झूठी हैं दीवारें – मंजु सिंह : Moral Stories in Hindi

आज चैन की सांस ली थी अनीता ने । कब से इसी बात को लेकर चिंतित थी कि रचना का एडमिशन किसी अच्छे कॉलेज में होगा या नहीं ।आजकल दाखिले के लिए इतने अंक लाना सब के बस की बात कहाँ रह गयी है !  किस्मत अच्छी थी रचना की कि उसका दाखिला दिल्ली के अच्छे कॉलेज में हो गया वो भी उसके मनपसंद कोर्स में । बस एक ही बात कि चिंता लगी थी अनीता को अब कि कॉलेज में लड़के लड़कियां एकसाथ पढ़ते हैं और आजकल का माहौल ज़रा ठीक नहीं लगता था उसे लेकिन कर क्या सकती थी !! चाहती तो यही थी कि किसी ऐसे कॉलेज में दाखिला हो जाये जहाँ सिर्फ लड़कियां ही पढ़ती हों लेकिन सब कुछ जैसा चाहो वैसा हो तो नहीं जाता न ।

अभी कॉलेज शुरू होने में एक महीने का समय था अनीता ने हर रोज़ रचना कि क्लास लेनी शुरू कर दी कि उसे कॉलेज में किन किन बातों का ध्यान रखना है।

” देख बेटा तू तो जानती ही है कि आजकल समय बड़ा ख़राब है और तेरे पापा को यह बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगेगी कि तू लड़कों के साथ मेलजोल बढ़ाये ।”

“जानती हूँ न मम्मा !! क्यों फ़िक्र करती हो ? मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगी।”

“बेटा तू तो नहीं करेगी जानती हूँ , लेकिन संगी साथियों का भी तो असर पड़ता है । “

“आप तो ऐसे कर रही हो जैसे कि अट्ठारहवीं सदी में जी रही हो , मेरी डार्लिंग मम्मा साथ पढ़ते हैं तो ऐसा तो हो नहीं सकता कि बिलकुल बात ही न करें आपस में , है कि नहीं ? आप ही बताओ । “

“लेकिन बेटा बात करना एक अलग बात है । तू समझ रही है न मैं  क्या कहना चाहती हूँ? “

हाँ हाँ , सब समझ रही हूँ मै ।”  हँसते हुए माँ के गले में बाँहें डाल कर झूल गयी रचना और माँ को एक प्यारी सी झप्पी के साथ मीठी सी पप्पी भी देदी ।

“चल हट इतनी बड़ी हो गयी बचपना नहीं गया इसका । ”  रचना खिलखिला कर हंस पड़ी ।

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अच्छा मै थोड़ी देर अपनी सहेली के घर जाकर आती हूँ माँ ,। “

दिन इसी तरह बीतते गए । रचना के पिता नरेश यूँ तो पढ़े लिखे थे किन्तु इतने आज़ाद ख्याल के नहीं थे कि लड़के लड़कियों के आपसी मेलजोल और अधिक घुलने मिलने की बात को सहजता से हज़म कर पाते । रचना उनकी बड़ी बेटी थी ।

दो बेटियों के पिता नरेश अपनी बेटियों को जान से ज़्यादा स्नेह करते थे पति पत्नी दोनों ने कभी अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा । न ही कभी उन्हें बेटे की कमी खली हर प्रकार की सुख सुविधा से संपन्न एक मध्यम वर्गीय परिवार था उनका । जवान बेटियों के माता -पिता का जीवन तलवार की धार पर टिका रहता है इन दिनों। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए थे उन्होंने किन्तु बेटियां सुंदर थीं और बस यही उनकी दिन रात की चिंता का कारण था । वे बस इतना चाहते थे कि पढ़ा लिखा कर बेटियों को लायक बना दें और वो इज़्ज़त से अपने घर चली जाएँ ।

कहने को उनका सपना इतना बड़ा नहीं था , लेकिन आजकल समाज की स्थिति को देखते हुए जब तक बेटियां सुरक्षित अपने घर पहुँच न जाएँ तब तक ईश्वर ही मालिक है ज़माना खराब है ।

इसके अतिरिक्त वे अपनी बेटियों का विवाह अपनी मर्ज़ी की जगह करना चाहते थे , ये प्यार मुहब्बत और लव मैरिज उन्हें न भाती थी ।

पत्नी अनीता विपरीत विचारधारा की थी ।  इस मामले में उसके अनुसार जीवन बच्चों का है जीवनसाथी भी यदि उनकी पसंद का हो तो कोई बुराई नहीं है । इस बात पर पति पत्नी में अक्सर झड़प हो जाती थी । अनीता समझदार थी , पति का और उनके विचारों का सम्मान करती थी और उसने अपनी बेटियों को समय समय पर यह बात याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी की लड़कों की संगत से दूर रहें ।  अभी तक बेटियों ने कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था लेकिन अब रचना का एडमिशन को. एड. कॉलेज में हो गया था । बस अब तो तीन साल कैसे बीतेंगे भगवान जाने !!!

खैर रचना के कॉलेज जाने का पहला दिन आ ही गया । कॉलेज जाने से पहले माता पिता ने ही क्लास ले ली उसकी एक घंटे तक पास बिठा कर प्यार से अच्छा बुरा सब समझाया और फिर नरेश खुद छोड़ने गए उसे कॉलेज तक । कार से उतारते समय भी नरेश ने हिदायत दे डाली की ” सीधे रास्ते जाना और सीधे रास्ते आना बेटा । ” बाय करके रचना आगे बढ़ गयी । कॉलेज का पहले दिन अब तक लड़कियों के स्कुल में पढ़ी रचना थोड़ी डरी हुई भी थी।  रैगिंग का भी नाम सुना हुआ था , तो वो डर अलग था और सबसे बड़ा डर तो यह था कि  कहीं कोई लड़का बात न करने लगे ।

खैर ऐसा कुछ नहीं हुआ पहले ही दिन उसकी चार पांच लड़कियों से दोस्ती हो गयी । रैगिंग को लेकर कॉलेज में सख्ती थी तो ऐसा भी कुछ नहीं हुआ । पहला दिन कुल मिलकर अच्छा था । उसका डर भी काफी हद तक निकल गया ।

घर आयी तो सबने पूछा ,” कैसा रहा पहला दिन ??” उसने चहकते हुए कॉलेज की सब बातें बता दी ।

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माँ को भी तसल्ली हुई ।

दिन बीते । हफ्ते बीते । महीने बीते और देखते देखते पूरा एक साल बीत गया । ऐसा कुछ भी न हुआ जिस से अनीता और नरेश डरते थे । रचना के कॉलेज का दूसरा साल शुरू हो गया था . अब वह लड़कों से बात करने में डरती  न थी लेकिन उसने घर जाकर कभी किसी को नहीं बताया कि उसकी दोस्ती कुछ लड़कों से भी हो गयी है ।

उसके सब दोस्त अच्छे थे । हंसी मज़ाक , खाना पीना और पढ़ना सब एक साथ ही होता था ,  मिलजुल कर  । सब दोस्तों में से ही एक था रोहन जो मन ही मन रचना की ओर आकर्षित रहता था । हालाँकि उसने कभी ज़ाहिर नहीं होने दिया । उसे इस बात का इज़हार करने में भी डर  लगता था लेकिन एक दिन उसने यह बात रचना की सहेली राशि को बता दी और बातो बातों में राशि उन दोनों को कभी कभी छेड़ने लगी। बात धीरे धीरे बढ़ने लगी और एक दिन रोहन ने हिम्मत जुटा कर अपने मन की बात रचना से कह डाली । चाहती तो रचना भी थी लेकिन अपने घर के माहौल और पिता से डरती थी । कॉलेज का डेढ़ साल बचा था अभी और उनका साथ दिनोदिन बढ़ रहा था ।परिवार में किसी को कुछ पता नहीं था । रचना ने यह बात अपनी छोटी बहन रश्मि को भी कभी नहीं बताई ।

एक दिन रचना और रोहन को नरेश ने एक साथ घूमते देख लिया और रचना की भी पापा पर नज़र पड़ गयी । रचना की तो ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गयी । उसके पाँव कांपने लगे और सर से पाँव तक ठंडा पसीना आ गया ।  नरेश उस समय कुछ नहीं बोले और सीधे चले गए अब तो रचना की घर जाने की हिम्मत न हो रही थी , लेकिन जाना तो था । नरेश का कुछ न कहना रचना के मन में और अधिक डर का कारण बन गया ।

डरते डरते वह घर पहुंची सोच रही थी कि आज तो खैर नहीं। डोरबेल बजायी , माँ ने दरवाज़ा खोला तो बिलकुल नार्मल लग रही थीं । लग ही नहीं रहा था कि  कोई बात हुई हो उसने धड़कते दिल से भीतर कदम रखा पापा को आँगन में बैठे चाय पीते देखा। उन्होंने उसकी तरफ देखा तक नहीं वह सीधी अपने कमरे में चली गयी । मन में घबराहट थी कि  अब कुछ हुआ और अब हुआ । रात का खाना सब एक साथ खाते हैं तो आज भी खाने की मेज़ पर सब साथ थे । बातें हो रही थीं , लेकिन रोज़ की तरह । कुछ अलग नहीं हुआ । पापा ने रचना से बस इतना पूछा , ” बेटा पढाई कैसी चल रही है ? ” उसने डरते डरते जवाब दिया ,” ठीक चल रही है पापा ।”  इसके आलावा कोई बात नहीं की रचना से । सब नार्मल लग रहा था .रचना का डर जाता रहा। वह हैरान थी कि  पापा ने कुछ कहा नहीं।

अगले दिन रचना ने माँ को सब बता दिया अपने और रोहन के रिश्ते के बारे में । माँ अचंभित थीं कि  बात इतनी आगे बढ़ गयी और रचना ने उन्हें कुछ नहीं बताया..बोली-

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” बेटा तू तो पापा को जानती है न, अगर तू बहुत आगे तक सोच रही है तो रोक ले अपने आप को , क्योंकि तेरे पापा शादी तो अपनी जात -बिरादरी में देखभाल के ही करेंगे वे ऐसी शादियों को बिलकुल पसंद नहीं करते ।”

” माँ मुझे पता है लेकिन आप चिंता मत करो मैं कोई ऐसा वैसा काम नहीं करुँगी कि  आप को शर्मिंदा होना पड़े और शादी तक तो बात पहुंची भी नहीं । मै पापा की मर्ज़ी के खिलाफ कभी भी कुछ नहीं करुँगी “

उन्हें पता भी न चला कि  नरेश छुप कर उनकी बातें सुन रहे थे । बेटी की समझ पर गर्व हुआ उन्हें और आँखें नम हो गयीं ।

अब नरेश को लगने लगा कि  उन्हें रचना की शादी के विषय में सोचना चाहिए। उन्होंने रिश्तेदरों से लड़का बताने की बात कहनी शुरू कर दी । अपनी बहन को फोन किया तो पता चला कि  उनकी बेटी के ससुराल वाले उसे बहुत परेशान करते हैं बार बार दहेज़ को लेकर ताने सुनाते हैं और नौकरों की तरह काम करवाते हैं । मायके भी नहीं आने देते ।  यह सब सुन कर नरेश को झटका लगा ।  उन्होंने अनीता को सारी बात बताई तो वह भी हैरान रह गयी।

” जीजी ने तो खूब देख परख के रिश्ता किया था और देने लेने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी । यह तो सचमुच बहुत बुरा हुआ बेचारी रीमा के साथ ।”

” हाँ , यही सब सोच कर बेटियों की चिंता होती है । “

“आप फ़िक्र मत करिये सब के साथ एक सा थोड़े ही होता है । “

कुछ दिन बाद पड़ोस की रमा आंटी आयीं तो अपनी बेटी का दुखड़ा रोने लगीं पता चला कि उनका दामाद कोई काम ही नहीं करता शादी के समय झूठ झपट बोल बाल के शादी कर ली । अब आये दिन मायके वालों से कोई न कोई मांग करते रहते हैं ।  अनीता ने पूछा , “आजकल तो रानो आयी हुई है न काफी दिनों से ?” बेचारी रानो की माँ को समझ न आया क्या जवाब दे । उसने कह ही डाला , ” बहनजी मैं तो रोज़ रोज़ की झिक झिक से परेशान हो चुकी हूँ ,रानो को बुलवा लिया है और जी करता है अब भेजूं ही न ।  रानो भी जाना नहीं चाहती ।”

क्या कहती अनीता !! दुखी होकर जवाब दिया, ” यही तो कारण है कि  हमारे देश में लोग बेटी पैदा नहीं करना चाहते । फिर भी आप सोच समझ कर ही कोई फैसला करना ,लड़की की ज़िंदगी का सवाल है । “

कुछ देर बातें होती रहीं फिर पड़ोसन अपने घर चली गयी ।

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अनीता के दिमाग से तो निकल ही नहीं रहा था जो रानो के साथ हुआ ।आखिर वह भी तो दो दो बेटियों की माँ थी । बेटियों के भविष्य की चिंता में अनीता की नींद उड़ गयी थी । उसे लगता था कि इतना देखभाल कर जात बिरादरी में शादी करने का भी क्या फायदा । जब यह सब होना ही होता है । उसके दिमाग में रात दिन यही उधेड़बुन लगी रहती थी । वह रचना और रोहन की बात से भी अनजान नहीं थी मन ही मन चाहती थी कि बेटियां अपनी पसंद की जगह ही शादी करें क्योंकि अब उसे कहीं न कहीं लगने लगा था कि आपसी समझदारी जात बिरादरी से अधिक कारगर होती है रिश्ते निभाने में ।

उधर नरेश भी परेशान था जब से बेटी की शादी के बारे में सोचा तब से पता नहीं क्यों हर तरफ से ऐसी ही ख़बरें सुनने को मिल रही थी ।उसे भी चिंता तो होती थी परन्तु कभी किसी से कुछ कहते न बनता था ।

.नरेश दफ्तर से आकर चाय पी रहे थे कि फोन कि घंटी बजी . दूर के रिश्ते के भाई का फोन था बात करने के बाद पत्नी को बताया कि वे रचना के लिए रिश्ता बता रहे थे .लड़का डॉक्टर है इकलौता लड़का है माता पिता का . अगले मंगल को आ रहे हैं वे लड़की देखने, अगर बात बनी तो सर्दियों में शादी की कह रहे हैं ।

” लेकिन अभी तो उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई । अभी से शादी ?? ” इतनी जल्दी बेटी को विदा करने की उसने कभी सोची भी नहीं थी ।

रचना को पता चला तो उसने भी पापा से कहा कि इतनी जल्दी क्या है किन्तु नरेश को लग रहा था कि अच्छा लड़का मिलता कहाँ है  आजकल । फिर इकलौता है कोई झगड़ा झंझट भी नहीं । उसने एक न सुनी और उन्हें आने का सन्देश दे दिया ।

उस दिन सब तैयारियां कि गयीं उनके स्वागत सत्कार की और वे लोग सब देखकर बड़े प्रसन्न भी हुए ।  लड़की भी उन्हें पसंद आ गई । लड़का भी अच्छा था । सारी बातचीत होने के बाद बात दान दहेज़ की चली , लड़के के पिता बोले , ” देखिये भाई साहब लड़के को डॉक्टर बनाने का खर्चा बहुत हो गया । हम मांगते तो कुछ नहीं परन्तु क्या करें । अधिक नहीं बस दस लाख कॅश कर दीजियेगा और शादी ऐसी ही जाये कि समाज में लाज रह जाये । बाकी हम और लोगों की तरह लालची नहीं हैं ।”

यह बात सुनकर नरेश तो चुप रहा किन्तु रचना चुप न रह सकी ,” सर अभी तो मैंने आपको बताया भी नहीं कि  आपका बेटा  मुझे पसंद भी आया या नहीं और आपने दाम भी लगा दिया ।”

उसकी बात सुनकर उसके माता पिता एक साथ बोल उठे, ” बेटा ,यह क्या कह रही है तू ? “

” मैं

ठीक कह रही हूँ माँ , कह दीजिये इनसे कहीं और जाकर बोली लगाएं अपने बेटे की । यहाँ कोई खरीदार नहीं । ” हक्के -बक्के सब एक दूसरे की और देखने लगे , ” चलो जी , हम यहाँ अपना अपमान कराने नहीं आये हैं ।”

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बेटी की और से माता पिता माफ़ी मांगने लगे किन्तु रचना ने उन्हें रोक दिया ।  और बिना कुछ कहे सुने वे लोग चले गए । नरेश ने अपने चचेरे भाई से बेटी के बर्ताव के लिए माफ़ी मांगी और वे मौके की नज़ाकत को समझते हुए कोई दूसरा रिश्ता बताने की बात कहकर थोड़ी देर बाद चले गए । उनके जाने के बाद नरेश ने रचना को बुलाकर समझाया कि बाहर वालों के सामने ऐसा व्यव्हार नहीं करना चाहिए था ।

” लेकिन पापा आज पहली और आखिरी बार आपको बता रही हूँ कि मुझे शादी ब्याह के नाम पर होने वाले व्यापर से सख्त नफरत है । ” और पैर पटकती वह अपने कमरे में चली गयी । आज फिर उन्हें अपनी बेटी के विचारों पर गर्व महसूस हुआ ।

नरेश के मित्र के बेटे की शादी थी वे लोग शादी में पहुंचे ।रचना गुलाबी रंग कि शिफॉन की साड़ी में किसी अप्सरा से कम न लग रही थी ।उसके रूप को देखकर उसकी माँ हैरान थी उनकी बेटी कितनी खूबसूरत है !! शादी में अचानक उसने रोहन को देखा और माँ को बताया कि  वहां रोहन भी मौजूद है . नरेश रोहन को पहचानता था जब उसने रोहन को देखा तो खुद ही उसके पास पहुँच गया । दोनों काफी देर तक बात करते रहे । रचना और अनीता की तो जान ही नकल रही थी कि  न जाने क्या बातें हो रही हैं। तभी रोहन नरेश को अपने पापा से मिलाने ले गया रचना सोच रही थी कि  आखिर हो क्या रहा है !!!

नरेश ने जब रोहन के पापा को देखा तो उनका चेहरा जाना पहचाना सा लगा , ” नरेश तू !!! अरे यार आज कुछ और माँगा होता भगवान से तो वो भी मिल जाता । “

अमर तुम हो !! ” और दोनों एक दूसरे के गले लग गए .दोनों की आँखों में नमी थी .” बता यार एक ही शहर में होकर भी हम आज तक मिल नहीं पाए , चल भाभी से तो मिलवा अब ,कि यहीं खड़ा रहेगा !! “

” ख़ुशी के मारे सब कुछ भूल ही गया मैं तो ।”

रोहन इस सब में कुछ समझ नहीं पा रहा था जब नरेश उन्हें अपने परिवार से मिलाने लाया तो सब का डर अचानक ख़ुशी में बदल गया . खूब मिले दो दोस्त बरसों के बाद । उधर रोहन भी रचना के परिवार से घुल मिल गया । अमर को भी यह जानकार बड़ी ख़ुशी हुई की दो पुराने यारों के बच्चे भी अपने पिताओं की तरह क्लासमेट निकले ।

” बेटा मम्मी नहीं आयीं ?”अनीता ने रोहन से पूछा ।

“नहीं आंटी उनकी  तबियत कुछ ठीक नहीं थी । कल आप सब आइये न हमारे घर । मम्मी को बहुत अच्छा लगेगा ।”

“हाँ – हाँ बेटा क्यों नहीं ज़रूर आएंगे । “

नरेश और अमर की देर तक न जाने क्या बातें होती रहीं ।

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उस दिन घर लौटे तो नरेश काफी खुश था । आखिर कॉलेज के ज़माने का दोस्त जो मिल गया । सभी पुरानी बातें खूब याद की दोनों ने । अनीता और नरेश देर रात तक उनकी ही बातें करते रहे और अगले दिन उनके घर जाने का कार्यक्रम भी बना लिया । रचना तो बेहद ही खुश थी । उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि  अचानक ये हो क्या रहा है । कहाँ वह पापा के डर के मारे मरी जा रही थी कि  कैसे रिएक्ट करेंगे जब उन्हें उसके और रोहन के बारे में पता चलेगा लेकिन रोहन के परिवार से यूँ मुलाकात करवा देगी तकदीर, यह तो कभी सोचा भी नहीं था उसने । अब भी उसे डर ही था कि  पता नहीं क्या होगा!! लेकिन मन ही मन वह खुश थी।

अगले दिन जब उनके घर पहुंचे तो अमर के ठाठ देखकर सब हक्के बक्के रह गए ।  रचना को यह बिलकुल भी पता नहीं था कि  रोहन इतने बड़े घर का बेटा है ।

उनकी खूब आवभगत हुई । रोहन की माँ भी पहली ही बार में अपनी सी लगीं । ऐसा लग ही नहीं रहा था कि  दोनों परिवार कल ही मिले थे ।

पहले ही दिन अमर ने अपने बेटे रोहन के लिए रचना का हाथ मांग लिया नरेश से । नरेश को इस बात की कोई उम्मीद नहीं थी । हालाँकि शादी के समारोह में जब वह रोहन से मिलने गया था तो उस के पीछे कारण यही था वह भी दोनों का रिश्ता आगे बढ़ाना चाहता था परन्तु जब देखा कि अमर इतनी बड़ी हैसियत का इंसान है तो उसे अपने आप में कुछ छोटापन महसूस हो रहा था । और अब चुप ही रहना ठीक लग रहा था उसे । पर जब अमर ने खुद प्रस्ताव रखा तो वह सोच में पड़ गया ।

” क्या हुआ नरेश ? क्या तुम्हे रोहन पसंद नहीं आया ? “

“अरे क्या बात कर रहा है यार!! तेरा बेटा तो हीरो है पसंद क्यों नहीं आएगा !!! “

अनीता चुप न रह सकी बोली,” भाई साहब कहाँ आप कहाँ हम !! रिश्ता बराबरी पर अच्छा लगता है न ? “

” क्या कह रही हो भाभी? हम दोनों दोस्तों के बीच आज के बाद यह बात कभी नहीं आनी  चाहिए , बस अब आपकी एक न सुनेंगे हम । “

रोहन की माँ ने भी अपनी रज़ामंदी की मुहर लगा दी ,” रचना अब हमारी है हम अगले हफ्ते शगुन लेकर आरहे हैं । “

लेकिन इतनी जल्दी ??

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” तो आप को कुछ नहीं करना है । अभी बस रुपया नारियल ही देना है । रिश्ता पक्का कर देते हैं । शादी सर्दियों में करेंगे तब तक इन दोनों की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी । “

नरेश और अनीता के लिए कुछ कहने को छोड़ा ही नहीं उन्होंने । यह सारी बातें बच्चों के सामने न हुई थी ।

इसलिए रचना और रोहन को सरप्राइज़ देने की बात तय हुई । अगले शुक्रवार की बात पक्की हो गयी  अनीता की हैरानी का ठिकाना न रहा । पति में इतना बदलाव ! उसकी सोच से परे था ।

घर आने के बाद अकेले में अनीता ने पति से पूछ ही लिया , ” एक बात समझ नहीं आयी मुझे । आप रोहन से मिलने कैसे पहुँच गए वहां ?? क्या आप उसे पहले से जानते थे ? “

“मैंने एक दिन रचना को उसके साथ देखा था तो बस यूँ ही चला गया मिलने , मुझे क्या पता था कि  वो अमर का बेटा है ! “

“आपने मुझे कभी नहीं बताया कि  आप ने उन दोनों को देखा था ..”

“क्या बताता!! सोचा साथ पढ़ते होंगे । “

” …लेकिन आप शादी के लिए कैसे तैयार हो गए , ये तो बता दो । “

“क्या करूँ ! दुनिया का हाल देख कर सोचा कि शायद यही ठीक रहेगा कम से कम दोनों साथ खुश तो रहेंगे “

वह दिन भी आ गया अब रचना से कहा गया कि लड़के वाले आने वाले हैं देखने । सारी तैयारी की गयी लेकिन चुपचाप। रचना को गुस्सा आ रहा था ,” क्या मम्मा ,ये रोज़ रोज़ के ड्रामे मुझे पसंद नहीं हैं ।  इतनी जल्दी क्या पड़ी है आप लोगों को मेरी शादी की  ?? झेल नहीं पा रहे हो क्या मुझे ? ” उसने पैर पटकते हुए कहा , ” मैं किसी के लिए न तैयार होने वाली हूँ । न ही चाय लेकर जानेवाली , बुला लो जिसे चाहो ” अनीता मन ही मन हंस रही थी।

थोड़ी देर बाद दरवाज़े कि घंटी बजी दरवाज़ा खोलने रचना ही गयी और रोहन और उसके परिवार को देख कर हक्की – बक्की रह गयी। वे शगुन का सामान लिए हुए थे ।रचना को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था । रचना कुछ- कुछ समझ चुकी थी उसकी नज़रें रोहन से मिलीं और वह शरमा कर अपने कमरे में चली गयी । वहां रश्मि पहले से ही मौजूद थी ।

रश्मि ने रचना को चिढ़ाते हुए कहा , “क्यों दीदी !! कह दूँ उनसे कि जाएँ अपने घर । नहीं करनी हमारी प्यारी दीदी को अभी शादी- वादी ।”

“चल हट !! बहुत पिटेगी तू । भाग यहाँ से ।” और रश्मि खिलखिलाती हुई बाहर चली गयी।

वह कभी सपने में भी यह नहीं सोच सकती थी कि पापा इतने बदल जायेंगे और उसे इतनी बड़ी ख़ुशी यूँ देंगे !! सर प्राइज के तौर पर !!

सचमुच आज नरेश और अनीता कि सारी चिंता मिट गयी थी .हम खुद ही ज़ात- पात ऊंच- नीच की झूठी दीवारें अपने चारों और खड़ी कर लेते हैं .जो आज के समय में ज़रा भी तर्कसंगत नहीं हैं . बच्चों की ख़ुशी से बड़ी कोई ख़ुशी नहीं है यह आज समझ में आया नरेश को रचना के सर पर हाथ फेरते हुए उसकी आँखों से दो आंसू ढुलक गए ….

 मंजु सिंह

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