काली साड़ी – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

“तुमको क्या लगता हैं, ये रंग तुम पर अच्छा लगेगा, एक तो रंग भी काला ऊपर से काली साड़ी, उफ़ कौन समझाये इसे…” ऊषा जी ने सर पर हाथ मारते हुये रति को कहा।

काली साड़ी में लिपटी सलोनी सी रति, ये सुन शर्मसार हो गई।चुपचाप अपने कमरे में वापस आ, साड़ी बदल ली। ये देख ऑफिस के लिये तैयार रमित ने पूछा साड़ी क्यों बदल ली।”मुझे अच्छी नहीं लग रही थी। अब से मै हलके रंग की साड़ी पहना करुँगी। रमित समझ गया, आज फिर रति को माँ की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। वो गुस्से से बाहर निकलने लगा तो रति ने उसका हाथ पकड़ लिया. आँसू भरी आँखों से रमित को बोली -माँ जी या किसी और का कोई दोष नहीं, मेरा रंग कम हैं ये सच हैं, इसको स्वीकार तो करना ही हैं,

फिर उन्होंने गलत नहीं कहा था, मुझे खुद ही काले होकर काली साड़ी नहीं पहननी चाहिये “। रति जानती थी रमित बाहर निकला तो घर की शांति भंग हो जायेगी। तुरंत बोली रमित जल्दी चलो, आज मेरी एक जरुरी मीटिंग भी हैं हाँ चल रहा, पर तुम अपनी काली साड़ी वापस पहनोगी, तभी चलूँगा, रति फिर काली साड़ी पहनकर आ गई।, रमित के संग जल्दी कर वो उसको गुस्सा करने का मौका नहीं देना चाह रही थी।

 अब रति करे भी तो क्या, काला रंग उसको और रमित को बहुत पसंद हैं। रमित ने तो कॉलेज के फेयरवेल समारोह में उसे सितारों वाली काली साड़ी में गीत गाते देख कर ही अपना दिल हारा था। रति के सुरीले कंठ ने समां बाँध दिया था। तभी रमित ने सोच लिया था, इसे अपना जीवनसाथी जरूर बनाऊंगा।रति का बस रंग ही कम था, नाक -नक्श बहुत तीखे थे उसपर होठों की मुस्कान और गालों में पड़ते गहरे डिम्पल, सबको बहुत आकर्षित करते।उसके मधुर व्यवहार के तो बहुत लोग कायल हैं।

रति और रमित का प्रेम विवाह हैं, रमित के घर में सब का रंग साफ था, इसलिये जब रमित ने साँवली -सलोनी रति को पसंद किया तो घर में भरपूर विरोध हुआ। पर रमित की जिद ने उनको रति को बहू बनाने को मजबूर कर दिया।रति बहू बन कर आ तो गई, पर घर में रंग -भेद का शिकार बन गयी। उसके तीखे नयन -नक्श भी उसे शर्मसार होने से नहीं बचा पाते। रमित उसे समझाता, तुम दूसरों की बात दिल पर मत लो, वो करों जो तुमको पसंद हो। जब तुम मुझे पसंद हो तो तुम दूसरों के पसंद -नापसंद को लेकर क्यों परेशान हो।पर रति कितना भी धीरज रखें, कभी ना कभी उसका दिल आहत हो जाता।फिर भी रति अपने मधुर व्यवहार से सबका दिल जीतने की कोशिश करती।

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 रति को हलके रंग पसंद नहीं और जब गहरा रंग पहनती हैं, तो सास -ननद और जिठानी के व्यंगात्मक तीर चलने लगते जो रति को बेहद चुभते। भगवान ने उसे काला रंग दिया तो इसमें उसका क्या कसूर हैं।पर ये बात, सास, ननद या जिठानी को कौन समझाये। घर में रमित के अलावा ससुर जी रमाकांत का दिल रति ने अपने मधुर व्यवहार से जीता हैं, वहीं अक्सर सबके व्यंग से उसे बचाते।

 शाम को जब रति और रमित घर पहुंचे तो, बैठक में गहन मंत्रा चल रही थी। पता चला,

 ससुर जी को बिजनेस में बड़ा घाटा हुआ, कई दिनों से वो सँभालने की कोशिश कर रहे थे, पर आज दिवालिया घोषित हो गये। अब तक ऐशो -आराम से जिंदगी बसर करने वाले लोग, किनारा काटने लगे। ननद जो अक्सर मायके आती थी, अब आना कम कर दी। घर के खर्चे जो अब तक ससुर जी उठाते थे, अब बेटों पर आ गया। उजले रंग वाली जिठानी ने पति को जाने क्या समझाया, वे दूसरे फ्लैट में शिफ्ट हो रहे थे, ये वहीं सुन्दर बहू थी जिनका परिचय कराने में, और उनकी सुंदरता का बखान करने में सासु माँ हमेशा आगे रहती थी।

घर में एक सन्नाटा फैलने लगा। एक दिन ससुर जी ने रमित से पूछा “तुम कब अपने घर में शिफ्ट हो रहे हो “रमित के बोलने से पहले आवाज आई -पापा हम अपने घर में रहते हैं, जहाँ आप लोग हैं वहीं हमारा घर हैं “। चाय का प्याला थमाते रति ने कहा। “पापा आप चिन्ता ना करें,भगवान ने चाहा तो एक दिन हमारी फैक्ट्री फिर हमारे पास होगी, मैंने और रमित ने अपने ऑफिस से लोन लिया, और अपने एफ डी भी तुड़वा लिया, चेक बढ़ाते हुये रति ने कहा।चेक पकड़ते रमाकांत जी ने ऊषा जी की तरफ देखा, ऊषा जी का सर शर्म से झुका हुआ था।

ये नन्ही लड़की ने आज उनको अपने व्यवहार से शर्मसार कर दी। आगे बढ़ रति के हाथ पकड़ बोली -रति मुझे माफ़ कर दो,मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया हैं।तुम जो मन करें वो पहनों।सुंदरता की परिभाषा आज समझ में आ गई।रति उनके हाथ पकड़ बोली -माँ कहीं बच्चों से माफ़ी मांगती हैं,!!

कुछ दिन बाद रति का जन्मदिन पड़ा, सबने उपहार दिया, सासु माँ ने अलग से उपहार दिया, रति ने खोला तो सितारों से सजी काली साड़ी, देख उसकी ऑंखें चमक गई। शाम की पार्टी में सब लोग सितारों वाली काली साड़ी पहने रति की खूब तारीफ की। सासु माँ ने नजर उतारने के लिये कानों के पीछे काला टीका लगा दिया। रमित की आँखों में शरारत देख रति शर्मा गई।मन ही मन तय कर लिया अब रंग को लेकर शर्मसार नहीं होगी!!

दोस्तों, स्त्री का जीवन सरल नहीं होता, कदम -कदम पर शर्मसार होना पड़ता, कभी रंग ले कर, कभी बच्चे ना हुये तो भले ही पति में कमी हो पर सब पत्नी को ही बाँझ शब्द से नवाजते हैं, तो कभी संतान की वज़ह से तो कभी पैसों की दिक्कत से, जीवन में स्त्री और गलती एक दूसरे का पर्याय हैं। आप क्या कहते हो, हमें जरूर बताये..।

—-संगीता त्रिपाठी

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