ओह अर्पिता तुम भी कितनी जिद्दी हो ?
एक दो दिन की ही तो बात है ये लैपटॉप रख लो जब एग्जाम हो जाए लोटा देना।
नही मोहिनी मैं फोन से पढ़ लूंगी तुम टेंशन मत करो।
तुम्हे मेरे पास होने की पार्टी जरूर दूंगी।
लेकिन..…
नही मोहिनी मुझे अकेले चलने की आदत सी है।
और ये आधुनिक मशीनों की मोहताज नहीं हु में।
गरीब घर की हु सब मैनेज कर लूंगी।”
पर अर्पिता..
बीच में ही टोकती हुई अर्पिता बोली “मोहिनी अपने संघर्ष की लड़ाई हमेशा से लड़ती आई हु।
अपने उसूलों के खिलाफ चलना मेरे लिए मु मकिन नही ।
हा,तुम मेरी मेरी मदद करना चाहती हो उसके लिए
तुम्हे बहुत बहुत धन्यवाद।
और मोहिनी तुम इसी तरह मेरी सखी बनकर रहना।
हा,हा वो तो में हु ही और रहूंगी।
तुमसे मिलने आती रहूंगी।
तुम चिंता ना करो।
कहते है अच्छी और सच्ची दोस्ती अमीरी गरीबी और जात पात की मोहताज नहीं होती है।
वही कहानी अर्पिता और मोहिनी की दोस्ती में थी।
मोहिनी जब भी समय मिलता अर्पिता के लिए अपने घर से भोजन लेकर पहुंच जाती और दोनो सखियां मिलकर मस्ती से भोजन करती और अर्पिता हमेशा मोहिनी को
प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी को सीरियसली करने को प्रेरित करती।
एक दिन मोहिनी को शहर से बाहर अपने मामा की बेटी बहन की शादी में जाना था।
उसने बहुत जिद्द की थी
अर्पिता प्लीज तुम भी चलो,बहुत मजा आयेगा पर अर्पिता बोली ” नही मोहिनी प्लीज जिद्द मत करो
मैं नही जा सकती।”
करीब चार दिन बाद मोहिनी वापिस लौटी।
और अर्पिता से मिलने गई।
पर ये क्या अर्पिता वहा थी ही नहीं।
आस पास के लोगो से पता किया।
तो पता चला दो दिन पहले अर्पिता कमरा खाली कर चली गई।
फोन पर फोन लगाए पर अर्पिता का फोन स्विच ऑफ आ रहा था।
मोहिनी के कुछ समझ नहीं आ रहा था की आखिर अर्पिता कहा गई ।
ऐसा क्या हुआ होंगा ?
की उसने कुछ बताया भी नही।
फिर अचानक उसने अर्पिता के दिए हुए नॉट्स को खंगाले शायद कुछ मिल जाए।
एक मोबाइल नंबर उसे मिल गया।
उसने तुरंत फोन लगाया।
किसी जेंट्स की आवाज थी।
जी सर आप अर्पिता को जानते है क्या?
उधर से आवाज आई ” मेरे लिए तो मर गई अर्पिता “
जी आप आप कोन?
फोन काट दिया गया।
मोहिनी की बैचेनी बढ़ गई थी।
आखिर क्या हुआ होंगा, कहां गई होंगी?
कैसी होंगी।
जब मन पूरी तरह परेशान हो गया तब उसे भगवान की शरण में जाना उचित लगा।
मंदिर में जाकर माता जी से प्रार्थना करने लगी ” मां जहा भी हो जैसी भी उसे सुरक्षित रखना और परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करना।”
दिन, माह ,वर्ष बीतते चले गए।
मोहिनी अब अर्पिता के नक्शे कदम पर चल पड़ी।
और rpsc क्लियर कर तहसीलदार बन गई थी।
अब वो जिम्मेदार मां भी थी।
एक दिन गर्मी की छुट्टियों में मोहिनी अपने हसबैंड और बच्चो के साथ चंडीगढ़ जा रही थी।
रिजर्वेशन सीट पर एक महिला आई बोली ” शायद आपको गलत फहमी हो गई ही है ये सीट तो मेरी है
49,50 “
अपना टिकिट बताते हुए बोली ।
मोहिनी के हेसबैंड रोहित ने कहा ” अरे हा आपको भी यही नंबर दे दिए और हमे भी खैर कोई बात नही आप यहां बैठ जाइए अभी टीटी आएगा तब बात कर लेते है।
महिला बोली ” देखिए भाईसाहब मेरी दो बेटियां है अब उनको लेकर रात में इधर उधर भटकने से अच्छा है।
आप अभी बात कर आइए।
मोहित बोलता उससे पहले ही मोहिनी बोली” हा तो तुम्हे जल्दी है तो तुम बात करो ना “
आवाज कुछ जानी पहचानी थी।
महिला ने गौर से देखा और बोली ” अगर में सही हु तो आप मोहिनी “
मोहिनी चौक है ।
एकदम महिला एक चेहरे पर निगाह डाली और जोर से चिल्लाई अर्पिता तुम?
पूरा कोच एक दम शांत हो गया।
कोच में बैठे यात्री गण केवल उन दोनो को ही देख रहे थे।
एक दूसरे से गले मिलती प्रतिमा लग रही थी।
मोहिनी फिर चिल्लाई ” अचानक कहा चली गई थी तुम?”
अर्पिता ने मोहिनी को सीट पर बिठाया और अपनी दोनो बच्चियों से मिलवाया।
ये देखो ये मेरी बेटी मोहिनी है और ये ऋतु।
मोहिनी के मुख पर अभी भी एक शब्द था ” पर तुम”
अर्पिता बोली ” मोहिनी उस दिन तुम्हारे जाते ही कमरे पर भाई आ गया बोला “पापा की तबियत खराब है घर चल “
मैं उसके साथ चली आई।
पापा ने मेरी शादी पास ही रह रहे संतोष से करा दी उन्हे तो जिम्मेदारी पूरी करनी थी।
संतोष एक नंबर का पियक्कड़ था।
सारे दिन नशे में धुत्त रहता था।
उसके साथ एक भी दिन आराम से नही रही।
फिर ये मोहिनी होने वाली थी सोचा अब दिन फिर जायेंगे पर नही ।
उसका रवैया नहीं बदला।
और दूसरे साल ये ऋतु भी आ गई।
और उसके जुल्म बढ़ते गए।
मोहिनी बीच में ही बोल पड़ी ” कमाल है तुम जैसी स्वाभिमानी लड़की ने ऐसे लड़के से शादी के लिए हा भर दी।”
अर्पिता ने एक बार को चुप्पी साध ली फिर एक गहरी श्वास लेकर बोली ” तुम नही समझोंगी मोहिनी हम गरीब लोगो की जिंदगी में कई पल ऐसे आ जाते है की स्वयं के
डिसीजन पर अड़े रहना मुश्किल हो जाता है।
पापा मृत्यु शैय्या पर थे।
उनकी अंतिम इच्छा यही थी की वो मेरी शादी देख ले।
इसीलिए मुझे रातों रात जाना पड़ा।
वहां जाकर परिस्थितियों ने मुझसे मुझे ही छीन लिया।
शादी के जोड़े में मुझे देख पापा बहुत खुश थे।
और उन्होंने बहुत शांति से अपनी देह छोड़ दी।”
कई बार मन हुआ तुमसे बात कर लूं।
पर जिस हाल में मै फस चुकी थी।
तुम्हे बुलाना या बताना मुझे उचित नहीं लगा।
पर दूसरे ही पल अर्पिता खिलखिलाने लगी और बोली ” जानते हो मोहिनी अब में तुम्हारी वही अर्पिता ही हु।
एक जेंटल मेन की तरफ इशारा करते हुए बोली ” ये मेरे वही पति है पर अब मेरे और बच्चो के प्यार और विश्वास ने इन्हे सुधार दिया।”
संतोष हाथ जोड़ कर बोला ” मै संतोष बहुत बुरा था,
अत्यधिक पीने की वजह से मेरा लिवर डेमेज हो गया।
पर अर्पिता ने मेरी बहुत सेवा की ,घर घर ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर मेरा इलाज करवाया।
अपने छोटे मोटे गहने भी बेच दिए।
पर अपना हौसला नहीं तोड़ा।
और मुझे नया जीवन दे दिया।
आज मैं जो भी इसी की वजह से हु।
मेरी नासमझी के बावजूद इसी ने मेरे मम्मी,पापा की भी सेवा की।
मोहिनी बोली ” जीजू मेरी अर्पिता तो है ऐसी।
हर परिस्थिति का सामना बेखूबी करती है।
तभी अर्पिता मुस्कुरा कर कहती है ” यही जिंदगी की छाव और धूप होती है।
मोहिनी खुश होकर गाने लगती है।
” जिंदगी हर कदम एक नई जंग है जीत जायेंगे हम…”
दीपा माथुर