Moral Stories in Hindi :
टिंग टोंग दरवाजे पर घंटी बजी। आशीष ने दरवाजा खोला (जहां वह किराए पर रहता था।उसका परिवार भोपाल में रहता था।) दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि सामने पुलिस खड़ी है।
आशीष इंस्पेक्टर से-“हां जी सर?”
इंस्पेक्टर-“तुम्हारा नाम आशीष है?” आशीष-“जी सर”।
इंस्पेक्टर-“थाने चलो, तुम्हारे खिलाफ शिकायत आई है रिपोर्ट दर्ज हुई है।”
आशीष-“किसने शिकायत की है, क्या किया है मैंने?”
इंस्पेक्टर-“जल्दी मेरे साथ चलो, थाने में सब पता लग जाएगा।”
आशीष-“लेकिन सर, बात का पता तो चले।”
इंस्पेक्टर गुस्से में-“चलता है या नहीं, बड़ा शरीफ बन रहा है साले।”
इतनी देर में मकान मालिक और कुछ पड़ोसी बाहर आ जाते हैं और इंस्पेक्टर से कहते हैं कि आशीष सचमुच एक शरीफ और अच्छा लड़का है। पर इंस्पेक्टर किसी की बात नहीं सुनता और आशीष को ले जाता है।
थाने में पहुंचकर उसे पता लगता है कि किसी निशा नाम की लड़की ने शिकायत दर्ज कराई है। उसने कहा है कि”आशीष ने उसे धोखा दिया है। उसने उससे शादी का वादा किया और उसके साथ फिजिकल रिलेशन बनाने के बाद, अब शादी से इनकार कर रहा है।”
यह सब सुनकर आशीष सकते में आ गया। उसने इंस्पेक्टर से कहा-“मैं तो किसी निशा नाम की लड़की को जानता ही नहीं हूं, फिर यह सब मेरे साथ क्या हो रहा है?”
इंस्पेक्टर ने उसे सलाखों के पीछे डाल दिया और कहा-“अगर तुम निर्दोष हो, तो साबित करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगा।”
जब वह जेल में बंद था तब एक दिन निशा वहां आई। उसकी सूरत देखकर आशीष को सारी बात याद आ गई।
दरअसल निशा अमीर बाप की बिगड़ैल बेटी थी। साधारण रंग रूप को महंगे मेकअप और महंगे कपड़ों के जरिए सुंदर बनाने की कोशिश में लगी रहती थी। निशा एक दिन आशीष से जिम में टकरा गई थी और आशीष ने उसे अपनी बाहों का सहारा देकर गिरने से बचा लिया था। तब से वह बिना बात के आशीष से चिपकती रहती थी और आशीष उसे इग्नोर करता रहता था।
एक दिन आशीष बहुत परेशान था क्योंकि जिम में पता नहीं कैसे उसका मोबाइल गुम हो गया था। बहुत ढूंढा पर मोबाइल नहीं मिला। उसने थाने में मोबाइल के को जाने की रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी।
जब वह इस समय सलाखों के पीछे था तब निशा उसे देखकर कुटिलता से मुस्कुरा रही थी। उसके जाने के बाद आशीष ने इंस्पेक्टर से कहा-“सर आपके कहे अनुसार निशा के डॉक्टरी जांच भी की गई थी जिसमें फिजिकल रिलेशन साबित हुआ और प्लीज सर मुझे यह बताइए कि निशा के अनुसार यह किस दिन की बात है।”
इंस्पेक्टर-“रक्षाबंधन से 2 दिन पहले यानी की 28 अगस्त।”
आशीष-“सर मैं आपको अपने बेगुनाह होने का सबूत दे सकता हूं, प्लीज आप मेरे साथ मेरे घर चलिए।”
इंस्पेक्टर-“अब और झूठ मत बोलो। हमने तुम्हारे फोन की लोकेशन देखी है। तुम निशा के घर पर ही थे।”
आशीष-“सर , मेरा फोन तो गुम हो गया था। इसका मतलब निशा ने ही चुराया था। यह सब उसके प्लान का हिस्सा था। सर मैं आपको फिर की कॉपी भी दिखा सकता हूं और 28 तारीख को मैं कहां था मैं साबित कर सकता हूं।”
इंस्पेक्टर-“पर कोई भी लड़की ऐसा झूठ क्यों बोलेगी?”
आशीष-“सर, यह तो आप निशा से ही पूछिएगा।”
दोनों आशीष के घर आते हैं। फोन के को जाने का सबूत और 28 तारीख की रेल की टिकट भोपाल जाने की और एक सितंबर की टिकट भोपाल से वापस आने की। इन सबूतो को देखकर आशीष निर्दोष साबित हो रहा था।
इंस्पेक्टर-“तुम भोपाल क्यों गए थे?”
आशीष ने बताया-“सर, मैं वैसे चाहे कहीं पर भी रहूं पर राखी वाले दिन मैं अपनी छोटी बहन से राखी बंधवाने घर जरूर जाता हूं। आज उस छोटी बहन के प्यार ने मुझे बचा लिया।”
दोनों थाने में वापस आए और इंस्पेक्टर ने निशा को फोन करके थाने में बुलाया।
एक लेडी इंस्पेक्टर के साथ निशा को पूछताछ के लिए दूसरे अलग कमरे में भेज दिया गया। पहले निशा सच नहीं बता रही थी, बाद में दो-तीन चटाकेदार और मसालेदार थप्पड़ खाने के बाद उसने सारा सच उगल दिया।
उसने कहा-“मैं आशीष से शादी करना चाहती थी, किंतु यह मुझे बिल्कुल भाव नहीं देता था। मैंने इसमें अपना अपमान महसूस किया और बदला लेने के लिए इस फंसाने की सोची। पहले इसका फोन चुराया और फिर अपने एक बॉयफ्रेंड के साथ फिजिकल होकर आशीष का नाम लगाया, पर मुझे यह पता नहीं था कि यह उसे दिन अपने घर पर नहीं है और भोपाल की ट्रेन में चढ़ चुका है। यही एक गलती कर दी मैंने।”
इंस्पेक्टर ने निशा के घर से आशीष का फोन खोज निकाला और निशा से कहा-“निशा , तुम्हें इसकी सजा जरूर मिलेगी। तुमने एक बार भी यह नहीं सोचा कि तुम्हारी झूठी शिकायत से किसी की पूरी जिंदगी खराब हो सकती है। शेम ऑन यू। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलवाऊं, ताकि दूसरी लड़कियां ऐसा गलत काम ना करें। ”
आशीष को बाइज्जत बरी कर दिया गया।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली