा! माँ जी के पैर टूटने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर तो नहीं आती, मगर तुम्हारे हार्टअटैक की जिम्मेदारी इन लोगों पर जरूर जाती है।” 

सीमा ने आकाश की तरफ इशारा करते हुए कहा तो उसने शर्मिंदगी से सर झुका लिया।

माँ ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला हीं था कि सीमा बोल पड़ी- 

” माँ प्लीज! यह मत कहना कि क्षमा, दया, त्याग, सेवा, समर्पण यह सब नारी के गुण है। यह सिर्फ नारी के हीं नहीं, पूरी मानव जाति के गुण होने चाहिए! मैं साल भर से पहले वहां नहीं जाऊंगी!” 

वह गुस्से में बोली तो आकाश निराश होकर उठकर जाने लगा। सीमा ने कुछ सोचते हुए उसे रोक लिया। 

“सुनो, माँ की तबीयत अच्छी हो जाए, फिर मैं आ जाऊंगी।” 

आकाश ने आश्चर्य से उसकी तरफ मुड़कर देखा तो वह धीरे से मुस्कुरा दी और दृढ़ता से बोली- 

“मुझे न! तुम्हारे या किसी के भी सपोर्ट की जरूरत नहीं है। मैं खुद के लिए हमेशा खड़ी रहूंगी! मैं पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर लड़की हूँ। प्यार में तन-मन  के समर्पण की अलग बात है, मगर आत्मसम्मान का समर्पण नहीं करूंगी, कभी नहीं!”

#समर्पण

रजनी श्रीवास्तव “अनंता”

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