नई दिल्ली के एक चमचमाते फ्लैट में रक्षित और उसकी पत्नी माया रहते थे। वे दोनों मिडिल क्लास परिवार से थे, लेकिन रक्षित की कामयाबी ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया था। एक छोटे से बिजनेस से शुरुआत करके रक्षित अब एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी के सीनियर मैनेजर बन गए थे। उनके पास हर वो चीज़ थी, जो एक सामान्य व्यक्ति के सपने में होती है – शानदार घर, महंगी गाड़ियाँ, विदेशी यात्रा, और हाई-फाई लाइफस्टाइल। लेकिन इस सब के बीच एक चीज़ जो उनके पास नहीं थी, वह थी सुकून और परिवार का प्यार।
रक्षित का जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था, और उनका पालन-पोषण भी बेहद साधारण तरीके से हुआ था। उनके माता-पिता, जो अब भी गाँव में रहते थे, हमेशा रक्षित से प्यार करते थे, लेकिन रक्षित का दिल अब इन साधारण चीज़ों में नहीं लगता था।
शहर में बसने के बाद रक्षित की प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। उन्होंने अपने माता-पिता से मिलना कम कर दिया था, और जब भी वे फोन करते, वह संजीदगी से बात नहीं करते थे। उनके लिए अब उनका काम और बड़े शहर की भागदौड़ ज्यादा मायने रखने लगी थी।
“रक्षित, तू अभी भी हमारे पास नहीं आता,” माया ने एक दिन कहा, जब रक्षित अपनी माँ को फोन पर बात कर रहे थे। “तुम्हें उनके साथ समय बिताना चाहिए, उनकी उम्र भी बढ़ रही है।”
रक्षित ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, “माया, मुझे बिजनेस और काम की बहुत जिम्मेदारी है। मुझे उनके पास जाने का समय नहीं है। वो ठीक होंगे, तुम चिन्ता मत करो।”
लेकिन माया को ये सब ठीक नहीं लग रहा था। वह जानती थी कि रक्षित अब ज्यादा समय अपने माता-पिता से दूर रहने लगे थे। माया ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन रक्षित का दिल अब उस सरलता और प्यार में नहीं लगता था। उसे अब अपनी सफलता और चकाचौंध में ही सब कुछ दिखाई देता था।
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कुछ सालों बाद रक्षित की कंपनी में एक बड़ी पदोन्नति हुई। अब वह एक प्रमुख प्रबंधक बन गए थे। उनका जीवन और भी व्यस्त हो गया था। वे हर वक्त मीटिंग्स, ट्रेवलिंग, और काम के दबाव में घिरे रहते। उनके पास अपने माता-पिता को फोन करने का भी समय नहीं था।
एक दिन, रक्षित के माता-पिता को खबर मिली कि उनकी बहू माया की तबियत खराब है। माया की माँ ने रक्षित से कहा, “बेटा, तुम अपनी बीवी का ख्याल रखो। हमें डर है, हम यहाँ आकर मदद करना चाहते हैं।”
रक्षित ने फोन पर ही कहा, “माँ, कोई जरूरत नहीं है। माया को अच्छा इलाज मिल रहा है। आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है।”
उनके दिल में कोई भी सच्ची चिंता नहीं थी। वह अपनी माँ के प्रति आभारी नहीं थे। उनका विचार था कि वह स्वयं ही सबकुछ संभाल सकते थे।
एक दिन रक्षित को एक चिट्ठी मिली। वह चिट्ठी उनके पिता ने भेजी थी, जो अब गाँव में अकेले रहते थे। वह चिट्ठी रक्षित के दिल को छूने वाली थी। उसमें लिखा था:
“प्रिय बेटा, मुझे ये उम्मीद नहीं थी कि तुम हमें कभी इस तरह भूल जाओगे। तुम्हारे लिए हम दूर हो सकते हैं, लेकिन हम तुम्हारे दिल में हमेशा होंगे। तुम्हारी सफलता की ऊँचाई पर हम खुश हैं, लेकिन यह भी सच है कि तुमने हमसे अपनी दूरी बना ली है। हम अब बूढ़े हो चुके हैं, लेकिन हम तुम्हारी यादों में जिंदा हैं।”
यह चिट्ठी रक्षित के दिल में गहरी टीस छोड़ गई। वह सोचने लगा कि उसने अपनी माँ और पिता को कितनी बार अनदेखा किया। वह उन्हे कितनी बार दरकिनार किया था। क्या यह उसकी सफलता की असली कीमत थी?
किसी दिन, अचानक रक्षित को एहसास हुआ कि उसकी जिंदगी में कुछ अहम चीजें गुम हो गई हैं। वह अपने माता-पिता से फिर से मिलने के लिए दिल्ली से गाँव जाने का निर्णय लेता है। जब वह अपने माता-पिता के घर पहुंचता है, तो उसका दिल कांप उठता है।
वह देखता है कि उसका पिता बहुत कमजोर हो गया है। उसकी माँ अब पहले जैसी नहीं दिखती। रक्षित के दिल में बहुत सारा पछतावा था। उसने सोचा, “अगर मैंने आज से कुछ साल पहले ही अपने माता-पिता का ख्याल रखा होता, तो क्या आज वे इतने कमजोर होते?”
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उसने अपने माता-पिता से माफी मांगी, और उनके पैरों में गिरकर कहा, “माँ, पापा, मैंने आपको कभी एहसास नहीं होने दिया कि आप मेरे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। मैंने आपको तब नजरअंदाज किया, जब आपको मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी। मैं जानता हूँ कि आप अब पहले जैसे नहीं हो, लेकिन मैं वादा करता हूँ कि आगे से आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
रक्षित के जीवन में यह सजा ही सबसे बड़ी सजा थी—उसके माता-पिता के बिना, उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं था। यह सजा उसके दिल में एक स्थायी दर्द बन गई, जिससे वह पूरी जिंदगी नहीं उबर सका। रक्षित ने अपने माता-पिता से बेशक माफी मांग ली, लेकिन वह जो समय गंवा चुका था, वह कभी वापस नहीं आ सकता था।
वह समझ चुका था कि किसी के दिल को दुखाना, खासकर अपने माता-पिता का, एक ऐसा पाप है जिसकी सजा केवल पछतावे से ही मिल सकती है। कोई भी सफलता, दौलत या दुनिया की चकाचौंध उस पछतावे को धो नहीं सकती।
समय के साथ रक्षित और उसके माता-पिता के बीच का प्यार फिर से जागृत हुआ। लेकिन रक्षित के दिल में वह गहरी टीस हमेशा बनी रही कि उसने अपनी सफलता के लालच में अपने माता-पिता का प्यार और समर्थन खो दिया था। वह जानता था कि जो लोग अपने माता-पिता का दिल दुखाते हैं, भगवान उनकी सजा जरूर देते हैं, और यह सजा उस दर्द के रूप में होती है, जिसे कोई भी सफलता कभी दूर नहीं कर सकती।
आखिरकार रक्षित ने यह समझा कि भगवान ने उसे अपने परिवार की अहमियत सिखाई थी, और यह सजा थी—उसके माता-पिता से दूर जाने और उन्हें दुख देने की।
समाप्त
प्रस्तुतकर्ता
डा.शुभ्रा वार्ष्णेय