ज़िम्मेदारी – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :    ” अरे…ये क्या छोटी भाभी…इतना सारी मठरियाँ आप अकेले कैसे बनाएँगी….लाइये..मैं आपकी कुछ मदद कर देती हूँ।” कहते हुए नंदा ने मैदे की एक लोई अपने हाथ में ले ली।

   ” नहीं-नहीं नंदा…आप टेंशन मत लीजिये, वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी।” मुस्कुराते हुए सुनीता ने नंदा के हाथ से लोई लेकर मठरी बनाने लगी।

       सुनीता अपने मायके में चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी।बचपन तो लाड़-प्यार में बीता।फिर दीदी की शादी हो गई।तब जब भी दीदी ससुराल से आती तो माँ उसे ही रसोई में भेज देती।फिर दो भाभियाँ आईं तो पढ़ाई से फ़्री होकर वो उनका हाथ बँटाने लगती।मना करने पर वह हँस कर कहती,” आप लोगों से कुछ सीख लूँगी तो ससुराल में ताने सुनने से बच जाऊँगी।” उसकी बात सुनकर फिर भाभियाँ भी हँसने लगतीं।

      ससुराल आने पर सबसे उसे बहुत स्नेह और प्यार मिला।वह सबसे छोटी थी।उसकी सास और बड़ी दोनों जेठानियाँ उसे अपनी हथेली पर रखतीं थीं।वह रसोई में कुछ काम करने जाती तो सास उसे मना करते हुए कहती, ” हमें तो इस सबकी आदत हो चुकी है छोटी बहू परन्तु तुम्हारे तो अभी खेलने-खाने के दिन हैं।” फिर भी वह कभी-कभी जिठानियों के काम में हाथ बँटाती रहती  थी।

सास के देहान्त के बाद बड़ी जेठानी ने ससुर जी के देखभाल की ज़िम्मेदारी संभाल ली।उन्हें समय पर दवा देने और उनके पैरों की मालिश करवाने के साथ-साथ उन्हें सैर कराने की ज़िम्मेदारी भी वो बखूबी निभाती थीं।तब रसोई का काम छोटी जेठानी और सुनीता मिलकर करने लगे।

समय के साथ-साथ दोनों जेठानियों के बच्चे बड़े हो गये, उनकी बेटियाँ ससुराल चली गईं और बेटे  दूसरे शहर में चले गये।उनकी उम्र भी ढ़लने लगी और शरीर भी अस्वस्थ रहने लगा।तब उसने कहा,” जीजी… मेरी दोनों बेटियों को आप संभालिये…और रसोई की ज़िम्मेदारी मैं संभालती हूँ।”

घर में आये मेहमानों का स्वागत से लेकर घर के बीमार सदस्यों के लिये वह तरह-तरह के व्यंजन बनाती।इतना सब करके भी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी।तभी से वह सबसे यही कहती कि आप टेंशन न …।नंदा उसकी फुआ सास की बेटी थी जो अपनी भाभियों से मिलने आई थी।नंदा को भी उसने यही कहा तो नंदा ने चिंता जताई, 

” लेकिन फिर भी भाभी…।”  सुनीता उसे चाय का कप थमाते हुए बोली,” आप चाय पीजिये…इधर आपकी चाय खत्म होगी और उधर मेरी मठरियाँ तैयार हो जाएँगी।” और ऐसा हुआ भी जिसे देखकर नंदा दंग रह गई, उसके मुँह-से निकल पड़ा,” वाह छोटी भाभी…वाह!।”

      समय बीतता गया, उसकी दोनों बेटियाँ भी अपने ससुराल चली गई।घर में दो सुशील बहुएँ आ गईं जो अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहीं थीं। उसके बड़े जेठ-जेठानी का स्वर्गवास हो गया, छोटे जेठ-जेठानी भी अब अस्वस्थ रहने लगें थें।उसकी खुद की भी उम्र हो रही थी, घुटनों के दर्द से वह परेशान रहती थी,

इसलिए अब रसोई में कम ही जाती थी लेकिन फ़िक्र लगी रहती थी।अपने पति से कहती,” हमने तो इतना बड़ा परिवार संभाल लिया…पता नहीं…इन बच्चों से हो पायेगा भी या नहीं…।” जवाब में उसके पति मुस्कुरा देते।

     एक दिन बड़ी बहू की कुछ सहेलियाँ आई हुईं थीं।वे उन सभी की आवभगत में व्यस्त थी।छोटी बहू रसोई में उन सभी के लिये पनीर-पकौड़े और काॅफ़ी तैयार कर रही थी।उसे अकेले काम करते देख सुनीता से रहा नहीं गया।धीरे-धीरे चलते हुए रसोई में गई और बहू से बोली,” ला बहू…मैं भी थोड़ा हाथ बँटा देती हूँ…तू अकेली सब कैसे करेगी…।”

    ” अरे चाची….आप टेंशन मत लीजिये।मैं सब कर लूँगी।वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी।पता है चाची…मेरे मायके में…..।” छोटी बहू बोलती जा रही थी और सुनीता उसे एकटक निहारे जा रही थी।सोचने लगी, मैं बेकार में ही चिंता कर रही थी।हमारी दोनों बहुएँ तो बहुत समझदार है।वो अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाना बहुत अच्छी तरह से जानती है।बड़ों का सम्मान करने और एक- दूसरे का सहयोग करने में वे तनिक भी संकोच नहीं करतीं।

     ” जुग-जुग जिओ बहू…।” बहू को आशीर्वाद देते हुए उसने चश्मा हटाकर आँचल से अपने आँसुओं को पोंछा और अपने कमरे में चली गई।उसके चेहरे पर सुकून के भाव थे।

                                         विभा गुप्ता

 # वाक्य प्रतियोगिता             स्वरचित

3 thoughts on “ज़िम्मेदारी – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi”

  1. नकारात्मकता के दौर में पारिवारिक सौहार्द की खूबसूरत कहानी।
    विचारों से समाज पर असर पड़ता है और वह उसी तरह का बनता है।

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