मम्मी,ये भाभी दूसरे तीसरे दिन कहाँ जाती हैं, क्या आपको पता है?
बिटिया,अब जमाना ही ऐसा आ गया है, बहू आते ही खुद मुख्तार हो जाती है।कहाँ जाना है,क्या करना है,ये बता दे तो भी बहुत बड़ी बात है, अन्यथा अब कौन बताता है?ये कामिनी अपने घर जाती है,बता रही थी कि उसके पिता बीमार हैं।
मम्मी,उसके पिता बीमार हैं तो उनके देखभाल की जिम्मेदारी तो उनके घरवालों की है, भाभी क्यों बार बार चक्कर लगाती हैं?
असल मे बेटी यह सब चोंचले ज्यादा तब चलते हैं, जब एक ही शहर में शादी हो जाती है।
सूरज प्रकाश एवं कमला जी के एक ही संतान थी और वह थी उनकी प्यारी गुड़िया सी बिटिया कामिनी।ऐसा नही की सूरज जी एवम कमला जी ने दूसरे बच्चे का प्रयास नही किया,पर ईश्वर इच्छा तो सर्वोपरि होती है, सो बस संतान रूप में कामिनी ही रह गयी।सूरज जी एवम कमला जी ने अब पूरा ध्यान कामिनी की परवरिश पर ही लगा दिया।
कामिनी बड़ी होती आ रही थी,वह एक संस्कार वान और प्रतिभाशाली लड़की निकली।स्नेह और आदर भाव उसमें मानो कूट कूट कर भरा था।कामिनी को अहसास था कि उसके माता पिता का ध्यान उसे ही रखना है।शिक्षा पूरी होते ही सूरज जी को कामिनी की शादी की चिंता सताने लगी।उन्होंने योग्य दामाद की तलाश प्रारम्भ कर दी।
संयोगवश उन्हें अपने ही नगर में कमल किशोर अपनी कामिनी के लिये बिल्कुल उपयुक्त लगा।दूसरे अपने ही नगर में होने के कारण बेटी से दूर भी नही रहना होगा।
उत्साहित सूरज जी ने कामिनी की शादी की बात कमल के यहां चलाई,मध्यस्थ उनके मित्र मिथलेश जी थे,उन्होंने ही कमल से रिश्ते के लिये सुझाव दिया था।कमल के पिता राजकिशोर जी ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी।कमल और कामिनी ने भी एक दूसरे को पसंद कर लिया।इस प्रकार कमल और कामिनी एक हो गये।
कामिनी को घर गृहस्थ संभालने का अभ्यास था,इस कारण उन्हें कोई कठिनाई प्रतीत नही हुई।कमल के परिवार में उसके अतिरिक्त उसके माता पिता तथा उसकी छोटी बहन शालू ही थे।कमल जॉब करता था, उसे सुबह 8.30बजे तक निकलना होता था,इसलिये उसके जाने से पूर्व उसका लंच बॉक्स,
उसके बाद शालू कॉलेज जाती थी तो उसकी तैयारी, बाद में सासू माँ तथा ससुर जी का खाना तैयार करना,इन सब तैयारियों के बीच सबका सुबह का नाश्ता भी देना।ऐसा नही कि वे खाना बनाने वाली को नही रख सकते थे,पर ससुर राजकिशोर जी खाना नौकरानी से बनवाना पसंद नही करते थे,
इसलिये पहले ये जिम्मेदारी सासू माँ निभाती थी,अब ये दायित्व कामिनी पर आ गया था,वैसे कामिनी का सहयोग सासू माँ भी कुछ हद तक कर देती थी।अन्य घर कार्यो के लिये मेड रखी हुई थी।कामिनी कभी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नही हटी। शालू नयी लड़की थी या जो भी उसके मन मे हो,वह जरूर अक्सर अपनी भाभी द्वारा बनाये खाने में मीनमेख निकालती थी।कामिनी हंस कर टाल देती,फिर बोल देती दीदी आगे ध्यान रखूंगी।
एक दिन समाचार मिला कि कामिनी के पिता सूरज जी को ह्रदयघात आया है और वे हॉस्पिटल में है।कामिनी और कमल दोनो तुरंत हॉस्पिटल गये।तभी कामिनी बोली कमल देखो मेरे माता पिता का कोई नही है, मेरे सिवाय,क्या मुझे तुम अपने पापा के पास आते रहने की अनुमति दोगे।बोलो कमल दोगे ना?अरे कैसी बात करती हो कामिनी,मेरे भी तो वो पापा है।जब भी तुम चाहो क्यो नही आ सकती,इसमें पूछने वाली कौनसी बात है।सुनकर कामिनी के चेहरे पर संतोष और गर्व झलक उठा।
अब कामिनी पहले की तरह घर के कार्य को देखती,पर अब उसके कार्य करने में जल्दी होती और फिर वह अपने पिता के पास चली जाती।हालांकि कामिनी पूरे समर्पण भाव से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही थी,पर उसका बार बार अपने पिता के यहां जाना उसकी सासू माँ और नंद को नही सुहा रहा था
।पहले दबे स्वर में तो बाद में कुछ मुखर रूप में सासू माँ ने कह ही दिया कि बेटा कामिनी इस प्रकार रोज रोज तुम्हारा अपने मायके जाना ठीक नही लगता है,अडोस पड़ोस वाले बात बनायेंगे।सुनकर धक से रह गयी कामिनी।फिर भी संभल कर बोली माँ जी-आप जानती तो हैं मेरे पिता को हार्ट अटैक आया है,उनका मेरे सिवाय कौन है?इसीलिये जाती हूं।वैसे भी मैंने पहले ही दिन कमल से अनुमति ले ली थी।कमल से अनुमति की बात सुन सासू माँ चुप लगा गयी।
लेकिन सास और ननद के व्यवहार में तीखापन झलकने लगा था।कामिनी कोई नासमझ तो थी नही सब समझ रही थी।पर उसके वश में कुछ नही था,वह अपने कर्तव्य को दोनो ओर निभाती रही।
ननद शालू की शादी भी सम्पन्न हो गयी।अब वैसे भी कामिनी के पिता स्वस्थ हो गये थे,तथा परिवार से एक सदस्य कम हो गया था,सो कामिनी अब सुचारू रूप से सामान्य होकर कार्य कर रही थी।शालू के जाने के बाद सासू माँ के व्यवहार में भी परिवर्तन आ गया था।वे अब कामिनी को चाहने लगी थी।
उधर शालू को अपनी गृहस्थी संभालने में परेशानी आने लगी,उसको घर के किसी भी कार्य मे रुचि नही थी,इसलिये उसे सबकी ही सुननी पड़ती,इससे उसको झल्लाहट होने लगती।उसी झल्लाहट में वह घर मे अपने बड़े छोटे को जवाब भी देने लगी,इस कारण घर का वातावरण बोझिल और तनावपूर्ण रहने लगा।
अबकी बार शालू जब अपने मायके आयी तो वह अब अधिक समय अपनी भाभी कामिनी के साथ अधिक गुजारती।एक दिन शालू बोली भाभी वो कौनसा मंत्र है जिसे आप पढ़ती हो और सबको वश में कर लेती हो?कामिनी जोर से हंसी और बोली सच बताऊं शालू तेरी बात सही है,मेरे पास मंत्र है
और वो मंत्र आज मैं तुझे भी देती हूं।उत्सुकता से शालू कामिनी के और पास आ गयी,पता नही भाभी कौनसा मंत्र बतायेगी।कामिनी बोली दीदी मेरे पास जो मंत्र है और जिसको मैं अमल में लाती हूँ वह है अपने परिवार को अपना समझ कर उसके प्रति अपने को समर्पित करना।मैंने ऐसा ही किया है,यही कारण है कि मुझे घर का काम जिम्मेदारी कभी बोझ नही लगती।मैं जो कुछ करती हूं शालू अपनो के लिये ही तो करती हूं।
सुनकर शालू एकटक अपनी भाभी के चेहरे को देखने लगी।उसकी भाभी ने उसे जीवन मंत्र दे दिया था।अपनो के लिये समर्पण का भाव।अगले दिन ही एक नये निश्चय के साथ शालू अपनी ससुराल अपनो के बीच जा रही थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
*#भाभी आप इतना सब कुछ कैसे सह लेती हैं?* वाक्य पर आधारित कहानी: