जीवनसाथी – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” मैं सिर्फ आपकी पत्नी और इस घर की बहू ही नहीं प्रथम किसी की बेटी भी हूं अगर यहां मेरे फर्ज हैं तो वहां भी कुछ फर्ज बनते हैं तुमने और तुम्हारे घर वालों ने कैसे सोच लिया कि मेरे पापा वहां जिंदगी मौत से लड़ रहे है और मैं यहां खुशियां मनाऊं!” मान्या तड़प कर बोली।

“मान्या तुम्हारा दर्द मैं समझता हूं पर यहां मीठी( प्रथम की बहन) की शादी है और तुम घर की इकलौती बहू हो तुम यहां नहीं रहोगी तो लोग बातें बनाएंगे!” प्रथम बोला।

” बनाने दो बातें मुझे परवाह नहीं अगर आपको उनसे जवाब देते ना बने तो कह देना भाग गई मान्या घर से…तब तो लोग मुझे ही भला बुरा कहेंगे ना कोई बात नहीं मुझे मंजूर है ये भी अपने मां बाप के लिए!” मान्या रोते हुए तनिक गुस्से में बोली।

” दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा क्या बकवास कर रही हो वैसे भी तुम्हारे पीहर का रास्ता चन्द मिनटों का तो है नहीं परसो मीठी की शादी है कैसे होगा सब …वहां डॉक्टर अपना काम कर रहे हैं तुम मां से वीडियो कॉल पर बात कर लो शादी निमटते ही मैं खुद तुम्हे लेकर जाऊंगा…समझी तब तक झूठे को सही एक बहू एक भाभी का फर्ज निभाओ ये मेरी विनती है तुमसे!” प्रथम हाथ जोड़ते हुए बोला और बाहर निकल गया।

“क्यों एक बेटी इतनी मजबूर हो जाती है ईश्वर क्यों वो अपने मां बाप की बीमारी तक में नहीं जा सकती !” मान्या प्रथम के जाने के बाद खुद से बोली।

मान्या प्रथम की पत्नी और घर की इकलौती बहू है जिसकी शादी अभी एक साल पहले ही हुई है। मान्या अपने मां बाप की अकेली संतान है। मान्या की ननद मीठी की परसो शादी है और आज ही मान्या को पता लगा उसके पापा को अटैक आया है और वो अस्पताल में भर्ती है। मान्या का ससुराल दिल्ली में है और मायका जयपुर में तो उसे आने जाने में ही काफी वक़्त लग जाता जबकि यहां शादी की रस्में शुरू हो चुकी थी ऐसे में घर की बहु ना हो तो लोग बातें बनाएंगे ऐसा प्रथम का मानना था।

” बहू पंडितजी आ गए लगन का सामान निकाल दो!” तभी मान्या की सास रीता जी की आवाज़ आई।

” आती हूं मम्मीजी!” मान्या ने कहा और मुंह धो हलका तैयार हो आ गई।

कैसी विडम्बना की घड़ी होती है एक बेटी के लिए दोनों घरों कि चिंता रहती उसे पर ससुराल में हर दायित्व निभा सकती है लेकिन बात मायके की हो तो कितना मजबूत हो जाती है बेटी। 

सारा दिन काम काज में लगी रही मान्या पर दिमाग रह रह पापा मम्मी के पास पहुंच जाता। 

” एक फोन तो कर ही लूं कम से कम हौसला तो मिलेगा मम्मी को सुबह के बाद फोन भी नहीं कर पाई !” मान्या ये सोच कमरे में आईं और फोन मिलाने लगी।

“भाभी बुआ जी उबटन मंगा रही हैं।” तभी मान्या की मामी सास की बेटी आ बोली।

” हां अभी देती हूं!” मान्या फोन रखकर स्टोर रूम में चली गई।

” मान्या मान्या कहां हो तुम जल्दी इधर आओ!” तभी प्रथम वहां आ बोला।

” क्या हुआ और आप सुबह से थे कहां? यहां कितने काम थे आपके करने के जिसे मामीजी के बेटे को करने पड़े !” मान्या प्रथम से बोली!

“तुमने मां को कॉल की?” प्रथम ने उसकी बातों का जवाब ना दे सवाल किया।

” बस करने ही जा रही थी!” मान्या उदास हो बोली।

” रुको मैं मिलाता हूं ऐसा करता हूं वीडियो कॉल कर लेता हूं तुम पापा को भी देख लेना!” प्रथम मान्या को बेड पर बैठता हुआ बोला।

” हेल्लो मम्मी कैसे हो आप पापा कैसे है अब?” फोन मिलाते ही मान्या ने अधीरता से पूछा।

” बेटा पापा खतरे से बाहर हैं अब आराम कर रहे हैं!” मान्या की मम्मी बोली।

” हेल्लो भाभीजी!” तभी मान्या की मम्मी के पीछे से प्रथम के दोस्त राघव, चन्दर और चेतन बोले।

” अरे आप सब वहां कैसे ?” मान्या ने चौंकते हुए पूछा।

” बेटा ये लोग दोपहर में ही आ गए थे यहां सब काम इन्होंने ही संभाले और बोलते हैं जब तक अंकल फिट होकर घर नहीं आते तब तक यही रहेंगे मुझे भी घर जाने को बोल रहे हैं !” मान्या की मां बोली।

मान्या ने सवालिया नज़रों से प्रथम को देखा।

” हां तो तुम्हारे मम्मी पापा मेरे भी तो मम्मी पापा है तुम अपने ससुराल के फर्ज में बंधी हो तो मेरा भी तो दायित्व है ना अपने ससुराल के प्रति इसलिए खुद ना जा पाने की मजबूरी में किसी तरह फ्लाइट का अरेंजमेंट कर इन तीनों को भेज दिया जैसे ही मीठी की शादी ख़तम होती है हम भी वहां पहुंच जाएंगे मैने टिकट करवा ली है तब तक ये लोग सब संभाल लेंगे तुम चिंता मत करो आखिर साथी बने हैं साथ तो निभाएंगे ना दोनों और मिलकर हर दायित्व भी निभाएंगे भले वो यहाँ का हो या वहाँ का।” प्रथम ने मान्या से प्यार से कहा।

” हां भाभी जी आप बेफिक्र रहिए आपके पापा हमारे पापा हैं हम यहां सब देख लेंगे आप वहां देखिए …चलिए अब आंटीजी को घर छोड़ आऊं मैं बाकी आपको सब अपडेट देता रहूंगा !” राघव ने कहा।

” बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी तो। मैं ये एहसान कैसे चुकाऊंगी आप लोगों का!” मान्या नम आंखों से हाथ जोड़ते हुए बोली।

” भाभीजी एहसान चुकाना है तो हमपर भरोसा रखिए और ये आंसू पोंछ कर खुशी खुशी मीठी को विदा कीजिए क्योंकि ये उसके लिए खुशी का पल है!” चेतन बोला और फोन काट दिया।

” प्रथम मुझे माफ कर दो सुबह में इतना कुछ बोल गई मैं और आप मेरे मम्मी पापा के लिए अपनी बहन के शादी के फंक्शन भी छोड़ गए थे!” मान्या प्रथम से बोली।

” मान्या ना कुछ तुम्हारा है ना मेरा बल्कि सब हमारा है समझी तुम । मैं समझता हूँ जैसे तुम्हारा जितना दायित्व इस घर के प्रति है उतना ही उस घर के प्रति भी है वैसे ही मेरा भी तो है ना तो मैं अपना दायित्व निभाने से कैसे पीछे रह जाता। चलो अब आंसू बहाना बन्द करो और मुझे कुछ खाने को दो सुबह से भूखा हूं मैं!” प्रथम मान्या से बोला।

” अभी लाती हूं!” मान्या उठते हुए बोली।

मान्या को प्रथम जैसा जीवनसाथी पा नाज़ हो रहा था उन दोनों ने शादी की अभी रस्में हंसी खुशी की बीच बीच में घर पर भी बात करती रही मान्या पापा ठीक थे अब और कल घर आने वाले थे इधर मान्या और प्रथम भी मीठी को विदा कर निकल गए अपना दूसरा दायित्व निभाने के लिए।

दोस्तों जैसे एक बहू का फर्ज अपने ससुराल के प्रति होता है वैसे ही एक दामाद का भी कुछ दायित्व बनता है अपने ससुराल के प्रति खासकर जब पत्नी अपने माता पिता की इकलौती संतान हो । जब दोनो अपने दायित्व निभाते है तभी तो सही मायने मे जीवनसाथी कहलाते है । 

कैसी लगी आपको ये कहानी दोस्तो बताइएगा जरूर।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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