क्या बात है मैडम… आजकल आप अपने में खोई रहती हैं कहीं पुरानी यादों के बहाने हमें भुलाया तो नहीं जा रहा है ना …. ? आरव ने छेड़ते हुए पत्नी आकृति से कहा ….! आकृति ने मुस्कुराते हुए कहा ….जानते हो आरव…. कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है…..!
हाँ हाँ बोलो आकृति…ऐसा कौन सा ख्याल है जो तुम्हारे दिल में आता है और तुम हम सब को भूल कर अपने आप में खो जाती हो …..! आरव जानने को उत्सुक था की आकृति कहना क्या चाहती है…?
अपनी मुस्कुराहट को कायम रखते हुए आकृति ने कहना शुरू किया….
कभी-कभी ऐसे खयालों में खो जाने का मन करता है आरव ….जो हकीकत में नहीं है या हकीकत होने वाला भी नहीं है….. पर उसकी कल्पना मात्र से ही एक सुकून का एहसास होता है….।
अपनी बात की तारतम्यता बनाए रखते हुए आकृति ने कहा….जब काम करते-करते मेरे पैरों में तेज दर्द होता है ना आरव तो…. कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि ….काश मैं रानी होती और दासियाँ मेरे दोनों पैरों को दबा रही होतीं …..मेरे दिल में यह भी ख्याल आता है, उम्र के इस पड़ाव में हम मजबूरी में नहीं अपने शौक से काम करते। नौकर चाकर चारों ओर हमारी सेवा में लगे रहते ताकि मुझे योगा और खुद के लिए कुछ समय मिल पाता।
रिश्तों में सोने की चमक नहीं प्यार की चमक जरूरी है – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi
और तो और आरव कभी-कभी तो मेरे दिल में ख्याल भी बहुत बड़े-बड़े आते हैं काश ..मैं ऐसी जगह होती जहां मैं……… कहते-कहते आकृति कुछ पल के लिए रुक गई।
इसी बीच आरव सोचने पर मजबूर हो गया… क्या आकृति मुझे उलाहना दे रही है…?
माना मेरी आमदनी उतनी नहीं है कि हर सुख सुविधाएं दे सकूं पर कोशिश तो यही रहती है कि कभी बच्चों और आकृति को किसी चीज की कमी ना महसूस हो ….फिर आकृति ऐसा क्यों सोच रही है और आकृति के दिल में ऐसे ख्याल आ ही क्यों रहे हैं….!
आकृति का ही तो फैसला था कि संयुक्त परिवार में रोज-रोज के किचकिच से अच्छा है, हम अलग रहें। जिससे संबंध अच्छे बने रहेगें । चूँकि अब बच्चे बड़े हो गए ….और बेटा नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में चला गया और बिटिया की भी शादी हो गई …! जब सब कुछ ठीक-ठाक है फिर आकृति कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है के बहाने मुझे ताने तो नहीं मार रही है….?
आरव के मन में अनेक विचारों ने हिचकोले लेने शुरू किए…. पर उसने बड़े समझदारी का परिचय देते हुए एक अभिभावक की तरह आकृति का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा… देखो आकृति यह मानव स्वभाव है…जो हमारे पास नहीं होता उसकी लालसा बनी रहती है और जो पास में होता है उसका मोल समझ में नहीं आता। लेकिन आकृति तुम्हारे कुछ ख्यालों को मैं पूरा करने की पूरी कोशिश करूंगा…! माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश में आरव ने कहा।
यार मेरे भी दिल में कभी कभी ख्याल आता है- मैं अपने ऑफिस का बॉस होता और मेरे ऑफिस जाते ही सब खड़े होकर गुड मॉर्निंग …गुड मॉर्निंग सर कहते…! और मेरे बॉस मेरे अंडर में होते …तो मैं उनके साथ वैसा ही सलूक कर पाता जैसे अभी वो मेरे साथ करते हैं। और कभी-कभी तो मेरे मन में भी बड़े-बड़े खयाल आते हैं जैसे………….
जैसे क्या आरव…बोलो ना प्लीज… कहीं वो बड़े बड़े ख्याल वही तो नहीं जो मेरे मन में भी आते हैं और मुझे आपसे बोलने में हिचक होती है।
मैं सोच रही हूं हमारे मन में ये बेतुके ख्याल आते ही क्यों है ? कहीं ऐसा तो नहीं हमारे द्वारा लिए गए कुछ निर्णय ने हमें काफी अकेला कर दिया है? अब समझ में आ गया है आरव …जिंदगी में रिश्ते कितने महत्वपूर्ण होते हैं। जब से बच्चे दूर गए हैं रिश्तों और अपनेपन का महत्व समझ में आ रहा है.. बच्चों से दूर होकर हम बिल्कुल अकेले हो गए हैं….।
इसीलिए …कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हम मम्मी जी पापा जी ( सास ससुर ) को अपने पास बुला लें। एक ही सांस में आकृति ने मन में चल रहे अपने विचारों के उथल-पुथल को आरव के समक्ष रख दिया।
अंधा क्या चाहे दो आंखें…! आकृति के मुंह से यह सुनते ही आरव ने तपाक से कहा कभी-कभी मेरे दिल में भी ख्याल आता है…. काश.. हमारे मम्मी पापा भी हमारे साथ होते।
आकृति और आरव दोनों की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।
चलो कार निकालो चलते हैं मम्मी पापा को लेने…।
रास्ते भर आरव और आकृति खयालों में खोए थे कि मम्मी पापा हमें देखकर कितने खुश होंगे। सुखद अनुभूति लिए अपने पैतृक घर पहुंच ही गए ….! अरे यह क्या ….?? घर में ताला लगा हुआ है। ताला देखते ही आरव और आकृति दोनों किसी अनहोनी आशंकाओं से डर गए थे ….! पर अभी परसों ही तो बात हुई थी …पापा ने कुछ बताया नहीं कि वो कहीं बाहर जा रहे हैं…. मन ही मन आरव बड़बड़ाया।
तभी बगल वाले घर से काका निकले …आरव ने काका को देखते ही पाँव छुए ….आकृति ने भी दुपट्टे से सिर ढकते हुए काका के पाँव छुकर आशीर्वाद लिया।
आरव अपने पापा के बारे में कुछ पूछता उससे पहले ही काका ने कहा …आरव बेटा भैया (तुम्हारे पापा ) बड़े किस्मत वाले हैं जो तुम दोनों के समान बेटा और बहू मिले हैं और हिमांशु के समान पोता। अब देखो ना दो दिन पहले ही हिमांशु अपने बाबा दादी को अपने साथ शहर लेकर गया।
काका की बात सुनकर आरव और आकृति दोनों ने इत्मीनान की सांस ली। पर हिमांशु गांव आया और मम्मी पापा को लेकर शहर गया और हमें बताया तक नहीं और ना ही मम्मी पापा ने ही कुछ बताया। आरव ने तुरंत मोबाइल निकालकर हिमांशु को फोन लगाया और पूरी वस्तु स्थिति जानना चाहा।
हिमांशु ने बड़े प्यार से पापा को बताया , पापा …. वो क्या है ना , मम्मी जब भी बातें करती थीं …मेरे दूर होने की कमी और मेरी चिंता हमेशा उनकी बातों में झलकती थी ….तो फिर मेरे दिल में कभी कभी ख्याल आता था कि जैसे मम्मी पापा को मेरे लिए लगता है वैसे ही दादी बाबा को पापा मम्मी व मेरे लिए भी लगता होगा, तो क्यों ना बाबा दादी को लेकर ही आप लोगों के पास आँऊ और सरप्राइस दूं। मैंने ही इन्हें आपसे बताने के लिए मना किया था।
तू इतना बड़ा हो गया हिमांशु ..जो हमारे मन की बात पढ़ ली …बेटा थोड़ी सी समझदारी त्याग और तालमेल बैठाने की कला यदि दिल में हो ना तो ….”कभी भी रिश्तों की डोरी नहीं टूटेगी ” और कभी-कभी गलती बड़ों से भी हो जाती है जिसे शायद आज की युवा पीढ़ी अच्छे से सुधारना जानती है….!
कभी-कभी कुछ बातें कुछ भावनाएं जब तक खुद पर नहीं बितती है ना तो उस परिस्थिति का अनुभव करना या अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल होता है…।
अब सारी बातें फोन पर ही होगी या हमें घर आने का मौका भी मिलेगा हंसते हुए हिमांशु ने बात को विराम देना चाहा।
2 दिनों के बाद हिमांशु बाबा दादी के साथ मम्मी पापा के पास पहुंच गया…!!
आते ही दादी ने आरव से कहा हिमांशु हमारा पोता है। बचपन उसका संयुक्त परिवार में बीता है। बाबा दादी से उसका असीम स्नेह है… जिसे कोई नहीं मिटा सकता…और संयुक्त परिवार की कुछ खूबियां भी हैं बेटा। कुछ बातें हम बच्चों को लिख पढ़कर नहीं समझा सकते। वह परिवार में रहकर देख कर ही सीखते हैं। बहू आकृति मुझे तुम पर भी गर्व है जो भी हो तुमने हिमांशु में संस्कार बहुत अच्छे दिए हैं।
पास में खड़े बाबा जी ने भी फिल्मी अंदाज में गाना शुरू किया… कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है… कि जैसे तुझे बनाया गया है हमारे लिए हिमांशु बेटा….
जो पारिवारिक रिश्तों की डोर अनमोल विरासत के रूप में हमेशा संभाल कर रखेगा कभी टूटने ना देगा..।
और सभी प्यार भरी नजरों से एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए…।
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
साप्ताहिक विषय
# रिश्तो की डोरी टूटे ना
संध्या त्रिपाठी