जब नेहा शादी होकर आई रसोई के कार्यों से अनभिज्ञ थी।
नेहा की मम्मी ने पहले ही कह रखा था।
मेरी नेहा रसोई के काम में परफेक्ट नहीं है ये बात सासू मां अच्छी तरह से जानती थीं।
इसीलिए पैर छुआई के समय एक डायरी देते हुए कहा
” बेटा मैं रहूं या ना रहूं ये डायरी हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी।
उसके बाद उन्होंने मेरे गले में एक चैन पहना दी।
नेहा के मन में डायरी को लेकर बहुत उत्साह था आखिर क्या लिखा होंगा इस डायरी में।
खैर मेहमानों की आवभगत और विदाई के बाद पहली बार मायके जाना हुआ।
यह भी रस्मोरिवाज का हिस्सा ही तो था।
मम्मी ने नेहा के पसंद की बहुत सारी रेसिपी बना कर रखी थी।
देखते ही पेट में चूहे कूद पड़े ऐसा लगा जन्मोजनमांतर तक भूखी थी।
मम्मी ,पापा भैया नेहा को देख देख कर हंस रहे थे वहीं नेहा के हेस्बेंड प्रवेश की हालत खराब हो रही थी।
प्रवेश को तो काटो तो खून नहीं उसके होठ पीले पड़ गए।
बोला ” नेहा आप तो ऐसे खाना खा रही हो जैसे हमने आपको दो दिन तक खाने को कुछ नहीं दिया “
नेहा मुंह में ग्रास ठूसती हुई बोली ” अरे भोजन तो किया था पर खाना नहीं खाया ना?
वो भी मम्मी के हाथ का ?”
पता ही नहीं चला एक दो दिन कब निकल गए वापिस ससुराल आना था।
और ससुराल आते ही दादी साहब बोलीं ” बहु आज तो रसोई में तुम्हारा पहला कदम है क्या बनाना पसंद करोंगी?
हमारे जमाने में तो बड़े बुजुर्ग जो मुंह से बोल देते थे हमे वही बनाना पड़ता था अब तो जमाने के हिसाब से….
बाते हैं जो तुम्हे पसंद हो वही मिठाई बना लो ।
यू ट्यूब का जमाना है।
नेहा के। तो पसीने छूट पड़े अगले बगले झांकने लगी।
तभी मम्मी जी ने कहा ” चलो नेहा आपको रसोई में कौनसा सामान कहां पड़ा है बता दूं।
फिर आप अपनी पाक कला की अद्भुत रेसिपी से दादी साहब को अवगत करवाना।
रसोई तक चलने की भी हिम्मत नही बची थी।
लगा अभी लड़खड़ा कर गिर जाऊंगी।
जैसे तैसे पसीने पोछती हुई रसोई घर तक पहुंची।
मम्मी ने मुस्कुरा कर कानों में कुछ फुसफुसाया ।
ज्वालामुखी सा अशांत मन शांत हो गया ।
करीब एक घंटे बाद रसमलाई लेकर दादी साहब के श्री कमलों के पास भोग अर्पण करने ले गई।
दादी साहब मुस्कुराईं और अपने छोटे से पर्स को खंगालने लगीं।
तभी छोटी ननद बोली ” दादी साहब पहले मीठा चखो तो सही।”
फिर डिसाइड करना जेब कितनी ढीली करनी है।
दादी साहब बोलीं ” बातें आ रही हैं चिंता मत कर मेरी
लाड़ली बहु के बनाए मीठे में अगर नमक भी होंगा तो भी पूरे में से पूरे नंबर हैं आखिर मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है।
और 2100/ का नोट नेहा के हाथ में रख दिया।
दादी साहब ने जब रसमलाई का एक पीस नेहा के मुंह में रखा तब नेहा की आखों में स्नेह के आंसू बरबस ही भर आए सासू मां के हाथों में भी वही जादू था जो मम्मी के हाथों में होता था।
दादी साहब ने और घर के सभी सदस्य ने रस मलाई की खूब तारीफ की।
नेहा दादी साहब को बताने ही वाली थी कि ये मिठाई मम्मी जी ने ही बनाई है की मम्मी जी बोलीं” बहुत देर हो गई किचन में काम करते करते थक गई होंगी जाओ अब थोड़ा आराम कर लो ।
नेहा अपने कमरे की तरफ जा रही थी पीछे से दादी साहब मम्मी जी को कह रही थीं ” बहू के हाथ में तो तुम्हारे हाथों सा जादू है “
नेहा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
सोच रही थी सासू मां के हाथों का खाना भी लजीज ही होता है वही प्यार भरी मिठास पर शायद समझने में ही मिस्टेक हो जाती होंगी।
सोचते सोचते कमरे में चली गई।
कमरे में जाते ही मम्मी जी की दी हुई डायरी याद आ गई।
अलमारी खोल कर डायरी निकाल पन्ने पलटने लगी।
लगा मानो घर परिवार के सारी परंपराए और संस्कार समेट कर एक मोतियों की माला में सारे वर्ण पिरो दिए हो।
एक से बढ़ कर एक रेसिपी ।
देख कर सोचने लगी ” क्या मैं संभाल पाऊंगी?”
तभी प्रवेश कमरे में आ गए बोले ” क्यों मैडम आज तो पेट भरा या नहीं।”
नेहा बोली ” मां तो प्यार से सूखी रोटी भी खिला देती है ना तो पेट भर जाता है ये तो रसमलाई है।”
तभी मम्मी जी आ गईं ” बोलीं डायरी देख कर घबराना नहीं अभी तो मैं जिंदा हूं तुम पर आंच भी नही आने दूंगी।
पर इस परिवार का भविष्य तो तुम्हे ही संभालना होंगा ना?
बस इसीलिए एक छोटी सी कोशिश है।”
इन बातों को सालों बीत गए कोरोना जैसी महामारी ने दस्तक दे दी थी।
घर के हालात दिन पर दिन खराब होते नजर आ रहे थे।
मम्मी जी तो साथ नहीं रहीं पर उनकी डायरी देख कर रेसिपी बनाना शुरू किया।
शुरू में घर घर पहुंचाना पड़ा पर धीरे धीरे ऑर्डर आने शुरू हो गए।
और नेहा को रसोई ने भी एक मुक्कमल प्राप्त कर लिया।
क्योंकि मिठास तो आनी ही थी वात्सल्य जो घुल गया था।
नेहा के अचीवमेंट पर जब भी नेहा की कोई प्रशंसा करता वह मुस्कुरा कर एक ही बात कहती
” मेरी मम्मी के हाथों के स्वादिष्ट और स्नेहपूर्ण व्यंजन
का तो मैने आनंद लिया था लेकिन मेरे हाथों में जादू तो
मेरी सासू मां की देन है।
मैं हमेशा उनकी आभारी रहूंगी।
मेरी हर रेसिपी सासू मां की डायरी से निकल कर आप तक पहुंचती है।”
काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हो ?
मैं आप सभी के लिए दुआएं जरूर करूंगी और फिर उसकी
मुस्कुराहट उसकी विजय गाथा में दुगुना आत्मविश्वास भर देती।
बात भी सही है ।
मां हमे जीवन देती है।
लेकिन जीवन जीना ओर संघर्षो के लिए तैयार सासू मां ही करती हैं।
दीपा माथुर