जो बंधन तोड़े न जा सके उनकी टीस ज्यादा दर्द देती है – संगीता अग्रवाल

सलोनी यूँही बैठी फेसबुक पर दोस्तों की पोस्ट देख रही थी अचानक उसे किसी पेज पर लिखी पंक्तिया दिखाई दी ।

“यूँ तो टूटे हुए रिश्तो की आह सर्द होती है
पर जो बंधन तोड़े ना जा सके उनकी टीस ज्यादा होती है।

कितना सही लिखा है लिखने वाले ने किसी बंधन का टूटना इंसान को एक बार तोड़ता जरूर है पर वो धीरे धीरे खुद को जोड़ लेता है लेकिन वो रिश्ते जो तोड़े भी ना जा सके और निभाए भी ना जा सके ऐसे रिश्ते इंसान को रोज तोड़ते है ।रोज वो खुद जोड़ता है और फिर टूट जाता है ये टूटना जुड़ना जो है ना ये एक बार टूटने से ज्यादा तकलीफदेह होता है।

खुद सलोनी भी तो रोज टूट रही थी ओर रोज खुद को जोड़ रही थी । कभी इस घर मे बहू बनकर आई थी साथ ही बनी थी किसी की पत्नी …नही पत्नी कहाँ बनी केवल सुर्ख जोड़े मे सजी थी , मेहंदी रची थी पर केवल इतने भर से तो पत्नी नही बन जाते ना । पत्नी तो तब बनते है जब पति केवल तन से ना जुड़ा हो मन से भी जुड़ा हो। किन्तु यहां तो पति मयंक ने पहली रात ही जो कहा उससे पूरी तरह पत्नी बनने से पहले ही वो पतिता हो गई। पतिता यानि पति की छोड़ी हुई पर छोड़ी भी कहाँ गई थी वो। ये सोचते सोचते सलोनी अतीत मे विचरण करने लगी जब वो सजी संवरी सुहाग सेज पर बैठी थी। मयंक के आते ही जब उसने घूँघट सही करना चाहा।

” इन सब की कोई जरूरत नही तुम कपड़े बदलो ओर सोफे पर सो जाओ मैं वैसे ही बहुत थक चुका हूँ !” ये बोल मयंक बिना उसकी तरफ देखे लेट गया ।

” ये कैसी शादी और कैसी सुहागरात जिसमे पति ने दो बात करना भी गँवारा नही समझा !” सलोनी ने खुद से ही कहा पर फिर ये सोच कपड़े बदलने चल दी कि शायद मयंक सच मे थके होंगे पर नही बात सिर्फ थकन की नही थी। रोज ही मयंक कमरे मे आता और उसे सोफे पर सोने को बोल खुद सो जाता। ऐसा नही कि मयंक उससे बात नही करता सब घर वालों के सामने वो उससे हंस कर बोलता और उनके बीच सब सामान्य होने का दिखावा करता पर कमरे मे आते ही वो कुछ ओर ही बन जाता तब ऐसा लगता मयंक के कमरे मे भी वो बिना अधिकार रह रही है।

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” मयंक क्या वजह है कि तुम मुझे यूँ नज़रअंदाज़ कर मेरे वजूद को छलनी कर रहे हो ? ऐसा लगता है मैं जबरदस्ती इस घर मे रह रही हूँ। ” एक रात सलोनी आखिर फट पड़ी।

” देखो सलोनी ऐसा कुछ नही तुम इस घर की बहू हो तुम्हारा इस घर पर हक है !” मयंक ने जवाब दिया।

” ओर पत्नी …..? क्या मैं आपकी पत्नी नही । बस मेरा घर पर अधिकार है आप पर नही पर मैं आई तो आपके ही कारण हूँ ना इस घर मे !” सलोनी ने नम आँखों से पूछा।

” तुम मेरी पत्नी हो तभी तो इस कमरे मे हो इससे ज्यादा तुम मुझसे कुछ अपेक्षा ना ही करो तो सुखी रहोगी। क्योकि तुम इस घर की बहू पापा के कहने से बनी हो तो मुझे केवल दिखावा करना है सबके सामने तुम्हारे साथ सुखी होने का और हाँ ये बात इस कमरे से बाहर ना जाये !” मयंक मुंह फेरता हुआ बोला।

” जब आपको मैं पसंद ही नही थी तो क्यो नही आपने इंकार कर दिया इस रिश्ते से क्यो मेरी जिंदगी बर्बाद की !” सलोनी मानो फट पड़ी।

” मुझे बहस नही करनी तुमसे सुबह फैक्ट्री जाना है मुझे तो सोने दो मुझे !” मयंक ये बोल लेट गया पर सलोनी की आँखों मे नींद नही थी। अगले दो दिन तक सलोनी आत्ममंथन करती रही पर कुछ निर्णय पर नही पहुँच पाई। तीसरे दिन मयंक काफी देर से आया उसने शराब भी पी रखी थी। घर वाले सभी सो चुके थे सलोनी झूमते हुए मयंक को कमरे तक लाई। शराब का नशे मे वो कमजोर पल भी आ गया जब मयंक ने थोड़ी देर को ही सही सलोनी को पत्नी का दर्जा दे दिया। पर क्या सच मे ये पत्नी का दर्जा था नही क्योकि अगले दिन मयंक फिर से अकेले मे उससे अजनबियों सा व्यवहार ही कर रहा था शायद उसे याद भी नही था रात क्या हुआ है।

” मयंक वो रात को …!” सलोनी कुछ बोलने को हुई ।

” मुझे पता है रात को क्या हुआ मांग मे सिंदूर भरा है इतना हक तो बनता है मेरा !” मयंक बेहयाई से बोला। सन्न रह गई सलोनी जिसे वो नशे की भूल समझ रही थी वो तो जानबूझ कर किया गया था।

” मयंक हक के साथ फर्ज भी होते है !” सलोनी थोड़ा गुस्से मे बोली।

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” हाँ तो तुम्हे क्या नही दे रखा सब कुछ है तुम्हारे पास वरना अपने घर मे तो दो वक़्त की रोटी भी मयस्सर नही होती होगी !” मयंक ये बोलता हुआ चला गया। सलोनी से अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था उसने अपने मायके फोन लगाया और माँ को सब बताया।

पर माँ ने यही कहा ” जब तुझे वहां किसी चीज की कमी नही तो क्यो जरा सी बात को व्यर्थ तूल देती है रही दामाद जी की बात धीरे धीरे वो भी ठीक हो जाएंगे !”

अब सलोनी के पास कहने को कुछ बाकी नही था। जब माँ ही उसके दर्द को नही समझ रही तो किसी ओर से क्या अपेक्षा। वो खामोशी से इस दिखावे के रिश्ते को निभाने लगी मयंक को जब उसकी जरूरत होती कुछ पल को करीब आता और अगले दिन फिर अजनबी बन जाता। कुछ समय बाद उसे पता लगा उससे पहले मयंक का रिश्ता किसी और लड़की से जुड़ा था जिसे वो काफी पसंद करने लगा था पर शादी के दिन ही वो अपने प्रेमी के साथ भाग गई तबसे मयंक को शादी से चिढ हो गई इसलिए वो दुबारा शादी नही करना चाहता था खुद को शराब के नशे मे डुबोये रखता था। घर वालों ने उसे मजबूर करके गरीब घर कि सलोनी से शादी करवा दी जिससे वो चुपचाप सब बर्दाश्त कर ले।

कैसा नसीब होता है ना कुछ बेटियों का भी ससुराल वाले  बिगड़े बेटे को सुधारने को किसी की बेटी को बलि पर चढ़ाते है और खुद के माँ बाप अपना बोझ उतारने को किसी के भी साथ ब्याह देते है और फिर अपने हर फर्ज से मुंह मोड़ लेते है । सलोनी खामोश सी हो गई थी नाउम्मीद सी। फिर अचानक उसकी जिंदगी मे उम्मीद की एक लौ टिमटिमाई जब उसे पता लगा वो माँ बनने वाली हैं । घर वाले सब खुश थे पर मयंक ने कोई प्रसन्नता नही जाहिर की। तय वक़्त पर सलोनी ने एक बेटी को जन्म दिया अब उसे खुश रहने की वजह मिल गई थी । बेटी के होने के तीन साल बाद सलोनी एक बेटे की माँ भी बन गई। अब उसकी दुनिया अपने बच्चो मे सिमट गई।

सलोनी के बच्चे कुछ बड़े हुए तो पहले उसकी सास फिर ससुर ने दुनिया से अलविदा कह दिया। अब मयंक और ज्यादा शराब के नशे मे डूबा रहता घर से उसका नाता बस खाने सोने और कभी कभी अपनी जरूरत पूरी करने का रह गया। अब सलोनी को मयंक के छूने से भी चिढ होने लगी थी क्योकि कोई किसी की जरूरत बनकर कब तक रह सकता है। जब उसने इसका विरोध किया तो मयंक ने उसपर् हाथ उठा दिया । बस यही वो क्षण था जब उन दोनो के बीच जो मामूली रिश्ता मयंक की जरूरत का था वो भी खत्म हो गया।

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सलोनी ने घर तो नही छोड़ा वैसे भी जाती कहाँ दो बच्चो को लेकर इतना सामर्थ्यवान माँ बाप ने बनाया नही था जो उनकी परवरिश अकेले कर पाती माँ बाप अब दुनिया मे रहे नही थे वैसे भी जब थे तब भी उसका साथ कहाँ दिया था उन्होंने। दिल तो कभी उसके और मयंक के एक हो ही नही पाए थे अब कमरे भी अलग हो गये वैसे भी अब घर मे कोई नही था जिसके सामने मयंक उसे पत्नी मानने का दिखावा करता। मयंक अब उसे हर दिन जलील भी करता था अपने बच्चो के लिए वो सब बर्दाश्त करती थी क्योकि अपने और मयंक के रिश्ते की आंच से वो अपने बच्चो का भविष्य नही खराब करना चाहती थी।

सलोनी दिन मे तो बच्चो के साथ व्यस्त रहती पर रात की तन्हाई उसे अपनी गुजरी जिंदगी का हर क्षण याद दिलाती रहती । वो जब अपनी सहेलियों को सुखी दाम्पत्य जीवन जीते देखती तो एक हूक सी उठती मन मे । उसका भी दिल करता कोई हो जो उसकी परवाह करे उसके नाज़ उठाये पर जो रिश्ता वो निभा रही थी वो सिर्फ उसे टीस ही दे रहा था क्योकि वो ऐसा रिश्ता था जो समाज के लिए था बस दिल से तो टूट चुका था और उसके टूटे हुए टुकड़े सलोनी को हर दिन छलनी करते थे।

अपनी एक सहेली के कहने पर उसने कुछ दिन पहले ही फेसबुक आईडी बनाई थी और आज वही चलाते हुए उसे अपना सारा अतीत अपनी आँखों के सामने दिखाई दे गया था उसने उन पंक्तियों को सेव किया और गालों पर आये आँसूओ को पोंछ दोनो बच्चो के माथे चूम लिए और लेट गई। कल फिर से उसे उस बंधन को जो ढोना था जो वो तोड़ नही सकती और तमाम उम्र उसकी टीस झेलनी है उसे।

दोस्तों कुछ औरतों की यही सच्चाई होती है उन्हे उस रिश्ते की टीस ताउम्र झेलनी पड़ती है जो वो चाह कर भी तोड़ नही सकती क्योकि उनका परिवार उनका समाज कोई उनके साथ नही होता। ना वो इतनी काबिल होती है कि सबसे लड़ सके। इसलिए सबके सामने एक दिखावे का रिश्ता निभाती हुई वो अपने बच्चो के बेहतर भविष्य की बाट जोहती है क्योकि उनकी आखिरी उम्मीद वही बच्चे होते है।

अपनी कहानी के जरिये मैं सवाल करना चाहती हूँ उन लड़को से जो अपने माँ बाप का विरोध नही कर सकते पर ताउम्र एक मासूम को सजा देते है। मैं स्वाल करती हूँ उन माँ बाप से जो अपने बेटों की शादी जबरदस्ती करते है बिना ये सोचे कि क्या किसी लड़की का गरीब होना जुल्म है। साथ ही मैं सवाल करना चाहती हूँ उन बेटियों के माँ बाप से जो केवल अमीर घर देख बेटी का रिश्ता बिना जांच पड़ताल कर देते है और फिर उसका साथ भी नही देते।

क्या लड़की एक खिलौना है जो एक दिखावे का रिश्ता की टीस ताउम्र झेले?आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

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