सुमित की आंखों में पश्चाताप के आंसू साफ दिखाई दे रहे थे मगर वो उन्हें जैसे रोक लेना चाहता हो। अतीत की यादों में वो खो सा गया था इसलिए तो विभा की आवाज़ भी उसे सुनाई नहीं दे रही थी।
विभा सुमित की धर्मपत्नी थी। उसने पास आकर सुमित को झकझोरा,सुनिए ….कहां खो गए आप…फिर से उन्हीं बातों को क्या याद करना… जो हो गया सो हो गया…. शायद भगवान भी यहीं चाहते होंगें इसलिए तो असलियत सामने आ गई।
सुमित मानों अतीत से जागे पर बहुत दुःख के भाव अब भी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।
दरअसल ये कहानी हैं उन पारिवारिक रिश्तों की जहां सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार ही प्यार था चारों तरफ़…. मगर समय के साथ साथ सब बदल गया।
रीमा शादीशुदा थी और दोनों भाई बहन एक ही शहर में रहते थे । रीमा सुमित की बड़ी बहन थी और आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी।
सुमित अपनी बहन की हर संभव मदद करता और इस काम में विभा भी कोई रोक टोक नहीं करती।
कहीं भी जाना हो तो सुमित अपनी गाड़ी ड्राइवर के साथ रीमा के घर भिजवा देता ,हर तरह से वो उसे यह अहसास नहीं होने देता की वो गरीब हैं।
विभा भी त्यौहार हो या जन्मदिन … कभी अपनी ननंद के यहां खाली हाथ नहीं जाती।
सब कुछ सही चल रहा था शुरू शुरू में तो रीमा भी अपने भाई भाभी का पूरा सम्मान कर रही थी।
इधर सुमित भी अपनी बहन की हर संभव आगे बढ़ कर मदद कर रहा था। रीमा के घर भी अब नए ज़माने के सामानों ने जगह बना ली थी।
मगर धीरे धीरे रीमा को लालच ने घेर लिया । घर बैठे ही बिना मेहनत के सबकुछ मिलने लगा था। रीमा के पति की छोटी सी दुकान थी जिससे ज्यादा आमदनी नहीं होती थी।
रीमा सिर्फ़ अपने भाई भाभी का फ़ायदा उठाने लगी ….होते हुए भी वो ऐसा दिखाती जैसे उनके पास कुछ न हो।
सुमित को इसकी बिलकुल भी भनक नहीं थी या यूं कहे कि वो तो सपने में भी ऐसा नहीं सोच सकता था कि उसकी सगी बहन खून के रिश्तों का मज़ाक बना देगी।
विभा को कुछ कुछ समझ में आने लगा था अपनी ननद की हरकतें देखकर …. मगर …. जब भी वो सुमित को बताने की कोशिश करती सुमित उल्टा उसे ही डांट देता और कहता,” तुम नहीं चाहती कि मैं अपनी बहन की मदद करूं ….. मगर मैं करूंगा!”
पति के ऐसे शब्द विभा को ऐसे चुभते मानों किसे ने गर्म सीसा उड़ेल दिया हो कानों में….. वो मन मसोसकर रह जाती ।
सब कुछ ऐसा ही चलता रहा ….. इधर बहन भाई को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर रही थी और उधर अपनी बहन पर जान छिड़कने वाला भाई आगे से आगे उस पर अपना सब कुछ लुटा रहा था।
वक्त ने करवट बदली ….कुछ हुआ और …. बहन की करतूत थोड़ी थोड़ी अब सुमित को समझ आने लगी थी पर फिर भी वो बहन की हरकतों पर अधिक ध्यान नहीं देता । एक ही बहन हैं सोचकर सब कुछ करता।
कहते हैं ना ! जो इंसान नहीं देख सकता वो वक्त दिखा देता हैं। बस कुछ ऐसा ही हुआ । एक दिन सुमित बहुत बीमार हो गया ……. डॉक्टर ने दूसरे बड़े शहर में उसे ले जाने को कहा …. विभा ने जैसे तैसे अपने परिवार के और सदस्यों को फोन लगाया जो दूसरे शहर में रहते हैं। रीमा को भी हड़बड़ी में जानकारी दे दी गई ।
मगर रीमा नहीं आई और न ही उसका कोई फोन आया।
विभा के पति का लगभग दस दिन तक सिटी हॉस्पिटल में इलाज़ चला मगर एक भी दिन रीमा या उसके पति का फोन नहीं आया … यह जानने के लिए कि सुमित की हालत अब कैसी हैं?… आना तो दूर की बात….
कुछ दिनों के इलाज़ के बाद सुमित को ज़रूरी हिदायतों के साथ अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और डॉक्टर ने आवश्यक चेक अप के बारे में भी बता दिया जो दो महीनों के अंतराल में करने थे।
बस अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखते देखते सुमित ना जाने कब अतीत में खो गया था … पता ही नहीं चला।
घर आने के बाद भी रीमा अपने भाई से मिलने नहीं आई …. क्योंकि उसे समझ में आ गया था कि सुमित को उसके स्वार्थ के बारे में पता चल गया हैं …. रीमा ने खुद ही अपने भाई भाभी से बोलना बंद कर दिया।
सुमित अपनी बहन को बहुत चाहता था, उस पर जान छिड़कता था लेकिन उसकी सगी इकलौती बहन उसके साथ ऐसा करेगी …. उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था … वो रोज़ सोचता था शायद आज़ उसकी बहन मिलने आएगी… और जब नहीं आती तो खुद को किसी तरह दिलासा देता।
अब सुमित और रीमा के रिश्तों में खटास आ चुकी थी ।सुमित को इस बात का भी अहसास हो गया कि उसकी पत्नी सही कह रही थी … काश मैंने तभी ध्यान दिया होता … सुमित ने अपनी पत्नी के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा ,” इस वेलेंटाइन कहां चलना हैं घूमने….!”
अचानक से यह मीठी चाशनी में घुले शब्द सुनकर विभा शरमा गई ।
सुमित और विभा को अब इस बात का अहसास हो गया था कि वक्त सदा एक सा नहीं रहता…. इसकी भी आदत हैं बदलते रहने की …. जैसे इंसान बदल जाते हैं वैसे ही वक्त भी बदल जाता हैं…।
सही बात हैं वक्त अच्छा हो तो सब अपने नहीं तो सब पराए हो जाते हैं जैसे रीमा ने सुमित को कर दिया।
यह वक्त ही तो हैं कि जिस बात को सुमित देखकर भी अनदेखा कर रहा था वो बात वक्त ने उसकी आंखों के सामने ला दी।
दोस्तों पारिवारिक रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं ,वहां स्वार्थ की कोई जगह नहीं होनी चाहिए …. वरना रिश्तों को टूट जाने में ज़रा भी देर नहीं लगती और पीछे रह जाता हैं बस पश्चाताप।
दोस्तों यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं।आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी , प्लीज़ ज़रूर बताएं।
आपकी दोस्त
#वक्त
मोहिनी गुप्ता
©®स्वरचित और मौलिक