राजन घड़ी दो घड़ी बस आपका साथ आप उनसे उनका थोड़ा बहुत हाल पूछ लो उनके पास बैठकर प्यार से बात कर लो इसके अलावा उन्हें नहीं चाहिए कुछ, क्यों पेंडुलम की तरह नचा रहे हो दोनों भाई अपने ही पिता को। लेकिन राधिका मैं पिछले 6 महीने से पापा को अपने साथ रख रहा हूं
अशोक ने तो एक बार भी फोन करके नहीं कहा कि पापा को मेरे पास छोड़ दो। क्या उनकी देखभाल करने का उसका फर्ज नहीं है? सारी जिम्मेदारी मेरी तो नहीं है हम बहुत अच्छे से पापा का ध्यान रखते हैं अब कुछ दिन उसे भी तो पापा को अपने पास रखना चाहिए। अब इतनी बड़ी नौकरी तो मेरी भी नहीं है। पापा की कौन सी पेंशन आती है एक प्राइवेट कंपनी से ही तो रिटायर हुए हैं?
बहुत अच्छी आर्थिक स्थिति तो हमारी कभी भी नहीं रही थी। लेकिन फिर भी मेरी पढ़ाई से ज्यादा, अशोक की पढ़ाई पर पैसे खर्च हुए हैं। क्या उसका कोई फर्ज नहीं है उनके प्रति सारे फर्ज में ही निभाऊ क्या , इसीलिए मैंने पापा से कहा है कि कुछ दिन अपने छोटे बेटे के पास भी रहना चाहिए आपको।मैं कल उन्हें लेकर खुद ही चंडीगढ़ जाऊंगा। अशोक को तो ध्यान ही नहीं है हमारे बीच में पहले ही तय हुआ था कि 6 महीने में रखूंगा पापा को और 6 महीने उसे रखना होगा। इतनी बड़ी कंपनी में मियां बीवी दोनों।इंजीनियर हैं तो क्या पापा का खर्चा नहीं उठा सकते?
यहां तो कमाने वाला भी अकेला मै ही हूं। मेरे बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी उससे ज्यादा है उसके बच्चे तो अभी छोटे हैं। और मेरे दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे हैं। उसने तो अपना मकान भी बना दिया है और इस मकान में भी बराबर का हिस्सेदार है।
लेकिन राजन तुम पापा की स्थिति क्यों नहीं सोच रहे हो? एक बहु होकर जो मैं देख पा रही हूं तुम क्यों नहीं देख पा रहे हो? इस घर की एक-एक ईट उनकी मेहनत की है। इस घर में मम्मी जी और पापा जी ने अपना सारा जीवन बिताया है। तुम दोनों भाइयों का बचपन बीता है। चिंटू और मीनू भी उन्ही की गोद में पलकर बड़े हुए हैं।
“ढलती सांझ और मजबूत होते प्यार के बंधन” – कविता अर्गल : Moral Stories in Hindi
मम्मी जी की यादें बसी है इस घर में। मैंने देखा है अपने कमरे में उन्हें मम्मी जी की फोटो से बात करते हुए और उनकी तस्वीर के आगे घंटो आंसू बहाते हुए। मम्मी जी और पापा जी जब भी अशोक भैया के घर गए हैं उनका कभी वहां पर मन नहीं लगा है बड़े-बड़े शहरों के छोटे से फ्लैट में दम घुटता था उनका, अशोक भैया और शेफाली दोनों ही नौकरी करते हैं। सुबह से शाम तक का समय उनके लिए काटना मुश्किल हो जाता था वहां पर। अब इस समय में अकेले पापा जी अकेले वहां पर कैसे रहेंगे?
अगर तुम उनके बेटे होकर उन्हें अपने साथ रख रहे हो तो उन पर कोई एहसान नहीं कर रहे हो। अभी तोवो शरीर से भी बिल्कुल ठीक है ना ही किसी के ऊपर मोहताज है ,और ध्यान रखो यह घर उनका है। वह जब चाहे हमें यहां से जाने के लिए कह सकते हैं और रही पैसे की बात तो सारा घर किराए पर चढ़ाकर बहुत सुख से अपना जीवन बिता सकते हैं। और 6 महीने वाली बात तुमने कैसे कह दी अपने भाई से?
तुम्हें पालने पोसने पर लगे हुए पैसे और तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे का उन्होंने तो कभी हिसाब ही नहीं दिया तुम्हे
फिर आज अपने ही पिता का बोझ तुम्हें इतना भारी लगने लगा जो उन्हें इस तरह उनकी मर्जी जाने बिना ही उन्हें अशोक के घर ले जाने को कह रहे हो।
हमारे बच्चे नहीं रह सकते अपने दादाजी के बिना और ना ही पापा खुश रह पाएंगे अपना घर छोड़कर वहां पर। प्लीज उन पर किसी तरह का दबाव मत डालिए। आप पापा को रखने वाले कौन होते हैं? हम आज भी उन्हीं के साथ उनके घर पर रह रहे हैं।
लेकिन राधिका, नहीं राजन आज मुझे बोलने दो मैंने तुम्हारा विरोध उस समय भी किया था जब तुम भैया से पापा जी को ले जाने के लिए कह रहे थे लेकिन मुझे तुमसे उम्मीद नहीं थी कि तुम पापा जी को खुद छोड़ने जाने की बात करोगे मुझे लगता था तुम उनसे बहुत प्यार करते हो तुम उनके बिना नहीं रह सकते।
यहां उनके संगसाथ के लोग भी हैं जिनसे वह अपने तन मन की बातें कर लेते हैं। बुढ़ापा और अकेलापन बहुत बड़ा रोग है मैंने अपनी मां को देखा है पापा के बिना रहते हुए, दो दो भाइयों को एक अकेली मां को रखना मुश्किल हो गया था तुम्हारे सामने की तो सारी बातें हैं राजन, नहीं जी पाई मेरी मां ज्यादा दिन पापा के जाने के बाद कितनी अकेली हो गई थी मां ।6 महीने बड़े भैया के पास और 6 महीने छोटे भैया के पास रहकर
ज्यादा दिन नहीं काट पाई। और साल भर बाद ही चलती बनी दुनिया से।मैं वही सब पापा के साथ
हरगिज़ नहीं होने दूंगी। मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती रहेगी। और यह समय तो सब पर आना है एक दिन।
बस मुझे और जलील मत करो राधिका बस, मुझे माफ कर दो पता नहीं मैं इतना स्वार्थी कैसे हो सकता हूं मुझे खुद की सोच पर शर्म आ रही है तुमने मेरी आंखें खोल दी है मुझे माफ कर दो। राजन माफी मांगनी है तो पापा से मांगिए जिन्हें इस घर और हमसे दूर जाने का सदमा सा लग गया था। राजन और राधिका जब रमाकांत जी के कमरे में पहुंचे तो वह अपना बैग लगा रहे थे, उनकी आंखों में आंसू भरे थे।
राजन ने लपक कर उनके हाथ में से बैग लेकर एक तरफ रख दिया और उनके पैरों को छूकर माफी मांगने लगा मुझे माफ कर दीजिए पापा, मेरे मन में ऐसी बात आ भी कैसे सकती है कि मैं आपको यहां से जाने के लिए कहूं। आप कहीं नहीं जाएंगे हमारे साथ रहेंगे अपने घर में। अपने पिता के गले लगा कर पापा पापा कर रोने लगा राजन। रमाकांत जी ने अपने बहू और बेटे दोनों को गले लगा कर कहा जीवन की इस ढलती सांझ में मुझे अपने बच्चों के साथ से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। राधिका की आंखों में भी आंसू भरे हुए थे।
दोस्तों अपनी कहानी को विराम देते हुए में इतना ही कहना चाहूंगी, कि हमें अपने बुजुर्गों की मन: स्थिति को समझना चाहिए नहीं भूलना चाहिए यह उम्र सभी को आनी है आज जैसा बोएंगे कल वैसा ही हमें काटना भी पड़ेगा।
पूजा शर्मा स्वरचित।