जुग जुग जियो – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

दिवाली का दिन था।सुषमा सुबह से ही उदास थी उसे रह रहकर पति की याद आ रही थी।कहने को बेटा बहु साथ में ही थे फिर भी ना जाने क्यों उसे अकेलापन सा सता रहा था।सब अपनी मर्जी से काम कर थे..चाहे वो घर की सजावट हो..सबको क्या देना है..या फिर पूजा की तैयारी हो।कोई भी झूठे मुंह को सुषमा से कोई सलाह नहीं ले रहा था ना किसी ने उसे ये कहा,कि बाजार चलो।जबकि पति के रहते उसने हमेशा बच्चों को तवज्जो दी उनकी रजामंदी के बिना कभी कोई काम नहीं किया।सुषमा अतीत के पलों में खो गई…

“अरे सुषमा ये सफाई बाद में कर लेना पहले बताओ बाजार से क्या क्या लाना है?किसको क्या गिफ्ट देना है?दो दिन बाद दिवाली है फिर बच्चे आ जाएंगे तो तुम्हें फुर्सत नहीं मिलेगी।मैं तो यही कहूंगा कि तुम भी चलो मेरे साथ बाजार अपनी पसंद से सब खरीद लेना।वैसे भी तुम इतने दिनों से घर की सफाई में लगी हो कहीं घूमने नहीं गईं इस बहाने थोड़ा चेंज हो जाएगा।” सुषमा के पति बोले।

“सुनिए जी कल तो बच्चे आ ही रहें हैं ना।उनसे भी पूछ लेंगे कि क्या गिफ्ट लाने हैं,क्या क्या सजावट का समान लाना है?आखिर उनका भी तो घर है ना।” सुषमा ने पति की बात सिरे से नकार दी।

“अरे भाग्यवान !अपने पति के साथ घूमने फिरने और शॉपिंग करने का मौका मिला है तो इस मौके को एंजॉय करो।जाने फिर ऐसे अवसर मिले ना मिले।”सुषमा के पति मजाक करते हुए बोले।

“ऐसा क्यों कहते हैं जी आप?मैं तो हमेशा आपका ही साथ चाहूंगी।वो तो बस बच्चों को ये ना लगे कि हम उनसे पूछे बगैर हर काम करते हैं हमें उनकी परवाह नहीं है।”सुषमा रुआंसी होकर बोली।

इसे किस्मत की ही बात कहो या फिर समय का फेर सुषमा के पति का दिवाली के कुछ समय बाद हार्ट अटैक से निधन हो गया।सुषमा बिल्कुल अकेली पड़ गई उसे यही लगता कि पति उससे नाराज होकर छोड़कर चले गए.. कि लो अब मैं जा रहा हूं रहो अपने बच्चों के साथ खुशी खुशी..!!

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पति की तेरहवीं तक बहु बेटे सुषमा के साथ रहे फिर अपने घर चले गए।सुषमा अकेली रह गई पति की यादों के सहारे।पति की मृत्यु को अभी एक वर्ष नहीं हुआ था दीपावली का पर्व आ गया।सुषमा ने बच्चों के साथ ज्यादा कुछ नहीं बस लक्ष्मी पूजन किया।दूसरी दिवाली पर बेटा बहु ने सुषमा को अपने पास बुला लिया था।सुषमा अपना ही घर समझकर घर के हर काम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती तो ये बहु को रास नहीं आता उसे लगता कि ये मेरा घर है यहां सिर्फ मेरी हो मर्जी चलेगी।

सुषमा तो वैसे ही घर की सजावट में माहिर थी।उसके घर कोई भी मेहमान आता तो उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं जाता।ऐसे ही सुषमा ने ड्राइंग रूम में एक फ्लॉवर पॉट उठाकर दूसरी जगह रख दिया तो बहु उससे तो कुछ नहीं बोली पर बेटे से जाने क्या कहा कि वो गुस्सा होते हुए बोला -“माँ,अपको क्या जरूरत है घर के समान से छेड़ा खानी करने की?जो जहां रखा है वैसे ही रखे रहने दो।आपको अपने घर में जो करना है वो कर लेना हमें अपने तरीके से रहने दो।जितने दिन यहां हो शांति से रहो।”जिस बेटे को उसने इतना प्यार दिया..

जिसकी हर खुशी का ख्याल रखा वही आज उसे पराया महसूस करवा रहा था।सुषमा की आंखों में आंसू आ गए पर वो कुछ बोली नहीं क्योंकि त्यौहार पर कोई क्लेश नहीं करना चाहती थी।चुपचाप उठकर अपने कमरे में चली गई।बहु ये सब देखकर खुश थी कि उसके घर में सिर्फ उसकी ही चलेगी सास की नहीं।

दिवाली के दिन सुषमा उदास थी सुबह खाना भी अच्छे से नहीं खाया और रात में भी पूजा के बाद बस थोड़े से पुलाव खाए।ना बेटे ने ना ही बहु ने एक बार को भी ये नहीं पूछा कि क्या बात है?आपकी तबियत तो ठीक है ना?बेटा बहु को बड़े प्यार से मिठाई खिला रहा था और सुषमा को तो प्रसाद खाने के लिए भी नहीं बोला।

वो तो बेचारी ने खुद ही ले लिया क्योंकि प्रसाद का अपमान नहीं करना चाहती थी।बेटा बहु ने नीचे जाकर सोसाइटी वालों के साथ पटाखे चलाए।सुषमा अकेले अपने कमरे में बैठी थी तभी पड़ोस में रहने वाले शर्मा दंपती मिठाई का डिब्बा लेकर आए।उन्होंने सुषमा के पैर छुए।सुषमा ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया और सम्मान पूर्वक बिठाया।मेहमानों के पूछने पर उसने बताया कि बेटा बहु नीचे गए हैं पटाखे चलाने।

सुषमा किचन से मेहमानों के लिए नमकीन व मिठाई की प्लेट लेकर आई तो वो बोले

-“अरे आंटी जी आप नीचे नहीं गए।गार्डन में बहुत अच्छी डेकोरेशन हो रही है।”

“बस बेटा,ऐसे ही मन नहीं किया इसलिए नहीं गई बच्चों ने तो बहुत बोला था।”सुषमा बहाना बनाते हुए बोली।तभी उसके बेटे बहु भी खिलखिलाते हुए आ गए।

पड़ोसी को दिवाली की बधाई देते हुए बोले -“अरे आप लोग नीचे नहीं गए।बहुत मजे आ रहें हैं बच्चे बूढ़े सभी त्यौहार को एंजॉय कर रहे हैं।”

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“हम लोग बस आपके यहां से होकर नीचे ही जाएंगे।पर आप लोग आंटी जी को क्यों नहीं लेकर गए साथ में।”पड़ोसी बोली।

“मम्मी की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी इसलिए इन्हें हम नहीं ले गए।”बहु बेटा दोनों एक साथ बोले।

“अरे तो उन्हें पूछना चाहिए था ना।हो सकता है उन्हें आपके पापा की याद आ रही हो इसलिए वो उदास हों।माता पिता ईश्वर के समान होते हैं।यदि वो ही त्यौहार के दिन दुखी रहेंगे तो ईश्वर की कृपा कैसे मिलेगी?”पड़ोसी के मुंह से ये बात सुनकर सुषमा के बहु बेटे बगले झांकने लगे।झेप मिटाते हुए बोले -“चलो मम्मी तैयार हो जाए नीचे चलते हैं।”

“रहने दो बेटा,वैसे भी अब बहुत देर हो गई है।तुम लोग भी थक गए होगे आराम करो।”सुषमा माहौल को हल्का करते हुए बोली

“आंटी जी कुछ देर नहीं हुई है।हमारी बिल्डिंग में तो सब देर रात तक पटाखे चलाते हैं और हम भी अभी ही जा रहें हैं।आप हमारे साथ चलो वैसे भी इस साल हम अपने मम्मी पापा को बहुत मिस कर रहे हैं।क्योंकि वो लोग दीदी के पास गए हुएं हैं।सुषमा सोचने लगी, कि एक ये बच्चे हैं जो त्यौहार पे अपने माता पिता को मिस कर रहे हैं और उसके बच्चे हैं जिन्हें माँ के पास होने का भी एहसास नहीं..उसकी आंखें नम हो गईं।उसका मन तो नहीं था पर शर्मा दंपती के बार बार आग्रह करने पर नीचे जाने के लिए वो तैयार हो गई।

शर्मों शर्मी में उसके बेटा बहु भी साथ हो लिए।नीचे जाकर सुषमा को बहुत अच्छा लगा।बिल्डिंग के जो लोग वहां उपस्थित थे सभी सुषमा से बड़े प्यार से मिले और उसे अपने घर आने का न्यौता भी दिया।छोटों ने तो उसके पैर भी छुए।सुषमा सबसे मिलकर बहुत खुश हुई और सबको अपना स्नेह व आशीष दिया

।ये सब देखकर सुषमा के बेटे बहु का सर शर्म से झुक गया।उन्हें माता पिता के साथ व दुआओं की कीमत समझ आई।घर जाकर उन्होंने अपने व्यवहार के लिए सुषमा से माफी मांगी। माँ तो आखिर माँ ही होती है चाहे बच्चे पूछे या ना पूछे वो तो हमेशा उन्हें दुआएं ही देती है पर अगर बच्चे उसे स्नेह करें उसका ख्याल रखें

तो इन दुआओं में उसकी खुशियां भी शामिल हो जाती हैं।सुषमा ने प्यार से दोनों बच्चों को गले लगा लिया और बोली -“जुग जुग जियो मेरे बच्चों।ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे।” घर का माहौल सुखद हो गया।खुशी खुशी दिवाली का पर्व सम्पन्न हुआ।ये दिवाली सुषमा के लिए खास बन गई क्योंकि इस दिवाली में प्यार के रंग जो भर गए थे। 

सच माता पिता का दिल बहुत बड़ा होता है बच्चे कितना भी उनका अपमान क्यों ना करें वो उन्हें ना ही सिर्फ माफ कर देते हैं…बल्कि प्यार से गले भी लगाते हैं और जुग जुग जियो..सदा खुश रहो कहकर आशीर्वाद भी देते हैं।

कमलेश आहूजा

#बड़ा दिल

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