जीवन एक ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है – पुजा मनोज अग्रवाल

माता पिता की इकलौती लाडली बेटी सिम्मी , प्यारी मनमोहक मुस्कान  , संस्कारी, सबके साथ सामंजस्य बिठाने में माहिर , हर कार्य में दक्ष , गुणों की खान थी सिम्मी  । माता पिता को मयंक अच्छे लगे तो उन्होंने छोटी उम्र में ही उसका विवाह कर दिया । 

    नव विवाहिता सिम्मी अपनी  आंखों  में रंगीन सपने सजाए , अपने ससुराल आ गई ,जीवन की दूसरी पारी को अपने तरीके  से जीने की ललक लिए ….जीवन की  कड़वी सच्चाइयों से बेखबर … । ख्वाब बहुत थे और वे भी हकीकत से बिल्कुल अलग , इन दोनो  में जमीन  आसमान का फर्क  है,  ये  उसे अभी समझना बाकी था … ।

   व्यवसाय की  कुछ व्यस्तता के चलते मयंक को अपना हनीमून ट्रिप  रद्द करना पड़ा था । सिम्मी का दिल टूट गया था  पर मयंक की जिद्द के आगे उसकी एक न चली ।

   वैसे ससुराल में किसी चीज की कोई कमी न थी , सास ससुर का व्यवहार भी मां पापा जैसा ही था , कमी तो सिर्फ उसकी थी… , जिसकी जरूरत सबसे ज्यादा थी ।…. वो था मयंक , उसका साथ ….उसका प्यार।

     एक दिन सिम्मी ने मयंक से कहा ”  ….चलो न मयंक , कुछ देर बाहर घूम कर आए ,… और हां…. आते हुए डिनर बाहर ही कर लेंगे ।” …. सिम्मी ने मयंक से डरते – डरते  कहा । …. मयंक तुरंत ना नही कह सका , पर घुमा फिरा कर उसने सिम्मी से कहा … देखो सिम्मी … अभी मां बाऊजी के साथ रहते है , क्या अच्छा लगेगा उन्हें  …? अभी नई – नई शादी और ये घूमना फिरना … क्या कहेंगे मां बाऊजी …” बेटा तो अपनी बीवी का हो गया है … और फिर मीरा के विवाह के दायित्व से मुक्त होकर हम अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीयेंगे ।”


    सिम्मी ने मयंक से उलझना उचित ना समझा , मासूम सिम्मी मन मसोस कर रह गई … बात आई गई हो गई….।

   कुछ ही समय में  मयंक ने व्यवसाय  में अच्छी खासी तरक्की कर ली थी । सुख सुविधा के सभी साधन , धन – दौलत  और नौकर चाकर की कोई कमी नहीं थी । एक दिन मीरा के लिए एक रिश्ता आया और मां बाऊ जी को रिश्ता जचते ही मीरा का विवाह कर दिया …।

   मीरा के विवाह के बाद सिम्मी और मयंक के आंगन में दो प्यारी जुड़वां बेटियों की किलकारियां गूंजी …… उनके आने से मयंक सिम्मी बहुत खुश थे , उनके पालन पोषण में सिम्मी की व्यस्तता इतनी  बढ़ी कि सभी अरमान कहा गुम हुए… पता ही नहीं चला  …। 

  आज सिम्मी मयंक के विवाह को 10 वर्ष हो गए …. हनीमून के ट्रिप का वह सपना  आज तक अधूरा है, अगले महीने छोटी  बेटी नैना  का जन्मदिन है,… सिम्मी ने बड़ी मासूमियत से मयंक से कहा  ” मयंक मैं  आपके साथ तिरुपति  जाना चाहती हूं , गुड़िया का जन्म दिन वही मनाने …। 

    मयंक झल्ला कर बोला   – “नही- नही सिम्मी … अभी नही , मेरी कुछ जरूरी मीटिंग है , मैं अभी मैनेज नहीं कर पाऊंगा …. तुम बच्चो को मां बाऊ जी के साथ ले कर चली जाओ ।” 

        सिम्मी को ना सुनने की आदत सी हो गई थी, उसके चेहरे पर न तो दुख , और ना ही उदासी के भाव थे । पर मयंक के मां बाऊ जी सिम्मी के हर दुख को समझते थे , उम्र का तकाजा था की बाऊ जी भी मयंक को टोका- टाकी करना उचित नहीं समझते थे ।

      सिम्मी के विवाह को 20 वर्ष बीत चुके है , वो अच्छी तरह  समझ चुकी है कि इच्छाएं जन्म लेती है और अनायास ही खत्म हो जाती है ,  नई इच्छाओं का जन्म पुरानी अधूरी इच्छाओं को खत्म तो नहीं कर पाता बल्कि उन्हे जहन में , कही अंदर ही दफन कर  देता है ।

    उम्र के इस मोड़ पर अब इच्छा विहीन हूं मैं….नही चाहिए मुझे अब कुछ क्योंकि मैं जानती हूं  , इस जीवन में जो हम चाहते है, वो हमे  मिलता नहीं , और जो मिल जाता है उसकी इच्छा स्वत ही खत्म हो जाती है ….।

    सिम्मी के मन का अंतर्द्वंद्व चल रहा है वह मन ही मन बुदबुदा रही है ….. “अपने अरमानों  को अपने अंतर्मन में दबाना सीख लिया मैने…. 

    अपने मन को अपने आप समझाना सीख लिया मैंने…..

     उम्र के इस पड़ाव हर परिस्थिति से समझौता करना सीख लिया मैने…”

     यह जान लिया है की जीवन एक ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है ,..जो वास्तविकता में हमारी सोच से काफी अलग होती है ।


        …. फिर भी कही मन के किसी कोने में दबी हुई आशा है जो आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही है । कभी मैं और तुम  हाथों में हाथ डाल कर कुछ देर सकून के पल जी सकें , शाम की  चाय की चुस्कियों के साथ जीवन के उन सभी अनछुए  पलों का आनंद लें ,  जिनके इंतजार में हमारे जीवन की शाम हो गई है  …. कभी हम दुनियादारी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर , सिर्फ एक दूसरे को समय दे और एक दूसरे  के लिए जिएं   …।

 सुबह के 6 बज रहे है घड़ी का अलार्म बज रहा है , मयंक नींद के आगोश में है …..लगातार अलार्म की आवाज से मयंक चीख पड़ा….. उठो सिम्मी …। अलार्म बंद करो …मेरी नींद खराब हो रही है…..पर सिम्मी तो है ही नही …..वो तो हमेशा के लिए अपने हृदय में अपनी अपूर्ण इच्छाओं का बोझ लेकर इस दुनिया से विदा ले चुकी है ….उसका बेजान शरीर खुली आंखों से एकटक मयंक की ओर देख रहा है …..।         

   सिम्मी की बेजान देह से भी आंख मिलाने की हिम्मत मयंक में नहीं है …पर उसके हाथ अपने हाथों में लेकर बह

फफक फफक कर रो दिया….
लेखिका : पुजा मनोज अग्रवाल
    समाप्त 

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