तेरे शादी करके चले जाने से मैं अकेली रह जाऊंगी ….इसलिए तू अभी शादी नहीं करेगी…..
अरे न जाने किस मिट्टी की बनी है तू मेरी पोती ( श्रुति )……
शायद उसी मिट्टी की ….जिससे तेरी मां बनी थी….!
मेरे कुछ अमानवीय व्यवहार जो मैंने कभी तेरी मां के साथ किया था…. तुझे भी तो पता होना चाहिए….
अरे ये तू क्या बोल रही हैं दादी…?
आज मैं तुझे अतीत में लेकर चलती हूं बेटा….. शायद इससे मुझे थोड़ा हल्का लगे….
देख गुल्लू…. गुलशन नाम है, पर हमने तो कभी गुलशन कहा ही नहीं… हमेशा गुल्लू ही कहते आए हैं…. वो चारों ओर इसी नाम से जाना जाता है …
बेटा , अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है 20-25 हजार रुपए मुंह पर मार और छोड़ आ उसे .. उसके घर ….गरीब लोग हैं… पैसे मिलते ही शांत हो जाएंगे…. ऐसे ही तो ये लोग पैसा देखकर लड़कों को फसाते हैं ….!
कैसी बातें कर रही हो अम्मा…. शिप्रा पत्नी है मेरी… मैंने कोर्ट में शादी की है उससे ….आप मेरी पत्नी के विषय में ऐसे कैसे बोल सकती हैं …?
चार दिन हुए नहीं कि बड़ा आया पत्नी वाला ….ऐसे शादी को कौन मानता है…. ना मां-बाप , ना बैंड बाजा, ना बारात…. अभी यहां इस शहर में कोई जानता भी है कि तेरी शादी हो गई है….. और उसका घर इतना दूर है कि ना उधर किसी को कुछ पता चलेगा और ना इधर …..अपना समाज है , बाकी तू देख ले भाई आगे तेरी मर्जी….।
अम्मा… आप मेरी अम्मा है ना… शायद इसीलिए मेरे सामने मेरी पत्नी के बारे में ऐसी बातें कर रही हैं…और मैंने सुन भी लिया ….आज के बाद शिप्रा के विषय में एक भी शब्द नहीं सुनूंगा अम्मा …!
अम्मा , जब आप शिप्रा से इतना नफरत करती हैं, तो हमें घर में जगह क्यों दी…?
” क्योंकि मैं उसके साथ तुझे भी नहीं खोना चाहती थी बेटा “…!
शिप्रा जिसने ये सब बातें सुन ली थी…. आंखों में आंसू भरते हुए बस इतना ही पूछ सकी थी…. तुम मुझे छोड़ोगे तो नहीं ना गुल्लू ….?
बस तुम मेरा साथ मत छोड़ना ….अम्मा जी को तो मैं मना ही लूंगी…।
उसके बाद से सुमित्रा देवी ने शिप्रा को सीधे-सीधे तो कभी कुछ नहीं कहा ….पर उनका बर्ताव शिप्रा के लिए ऐसा था मानो उन्हें उससे कोई मतलब ही नहीं है …!
धीरे-धीरे समय बीतता गया… तेरे जन्म ने मुझे थोड़ा बदलने पर मजबूर किया …..आवश्यकता पड़ती गई , तुझे शिप्रा के गोदी से लेना ….दूध के लिए बोलना …वगैरह… न जाने कितने ऐसे काम होते थे…जो मुझे और शिप्रा को नजदीक करते गए …..तब मुझे भी लगने लगा शायद शिप्रा जैसी लड़की पसंद कर गुल्लू ने बहुत सही काम किया है …।
वो गरीब परिवार से जरूर थी… पर मानवीय मूल्यों को बखूबी जानती थी… बेटा , शिप्रा चाहती ना तो गुल्लू के साथ अलग भी रह सकती थी , इस घर के किचकिच और मुझसे दूर….पर उसने ऐसा नहीं किया , उसने हर समय और हर संभव इस घर से जुड़ने का प्रयास ही किया…।
एक समय ऐसा आया जब मैं शिप्रा से प्यार से बात करती तो मुझे खुद ही शर्मिंदगी महसूस होती….
मैं सोचती शिप्रा को आज के मेरे व्यवहार और शुरू के दिनों के व्यवहार अनुभव कर उस पर क्या गुजरती होगी… जाने अनजाने में मैंने कई बार गुल्लू से भी और शिप्रा से भी माफी मांगने की कोशिश की थी ….पर ….कह कर सुमित्रा देवी ने एक लंबी सांस ली….।
और उस दिन जब तू श्रुति, स्कूल गई थी…. और गुल्लू बाहर गया था तब तैयार होकर शिप्रा ने कहा… अम्मा जी मैं डॉक्टर के पास से आती हूं ….रात को मेरे पेट में दर्द था ….मैंने कहा भी , अकेली जाएगी…? तो शिप्रा ने कहा… हां अम्मा जी रिक्शा से चली जाऊंगी…! डॉक्टर को दिखाकर आती हूं…श्रुति स्कूल से आएगी तो आप खाना खाने को बोल दीजिएगा …।
और फिर बस बेटा…. वो आती हूं बोलकर गई फिर लौट कर कभी नहीं आई …..डॉक्टर ने तुरंत एडमिट कर लिया , जल्दी से ऑपरेशन की जरूरत थी …..गुल्लू के आते ही दूसरे दिन ऑपरेशन हुआ…!
एनेस्थीसिया ज्यादा हो जाने के कारण ऑपरेशन के बाद होश ही नहीं आया था शिप्रा को….. डॉक्टर की गलती कहे या किस्मत का दोष दूं …..शायद शिप्रा के नसीब में खुशी के दिन देखना ही नहीं था …..सुमित्रा देवी के आंखों में आंसू थे…।
इन सब बातों के मध्य ही अचानक वहां गुल्लू पहुंच गया….सुमित्रा देवी की आंखों में आंसू देख बोला ….जानती है श्रुति बेटा…. जितना भी अम्मा ने बोला है उसका आधा भी सच नहीं है….
हां बेटा , उस समय का माहौल बिल्कुल अलग था ….लोगों की सोच बहुत अलग थी…. फिर परिवार , समाज…. समाज की उलाहना …इन सब कारणों की वजह से अम्मा ने थोड़ी सख्ती जरूर बरती थी ……पर गलती तो मेरी भी थी ना …..अब गलती कहूं या विवशता ….मजबूरी का नाम दूं ….या….
ऐसी क्या मजबूरी थी पापा …..जो मम्मी को घर से भागकर कोर्ट में जाकर शादी करनी पड़ी …..और आपको इतनी जल्दी थी कि आपने दादी को बताए बिना ही….?
वो क्या है ना बेटा ….मैं ट्रेनिंग के सिलसिले में कोलकाता गया था… जहां रुका था …वही सामने का घर शिप्रा का था….. शिप्रा के माता-पिता नहीं थे अतः वो अपने भाई भाभी के साथ रहती थी ….।
एक दिन मैं छत पर बैठकर पढ़ रहा था…. शिप्रा अपने छत पर कपड़े सुखाने आई तभी मेरा दोस्त मुझे गुल्लू कह कर पुकारा….शिप्रा सुनते ही …” गुल्लू ” बोलकर जोर से हंस पड़ी… फिर कभी-कभी वो छत पर आती मैं भी धूप में छत पर पढ़ता रहता …. एक दिन उसकी भाभी ने देख लिया …. बस फिर क्या था……
सामने से चीखने , चिल्लाने , रोने की आवाज आई …. मुझे समझते देर ना लगी….. उस पर बहुत अत्याचार हुए थे बेटा …..नौकरानी की तरह काम करती ,फिर भी मार कुटाई होती रहती ……बस मुझसे देखा नहीं गया ….फिर हमने वहां से निकलकर शादी कर ली थी…!
सुमित्रा देवी बेटे के दुखी चेहरे को देख रही थी उनके चेहरे पर पश्चाताप दिखाई दे रहा था…।
सुमित्रा देवी ने कुछ और कहने के लिए मुंह खोला ही था कि श्रुति ने कहा…. 1 मिनट …रुक ना दादी….. मैं सच जानना चाहती हूं……मां ने मुझे अलग कहानी बताई थी …? दादी तू अलग कहानी बता रही है …… मैं किसकी बात मानू ….?
मां ने क्या बताया था पोतिया …अलग क्या बता सकती है शिप्रा ….? सुमित्रा देवी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी …..
मां हमेशा मुझसे बोलती थी…. तेरी दादी ने ही मुझे घर , मां का नाम सब कुछ दिया …..वरना इसके पहले तो ना मेरा कोई घर था , ना ही मेरी कोई मां…. और तेरे पापा मेरी जिंदगी में भगवान बनकर आए और मुझे मेरी राजकुमारी मिल सकी….. हां मां के लिए तो मैं राजकुमारी थी…! थी ना दादी…? इस बार श्रुति के आंखों में भी आंसू थे…।
और दादी तेरी भी तो राजकुमारी हूं ना ….कह कर श्रुति सुमित्रा देवी के गोद में सिर रखकर लेट गई….।
कोई कुछ भी बोले ……मेरी मां कभी झूठ नहीं बोल सकती ….. वो अपने आखिरी वाले दिन भी….. मेरे स्कूल जाते समय बोली थी , दादी से लेकर खाना खा लेना , उन्हें तंग मत करना उनकी बात मानना…. ऑपरेशन वाले दिन भी तो बोली थी… दादी तेरा नहीं , तू दादी का ख्याल रखना ,…..
……मैं जल्दी घर लौटूंगी ……
मैं जल्दी घर लौटूंगी ….पर यही पर धोखा दे गई मां ……जल्दी घर लौटूंगी …..बोलकर कभी ना लौटी….
” झूठी मां ” कहीं की….. कहकर श्रुति दादी के गले लग कर रोने लगी….. रोते रोते श्रुति ने कहा …..मुझे सच नहीं जानना है ….दादी , मेरे और तेरे बीच खून के रिश्ते के अलावा ” मन का रिश्ता ” भी तो है ना….!
सामने दीवार पर टंगी तस्वीर में शिप्रा… दादी और पोती के प्यारे से रिश्ते को निहार मुस्कुरा रही थी…!
(स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना)
साप्ताहिक प्रतियोगिता # मन का रिश्ता
संध्या त्रिपाठी