कांच के टुकड़े को हीरा समझने की भूल की!! – मनीषा भरतीया

 कौशल्या जी अपने भरे पूरे परिवार में पति और बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी |,  उनके परिवार  में पति राजेश दो बेटे…बड़ा निलेश और….छोटा शैलेश बहु नीलिमा और पोता पोती बबलू और पिंकी थे

|निलेश की शादी को 4 साल हो चुके थे नीलिमा बहुत ही अच्छी लड़की थी घर के सारे कामों में दक्ष और निपुण थी |,फिर चाहे खाना बनाने का काम हो या सिलाई कढ़ाई का|,  सारे काम फटाफट कर लेती थी उसके रहते मजाल हैं, कि कौशल्या जी एक गिलास पानी का भी उठाएं|, घर में बस झाड़ू पोछा ,बर्तन की बाई रखी हुई थी बाकी नाश्ता, दो वक्त का खाना, कपड़े धोना सब नीलीमा  अकेले ही करती थी…बस एक ही खराबी थी, उसमें कि वो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी..सिर्फ दसवीं तक ही पढ़ी थी|, क्योंकि कम उम्र में ही उसकी मां गुजर गई थी  इसलिए उसने अपने पिताजी और छोटे भाई- बहनों  की देखरेख के लिए अपनी पढ़ाई   बीच में ही छोड़ दी . ..घर के सभी सदस्यों के साथ उसका स्वभाव मधुर था||, देवर तो कभी-कभी मजाक में छेड़ भी देता.,..भाभी आप मेरे लिए बिल्कुल अपनी परछाई ही लाना | अब घर में फिर से शहनाई बजने की तैयारियां हो रही थी…..क्योंकि नीलिमा के देवर शैलेश की शादी जो पक्की हो गई थी| शादी का मुहूर्त 20 नवंबर का निकला था शादी की सारी जिम्मेदारी  नीलिमा ने अपने कंधों पर ले ली थी…..गीत वाली, मेहंदी वाली, शादी की शॉपिंग और  अपने होने वाली देवरानी के लिए गहने वगैरा-वगैरा…..



देखते-देखते 20 नवंबर आ गया, शैलेश और श्रेया शादी के बंधन में बंध गए| श्रेया नीलिमा से बिल्कुल अलग थी जहां नीलिमा को सबके लिए खाना बनाना, काम करना अच्छा लगता था …..वही श्रेया  काम से जी चुराती थी |, उसने तो आते ही सब से कह दिया कि मैं शादी से पहले भी आईटी कंपनी में जॉब करती थी ……अभी भी वही करूंगी अपनी पढ़ाई को  बर्बाद नहीं करूंगी …..मुझसे यह सब घर के काम नहीं होंगे……सबने सोचा ठीक है बहू की अगर यही इच्छा है…तो यही ठीक है… ठीक हो भी क्यों न  ₹40000 महीना जो ला रही थी और शैलेश श्रेया का पति ₹50000 महीना लाता था|, मिला- जुलाकर दोनों पति-पत्नी ₹90000 महीना कमा रहे थे…जबकि नीलेश नीलिमा का पति जिसकी  स्कूल में टीचर की जांब थी, उसकी तनख्वाह सिर्फ ₹25000 महीना की थी|,…

इसलिए इस बात को लेकर श्रेया सारा दिन जिठानी नीलिमा और जेठ नीलेश को ताना मारती और बेइज्जत करती रहती यह कहकर कि आपके पति जितनी तनख्वाह लाते हैं …उतने में आप चारों का गुजारा तो मुश्किल  ही है वह तो मेरे पति  पैसा  देते हैं उसी से घर  चलता है….और अब तो मैं भी देती हूं….मेरी और मेरे पति की आधी से ज्यादा तनख्वाह तो घर में ही खर्च हो जाती है…..

और हमारे रोज के  खर्चे…कल को हमारे भी बच्चे होंगे तो  हमें उनके भविष्य के लिए भी तो कुछ संजोना है, मैं तो कहती हूं कि दीदी आप भी कुछ काम कर लीजिए ताकि थोड़ी मदद हो जाए तब  कौशल्या जी भी अपनी बहू की हां में हां मिलाते हुए बोली अरे श्रेया बेटा ये तेरे जितने पढ़ी-लिखी थोड़ी ही है, इसे सिर्फ खाना बनाना,  या घर के काम के अलावा और कुछ आता ही नहीं है,

तो श्रेया ने  अपनी जिठानी का मजाक उड़ाते  हुए कहा   वैसे ठीक ही  है……मांजी  अगर खाना बनाने वाली और कपड़े धोने वाली मेड रखेंगे तो इतने आदमियों का ₹8000 महीना तो ले ही लेगी ….भाभी के रहने से ये मदद हो जाती है….नीलिमा रोज श्रेया  और कौशल्या जी की जली कटी बातें सुनकर भी चुपचाप खून का घूंट पीकर रह जाती|,  लेकिन यह तो रोज का हो गया था  नीलिमा का साथ देने वाला कोई भी नहीं था

शैलेश उसका देवर और ससुर राजेश जी कभी कौशल्या जी और श्रेया को नही डांटते  कि  तुम लोगों को इस तरह से नीलिमा( बहू)से बात नहीं करनी चाहिए |, उसने नीलेश भी अपनी व्यथा बतानी चाही तो  उसने कहा कि क्या कर सकते नीलिमा हम कहां जाएंगे? ?  वैसे सही तो है आज के जमाने में ₹25000 में क्या होता है…..फिर

हमारे दो दो बच्चे भी हैं….नीलेश की बात सुनकर नीलिमा को समझ में आ गया कि जो कुछ करना है…..उसे ही करना पड़ेगा!!



 

इसलिए उसने मन में ठान लिया…कि अब वह यह जिल्लत और ताना नही सहेंगी|, इसलिए उसने 2,3 तरह के सलवार सूट  सिलकर सूट की  दुकान में दिखाएं  तो दुकानदार को सूट के डिजाइन और काम में सफाई बहूत पसंद आई… और दुकानदार ने उसे 10 सूट सीलने का आर्डर दे दिया…..और दुकानदार ने जो  एक सप्ताह का समय निर्धारित किया . ..नीलिमा ने निर्धारित समय पर सूट शील कर आर्डर पूरा कर दिया….. धीरे-धीरे उसे 10 से 20 और 20 से 40 सूट के आर्डर मिलने लगे….  और उसने सारे आर्डर वक्त पर पूरे कर दिए…..  उसे

दुकानदार एक सूट सिलने के ₹300 देता था….

….  अब उसका विश्वास भी बढ़ गया था….  उसे

समझ में आ गया था कि अगर वो रोज की दो सूट सिलेगी तो महीने में ₹18000 आ जायेंगे…. और

घर का खर्च  नीलेश की कमाई और उसकी कमाई मिलाकर आराम से चल जाएगा |

इसलिए उसने नीलेश से बात करने की सोची ….जैसे ही नीलेश आया तो उसने नीलेश के हाथ में रुपए रख दिये….  और सारी बात बताई |

सारी बात सुनकर नीलेश को अपनी पत्नी पर बहुत गर्व महसूस हुआ उसे भी उसकी बात सही लगी और उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया|

धीरे-धीरे नीलेश  और नीलिमा की ग्रहस्थी अच्छी चलने लगी |

निलेश को घर छोड़े 1 साल हुआ ही नहीं था ….की खबर मिली कि उसके पिता की हार्टअटैक के कारण असमय मृत्यु हो गई…..  और वह चल बसे !!

   ससुर ने आंख मूंदी नहीं कि श्रेया ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए…. खाना बनाना और कपड़े धोना तो पहले से ही   जेठानी के घर छोड़ने के बाद सासू मां से ही करवाती थी…. पर अब तो शर्म की सारी हदें ही पार कर ली…..  कामवाली बाई छोड़ दी….. बर्तन और झाड़ू -पोंछा भी सासू मां से ही करवाने लगी…..   पति को गुजरे अभी 12 दिन भी नहीं हुए थे….  एक तो पति  के अचानक जाने का दुख…..  बुढ़ापे का शरीर.,… और ऊपर से पूरे घर का काम अकेले करना कौशल्या जी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी..,.. उनकी तबीयत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी….. एक दो बार उन्होंने बेटे शैलेश से कहा भी कि बेटा हमारे घर क्या कमी है जो बहू ने कामवाली को निकाल दिया ?? तो शैलेश ने बजाय अपनी पत्नी को डांटने के मां से कहा की वैसे भी तुम दिन भर करती क्या हो बाबूजी भी अब नहीं रहे घर का काम होता ही कितना है??? थोड़ा सा काम अगर कर लोगी तो  कुछ बिगड़ नहीं जाएगा |



छोटे बेटे और बहू का ऐसा व्यवहार देखकर उसके सामने एक एक करके नीलिमा  और बड़े बेटे की अच्छाई जहन में आने लगी… बीते दिनों की याद करते हुये अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए कौशल्या जी राम मंदिर की तरफ जा रही थी….. मंदिर पहुंची होगी कि बस चक्कर खाकर बेहोश हो गई. … इत्तेफाक से उसी  समय उनकी बहू नीलिमा भी मंदिर आई और उसने देखा कि सासु मां बेहोश पड़ी है….. सबसे पहले तो पानी के छींटे मारे पर कौशल्या जी (सासू मां )होश में नहीं आई उसने बिना वक्त बर्बाद किए पुजारी जी और मंदिर में मौजूद दो तीन आदमियों की मदद से उन्हें टैक्सी में बिठाया…..  और डॉक्टर के पास ले गई. …. डॉक्टर ने चेकअप करके बताया कि ज्यादा थकान और कमजोरी की वजह से इन्हें चक्कर आ गया…..  इन्हें

 

ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत है…. नीलिमा ने पूछा डॉक्टर साहब कोई घबराने की बात तो नहीं है ना? ? नहीं ऐसी कोई बात नहीं है …..बस ये कुछ दवाइयां लिखी है….जिन्हें वक्त पर दे दीजिएगा और इनके खाने-पीने का ध्यान रखिएगा..  फिर  नीलिमा कौशल्या जी को अपने घर ले आई. ….. कौशल्या जी तो शर्म के मारे अपनी बहू से आंखें तक नहीं मिला पा रही थी….पर फिर भी उन्होंने हाथ जोड़कर अपनी बहू से माफी मांगी और कहां…..  बेटा मुझे माफ कर दें|




बेटा मैं पैसों की चमक में अंधी हो गई थी अपने सोने जैसे बहू बेटे के साथ ज्यादती की….. कांच के टुकड़े को हीरा समझने की भूल की… उस पर भरोसा किया..बेटा क्या मैं यहां तुम लोगों के साथ रह सकती हूं? ??

तब नीलिमा ने कहा मांजी आप कैसी बातें कर रही है यह घर आपका ही है….. आप अगर यहाँ हमारे साथ रहेंगी तो हमें बहुत अच्छा लगेगा |

 

दोस्तों ये सही है कि पैसों की चमक में इंसान अंधा हो जाता है लेकिन क्या इतना अंधा होना चाहिए कि किसी की अच्छाई ही ना दिखें…. आपको क्या लगता है कि श्रेया ने जो नीलिमा के साथ किया वह सही था? ? ? शैलेश ने जो अपने भाई के साथ किया क्या वो सही था?? मैं कहती हूं अगर एक भाई कमजोर है और  दूसरा भाई सजोंर है….तो क्या वो मदद नहीं कर सकता???

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मेरी स्वरचित कहानी

 

@ मनीषा भरतीया…..

#भरोसा 

आपकी सखी

Betiyan(M)

 

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