जितनी बड़ी चादर हो, उतने ही पैर फैलाना बुद्धिमानी है।बहु !
हा मां!
लेकिन लड़केवाले तो अमीर हैं।
तो क्या हुआ? बहु!
जो सच है, जो सहज-सरल और वही वास्तविक है, वही बयान करना चाहिएं।
कल पूरा परिवार अपने यहां आने वाले है। मां!
ठीक है । हा !है जैसे वैसे रहेगें।
बेटी के संस्कार और पढ़ाई,उसका व्यवहार देखकर ही उन्होंने सविता को पसंद किया है। हैसियत देखकर नहीं ,
नहीं मां!
में आज ही पड़ोसी के यहां से कुछ सामान लेकर आती हु , कल के लिए ।
क्या जरूरत है?बहु ?
अमीरों की बराबरी क्यू करे ?जितनी क्षमता’ या ‘सामर्थ्य’ उसे ज्यादा दिखावा हमेशा ही गलत होता हैं।
लेकिन बहु ,बात माने वाली ही नही थी ।
लेकिन जब शामको लड़के वाले घर में आएं।और एक दूसरे से ,
बातचीत और परिचय चल ही रहा था।
उतने में सासू” मां “की एक सहेली मां को मिलने आई। सामने रखा टी टेबल देखते ही ,सासू मां सहेली के मुंह से निकल गया अरे ये तो राधाजी घर का है न ।
बहु” मां “को देख कर खुद को अपमानित महसूस कर रही थी ।
अच्छा खासा माहौल को” गुड गोबर कर दिया “
झूठी शान का देखावा लोगों को प्रभावित कर सकता है।लेकिन कुछ समय के लिए “खुशी “दे सकता है । अंत में दुःख ही देता है।
अपने “सामर्थ “और “क्षमतासी से अधिक दिखावा कभी गलत ही है।
झूठी शान में कैसा मान?
तृप्ति देव