“सबका करें भला भगवान। सबको रखें खुशहाल और धनवान।” इन्हीं दोनों वाक्यों को सर्वेश सामने वाली दीवार पर टंगे भगवान शिव के चित्र के समक्ष हाथों को जोड़कर दुहराये जा रहा था । अभी सुबह के सात बजे होंगे।
फागुन का महीना था। मौसम सुहाना था। मंद मंद हवा बह रही थी। जो खिड़कियों से भीतर घर में आ रही थी। हाथ में दीपक लिये हुए अनीता पूजा घर से निकल कर उसके कमरे की तरफ जा रही थी तब तक ये वाक्य कानों में प्रवेश कर गये। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि उसने कभी भी उसे देवताओं को प्रणाम करते हुए नहीं देखा था।
आज क्या हो गया कि इस तरह से बोले जा रहा है? लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। घरों में दीपक दिखाने के बाद उसके पास गयी। पूछा — ” मुँह धो लिए हो?”
उत्तर दिया –” हाँ माँ। “
रसोई घर से दो कप चाय कुछ देर बाद लेकर आयी। दोनों साथ साथ पी रहे थे। मांँ ने कहा —” बेटा! आज मैं तुम पर बहुत खुश हूंँ। भगवान तुम्हें सद्बुद्धि दें। एक दिन तुम्हारा भाग्य अवश्य बदलेगा
। ईश्वर ही सबका मालिक है। वही जिसको जैसे रखना चाहे वैसे ही रखेगा । तुम तो लगातार परिश्रम कर रहे हो लेकिन अब तक कोई परिणाम नहीं मिला। खैर इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।अपना अपना भाग्य होता है। लिलार में जो लिखा है वही तो जीवन में मिलेगा । तुम्हें निराश होने की जरुरत नहीं है।”
सर्वेश माँ की बातें ध्यान और धैर्य पूर्वक सुनता रहा। परंतु उसका मन वहीं चला जाता था। यद्यपि वह उसके संबंध में सोचना नहीं चाहता था फिर भी आहत मन खुद को रोक नहीं पाता था। और वहीं पहुँच जाता था। उस शाम की घटना की चर्चा उसने आज तक माँ से नहीं की थी और नहीं अपने छोटे भाई को इसका अहसास होने दिया।
वह पढ़ा-लिखा और सामाजिक सरोकार रखने वाले लोगों में से एक है। व्यवहार कुशल है। अपने आचरण से किसी को भी पीड़ित नहीं करता। उसकी वाक् पटुता के सभी कायल हैं। ऊंँची ऊँची डिग्रियांँ उसके पास हैं। कैरियर बहुत ही अच्छा है। यह तो उसकी बदकिस्मती और सरकारी कुव्यवस्था है कि
वह अब भी एक बेरोजगार युवाओं की पंक्ति में खड़ा है। जिसके मन में जो कुछ भी आता है बेरोजगार समझ कर अनावश्यक टिप्पणी कर दिया करता है। वह सुनकर कुछ कहता तो नहीं लेकिन मन ही मन दुखी तो हो ही जाता है।
वह अब तक अविवाहित है। उसकी शादी के लिए लड़की वाले आते हैं किन्तु यह कहकर टाल दिया करता कि वह एक बेरोजगार है। इस तरह से समय बीतता गया।
एक दिन अभय ने अनीता से कहा –” यह हमारे लिए चिंताजनक है। यह बड़ा लड़का है। शादी से इंकार करता रहा है। यही हाल रहा तो एक दिन इसकी शादी की उम्र बीत जायेगी और कुंँवारा ही रह जायेगा जो सामाजिक दृष्टि से शिकायत की बात है। साथ ही छोटा लड़का भी तो है। उसकी भी शादी करनी ही है। “
अनीता को यह बात सही लगी। उसने कहा ” क्यों नहीं सर्वेश को बुला कर समझाया जाय कि शादी के लिए तैयार हो जाओ। तुम्हें किसी भी तरह से दिक्कत नहीं होगी। सारा खर्च वहन करने के लिए हम लोग हैं ही। फिर बेमतलब परेशान मत हो। शायद सुन ले।”
अभय डालमिया नगर में स्थित एक कंपनी में कार्यरत हैं। अच्छी तनख्वाह मिलती है। घर पर खेत बधार है। कायदे से बना हुआ मकान भी है। छोटा लड़का धर्मेश नौकरी करता है। अब पारिवारिक दायित्व बहुत अधिक नहीं है। एक बेटी थी निर्मला जिसकी शादी पहले ही हो गयी है। उसका सुखी परिवार है।उसका पति शुभम एक सरकारी स्कूल में शिक्षक है।वहाँ सब कुछ ठीक ठाक है।
अनीता के कहने पर अभय ने सर्वेश को बुलाकर पूछा — ” बेटा ! तुम मेरी समस्या का समाधान कर सकते हो।
सिर्फ तुम्हारे सहयोग की अपेक्षा है।
मैं यह कहना चाहूंँगा कि मेरी नौकरी अभी बहुत वर्षों तक है। कोई दायित्व अब मेरा नहीं है। मेरी हार्दिक इच्छा है कि तुम्हारी शादी कर दूँ। शादी के बाद तुम एक से दो हो जाओगे और समय के साथ दो से चार हो सकते हो। तुम इसके लिए निश्चिंत रहो। मैं सर्वदा इसका भार वहन करने के लिए तैयार हूँ।”
सर्वेश ने कहा –” मुझे एक सप्ताह का समय चाहिए ताकि इसके संबंध में गंभीरता से विचार कर लूँ ।”
अभय ने उसे ऐसा करने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी। एक सप्ताह के बाद उसने अपने पिता को बताया कि — ” आप मेरा विवाह कर सकते हैं। यदि मेरी नौकरी नहीं हुई तो चाय-कॉफी की दुकान खोलने के लिए पैसे देंगे। “
चाय-काफी खोलने की बात अभय को समझ में नहीं आयी तो उन्होंने पूछा — ” सर्वेश! इस तरह से दुकान की चर्चा क्यों करने लगे? “
” समय आने पर आपको इसकी जानकारी मिल जायेगी। अभी मैं कुछ नहीं कह सकता”— उसने जवाब दिया।
अभय ने अनीता को सारी बातें बतलायी। सुनकर आश्चर्यचकित हुईं। किंतु किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि विवाह करने के लिए वह राजी हो गया है।
बैसाडीह के रहने वाले धर्मराज तिवारी की लड़की सुभद्रा के साथ बड़े ही धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया। सुभद्रा भी पढ़ी लिखी एक समझदार लड़की है तथा व्यवहार कुशल भी। वह संयुक्त परिवार की लड़की है। उसे भली-भांँति पता है कि परिवार में किस तरह से रहा जाता है। वैसे यहांँ तो एकल परिवार है।
धर्मेश तो देवर ही ठहरे। देवरानी अभी हैं नहीं। परिवार के नाम पर पति के अतिरिक्त सास-ससुर ही हैं जो हमारे माता-पिता के समान हैं। मेरे पति के माता-पिता हैं तो वे हमारे भी उसी तरह से हैं। जब इतनी-सी समझ सुभद्रा रखती है तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह परिवार के लिए कभी बोझ या समस्या साबित नहीं होगी ।
समय सरकता गया। परिवार में खुशियांँ पसरती गयीं । सुभद्रा ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका जन्मोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया गया। सारे रिश्तेदारों को आमंत्रित किया गया । सुभद्रा के माता-पिता भी आये थे। खूब चहल-पहल थी।
सभी लोग दो तीन दिनों के बाद अपने अपने घर चले गये।
अब तक सर्वेश को कोई नौकरी नहीं मिली है। निरंतर प्रयासरत है। एक दिन सुभद्रा से कहा —- ” देखो मेरी उम्र सिर्फ एक साल ही सरकारी नौकरी के लिए बची हुई है। यदि कहीं कोई नौकरी नहीं मिलेगी तो मैं चाय-कॉफी की दुकान खोलूँगा जिसके लिए पैसे पिता जी देंगे। ऐसा ही समझौता हमारे बीच हुआ है। “
सुभद्रा ने कुछ कहा तो नहीं केवल मुस्कुरा कर रह गयी।
एक दिन सुभद्रा अपनी सासु मांँ के बाल में तेल – कंघी कर रही थी साथ ही मन लगाने के लिए बातें भी करती थी। इसी क्रम में उसने कहा — ” वे तो एक दिन कह रहे थे कि जब नौकरी नहीं मिलेगी तो चाय-कॉफी की दुकान खोलेंगे।”
अनीता ने — हांँ में हांँ मिलाया।
फिर दोनों हँसने लगीं। इसी बीच अभय आ गये। दोनों को हँसते हुए देखकर पूछा। अनीता ने कहा –” उसी चाय-कॉफी की दुकान खोलने की बात पर।”
वह भी मुस्कुरा कर रह गये।
वह दिन सामने आ ही गया जब
सर्वेश की उम्र सरकारी नौकरी लायक नहीं रह गयी। अब वह इससे दुखी नहीं है जबकि पहले कभी रहा करता था। वह खुश है कि उसकी अपनी अलग पहचान होगी। लोग कहेंगे कि एक पोस्ट ग्रैजुएट व्यक्ति की दुकान है। मेरी दुकान सबसे अच्छी होगी। वह मुझे सम्मान दिलायेगी। मेरा प्रचार प्रसार होगा। चारों ओर चर्चा होगी वहांँ एक ग्रैजुएट चाय-कॉफी वाले की दुकान खुली हुई है। लोग बाग आयेंगे और मेरी चाय की प्रशंसा करेंगे। चूंँकि मेरी चाय कुल्हड़ वाली होगी जिससे सोंधी-सोंधी महक मिलेगी और लोग खूब चाव से चाय की चुस्कियांँ लेंगे।
सर्वेश के बेटे के जन्मोत्सव के अवसर पर धर्मेश भी आया था। वह अन्य रिश्तेदारों के जाने के बाद भी एक सप्ताह के लिए रहा था। इसी बीच एक दिन सुभद्रा से बातचीत करने के क्रम में उसने कहा —” वह कई महीनों तक भैया को रुपये भेजता रहा था। फिर वे जब उसका दुरुपयोग करने लगे थे तो उसने भेजने से इंकार कर दिया।”
इस बात से सुभद्रा तनिक भी विचलित नहीं हुई और न किसी प्रकार की गलत धारणा ही बनायी। सिर्फ इतना ही कहा था कि — ” भाई हो तो आपके जैसा जो सदा ही मददगार साबित हो।”
धर्मेश के चले जाने के बहुत दिनों बाद परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर बातें कर रहे थे। हममें एक दूसरे के लिए सहयोग का भाव रखना चाहिए। इससे पारिवारिक जीवन सुखमय और उसकी पृष्ठभूमि भी प्रशंसनीय होती है। तब अनीता ने कहा कि —” सर्वेश के जाने बिना धर्मेश को मैंने यह कहा था कि यदि तुम चाहो तो कभी कभी भैया के खाते में रुपये भेज दिया करो। वह भेजता रहा था लेकिन कब और क्यों भेजना बंद कर दिया इसकी जानकारी उसे नहीं है।”
इस पर सुभद्रा ने कहा —” एक दिन देवर जी बतला रहे थे कि भैया के लिए वह रुपये भेजता था किन्तु जब उसे ऐसा लगा कि वे उनका दुरुपयोग कर रहे हैं तो भेजना बंद कर दिया।”
अभय और अनीता दोनों धर्मेश की बातें सुभद्रा से सुनकर बड़े दुखी हो गये। दोनों ने एक ही साथ कहा कि —” उसने ऐसा करके बहुत ही गलती की है। वह इतना बड़ा और समझदार हो गया है कि अपने बड़े भाई के लिए इस तरह का व्यवहार करने लग गया। जिस दिन उसकी शादी हो जायेगी उसके बाद तो वह सबको भूल जायेगा।”
वहीं सर्वेश सबकी बातें सुन रहा था।
उसने इससे संबंधित कुछ कहने की अनुमति माता-पिता से माँगी । उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी। तब सर्वेश ने कहा — ” मैं आप लोगों से बिलकुल सही सही बताना चाहूँगा कि क्यों वह विवाह करना नहीं चाहता था और चाय-कॉफी की दुकान खोलने की बातें कर था। एक दिन का वाकया है कि वह अपने कुछ दोस्तों से शेयर कर रहा था कि भैया कुछ करना नहीं चाहते हैं। नौकरी नहीं मिलेगी तो क्या आप ऐसे ही परिवार पर बोझ बने रहेंगे। कोई रोजगार तो करना ही होगा। कम से कम आप चाय-पान की दुकान ही खोलिये लेकिन गुजर-बसर करने के लिए आपको कोई न कोई धंधा तो करना ही होगा। मैं कब तक इनको रुपये भेजता रहूँ। इन बातों को सुनकर मुझे बहुत आत्मग्लानि हुई। यह मेरा छोटा भाई जिसकी पढ़ाई के दौरान मैं कहांँ कहाँ नहीं गया। हर तरह से अपने बड़े होने का फर्ज निभाया। लेकिन भाई की इन बातों ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने उसी दिन यह निर्णय ले लिया था कि अपने जीवन निर्वाह के लिए वह चाय-कॉफी की दुकान ही खोलेगा।
इसीलिए आप लोगों से भी मैंने यह कहा था। “
सर्वेश की भावना को उसके माता-पिता ने तव्वजो दिया और कहा कि — ” सर्वेश! तुम जो चाहो वो करो हमलोग हर तरह से तैयार हैं। हमें यह विश्वास है कि तुम अपने जीवन में वह सब कुछ अर्जित करोगे जिसकी कल्पना किसी ने न की होगी।”
ऐसा ही हुआ। चाय-काफी की दुकान स्टेशन के पास मुख्य मार्ग पर खुल गयी। वह अत्याधुनिक तकनीक से संचालित होने लगी। उस दुकान का नाम रखा गया — ” ग्रैजुएट चाय-कॉफी मैनेजमेंट”।
वहांँ खूब भीड़ होने लगी। बड़े बड़े नेता अभिनेता मंत्री संतरी सभी सम्मानित लोग आने लगे। प्रचार प्रसार बहुत दूर दूर तक हो गया। नये नये प्रयोग किये जाने लगे जिससे चाय-कॉफी के स्वाद में बहुत बदलाव हुआ। कई तरह से चाय-कॉफी बनने लगी जिसकी सबने भरपूर सराहना की।
आज की तारीख में सर्वेश को नौकरी से वह सम्मान नहीं मिलता जो इस चाय-कॉफी की दुकान से मिला है। इस तरह से वह ब्रांड एंबेसडर के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। उसकी प्रतिभा निखरती गयी और सोहरत बढ़ती गयी। सर्वेश बहुत होनहार और कुशाग्रबुद्धि वाला बचपन से ही रहा है। उसने उस अपमान को अवसर में परिवर्तित करके स्वयं के लिए वरदान साबित कर दिया।
अयोध्याप्रसाद उपाध्याय, आरा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
#अपमान बना वरदान