Moral stories in hindi : सुंगधा आज नीली साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। सिंपल सी साड़ी और माथे पर छोटी सी बिंदी, होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक, कांधे तक बिखरे हुए कुछ ढीले से बने जुड़ा उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे।जब भी वह बाहर निकलती लोग फब्तियां कसते।
बड़े बुजुर्ग कहते जरा सा भी लिहाज नहीं रह गया है देखो तो कैसी बनी संवरी घूमती है। दरअसल पांच साल पहले सुंगधा के पति का स्वर्गवास हो गया था। किशोर वय के दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी छोड़ गये थे।सुगंधा के पति की मौत अत्यधिक नशा करने से चली गई थी।पास में जमा पूंजी कुछ भी नहीं था जो कमाते थे सब नशे की भेंट चढ़ जाता था।
पति की मृत्यु के बाद सुंघना के सामने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी । हालांकि उनके रहते भी कोई सहारा नहीं था सुंघना को फिर भी लगता था कि बच्चों पर बाप का साया तो है ।सुंगधा ही स्कूल में पढ़ाती थी और घर में ट्यूशन भी करती थी उसी से किसी तरह बच्चों के स्कूल का खर्चा निकलता था ।
सुंघना के दो देवर जो अच्छी नौकरी में हैं और सांस ससुर भी थे उनके पास भी पैसा था लेकिन किसी ने मदद नहीं की ।सास ससुर बेटे की मौत का जिम्मेदार बहू को ही मानते थे । मायके में मां बाप के न होने पर भाई भाभी ने भी पल्ला झाड़ लिया था।सुंघना पढ़ी लिखी थी फिर उसने मजबूती से अपने पैरों पर खड़े होने की ठानी बच्चों का भविष्य जो संवारना था । थोड़ा बहुत बच्चों की ट्यूशन वो पहले भी करती थी । उसने की स्कूलों में आवेदन पत्र दिया जिसमें उसका चयन हो गया ।
उसने स्कूल जाना शुरू किया चालीस साल की छोटी सी उम्र में जिम्मेदारी का बोझ पूरी तरह से उसपर आ गया था। स्कूल में भी वो सादे कपड़ों में पीछे बालों की एक चुटिया बना कर ऐसे ही चली जाती थी। स्कूल में उसके साथ की टीचरें अच्छे से तैयार होकर आती थी ।
सुंघना का मन तो करता था लेकिन क्या करें रीति रिवाज और परिवार के लोगो की बंदिशें उसे ऐसा नहीं करने देती थी ।सह टीचरें उससे कहती सुंगधा की से तैयार होकर आया करो तो वह टाल जाती थी । लेकिन फिर एक दिन प्रीसिपंल ने सबको हिदायत दी कि कल पेरेंट्स टीचर मीटिंग है इस लिए सभी टीचर्स सलीके से तैयार होकर आयेंगी।अब सुंघना सोच मैं पड़ गई कि क्या करें ।
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दूसरे दिन सुंघना दबे रंगों को छोड़ कर हल्की सी गुलाबी रंग की साड़ी में छोटी सी बिंदी और हल्की सी लिपस्टिक लगा कर स्कूल गई तो सब भौंचक्के होकर देखते रह गए।आज सुंघना बहुत अच्छी लग रही थी । दूसरी टीचरों ने बोला ऐसे ही रहा कर सुंगधा,सुंघना बोली अरे तुम लोग नहीं जानती सांस कैसे ताने मार रही थी और तो और हमारी काम वाली कह रही थी बहू जी ऐसे तैयार होकर बाहर मत जाया करो तुम साथ श्रृंगार नहीं कर सकती क्योंकि तुम विधवा हो ।लोग क्या कहेंगे ।
सुंघना की प्रिंसिपल बहुत अच्छी थी ।वो सुंघना के काम से बहुत खुश थी उनको सुंघना से हमदर्दी होने लगी थी ।और एक रोज उन्होंने सुंघना को अपने पास बुला कर बैठाया और बहुत हिम्मत और तसल्ली दी कि यदि पति की मृत्यु हो गई है तो इसमें तुम्हारा क्या कुसूर है।
उसने तो अपनी जिम्मेदारी समझी नहीं कि हमें कुछ हो जायेगा तो मेरे परिवार का क्या होगा।और यदि तुम पढ़ी लिखी न होती तो तुम्हारा और बच्चों का क्या होता ।जब सबकुछ तुम संभाल रही हो तो ख़ुशी ख़ुशी जी क्यों नहीं सकती । मुझे पता है तुम्हें भी लगता होगा कि सबकी तरह हम भी तैयार होकर अच्छे से कपड़े पहन कर आए लेकिन समाज का नजरिया ,,,,,,,,।
लेकिन अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है तुम अच्छे से तैयार होकर आया करो बोलने दो जो भी कोई कुछ बोलता है। तुम परेशानी में थी तो तुम्हारी सहायता करने तो कोई नहीं आया । प्रिंसिपल की ऐसी बातें सुनकर सुंघना में धीरे धीरे आत्मविश्वास लौटने लगा और अब वो थोड़ा सा तैयार होकर स्कूल आने लगी ।
प्रिंसिपल उसकी रोज प्रशंशा करती ।इस तरह सुंघना धीरे धीरे आत्मविश्वास से भर गई और वह अच्छे से तैयार होने लगी । सुंदर तो वो थी ही उसका रूप धीरे धीरे और निखर गया ।आज उसकी मेहनत और आत्मविश्वास ने बच्चों को पढ़ा लिखा कर योग्य बना दिया ।बेटे ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया था सो उसकी नौकरी लग गई और बेटी पी,एच, डी कर रही है ।आज सुंघना को देखकर नहीं लगता कि ये वही पांच साल पहले वाली सुंघना है ।गजब का बदलाव आया है।
हम ये क्यों भूल जाते हैं कि जीवन और मरण तो ईश्वर के साथ में हैं , यदि पति की मृत्यु किसी कारणवश हो जाती है तो यह कहां तक तर्कसंगत है कि पत्नी सारी उम्र अपनी खुशियों से मरहूम रहे कभी साथ श्रृंगार न करें , कभी खुश न हो , कभी अच्छे कामों में शामिल न हो ।उसको भी जीने का हक है ।पति की मृत्यु में उसका कोई योगदान नहीं है तो फिर उसे ऐसी सज़ा क्यों।कब समाज ऐसे रूढ़िवादी संस्कारों से बाहर आयेगा । बदलाव बेहद जरूरी है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
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