मेरे पास एक पोस सोसायटी में एक अच्छा खासा फ्लैट था,मुझे इस फ्लैट में कोई दिक्कत भी नही थी।यह फ्लैट मेरे बेटे ने खरीदा था,उसने इसे खूब अच्छे से फर्निश करा रखा था।सबसे अच्छी बात यह थी इसी फ़्लैट में उसने एक खूब सुंदर मंदिर भी बनवाया था।मुझे मंदिर में बैठकर पूजा करना काफी सुकून देता,आत्मिक शान्ति प्रदान करता।
एक रहस्य की बात ये है कि कोई माने या माने या उसे मेरा अंधविश्वास ही कहे कि मैं मंदिर में जब भी बैठता और तब मुझे परिवार की किसी भी योजना के सम्बंध में एक प्रकार से दिशानिर्देश मिल जाता,कि यह कार्य करना है या नही।मैं इसे अपने बेटे को अपनी सलाह कहकर बता देता,फिर वह माने या माने वह जाने फिर इस बारे में मैं नही सोचता।
किसी प्रोपर्टी डीलर का एक दिन मेरे बेटे के पास फोन आया कि सर आपके टावर में एक फ्लैट तुरंत बिकाऊ है,काफी सस्ते में मिल सकता है, आप चाहे तो उसे निवेश के दृष्टिकोण से ले ले।ब्रोकर ने कीमत उस समय की बाजारी कीमत से लगभग 15 लाख कम बताई।यह एक ललचाने वाला प्रस्ताव था, फिर मस्तिष्क में आया कि कहीं कोई लोचा तो नही।ब्रोकर मेरे बेटे को बैंक में ले गया, जहां से उस फ्लैट वाले ने लोन लिया हुआ था,फ्लैट में कही कोई त्रुटि नही थी,क्लियर सौदा था,बस बैंक लोन जो काफी कम रह गया था,उसे पहले क्लियर किया जाना था।
रात्रि में ही ब्रोकर ने मेरे बेटे की मीटिंग फ्लैट मालिक से करा दी।मीटिंग के बाद मेरा बेटा बहुत उत्साहित और खुश था,उसने बताया, पापा मार्किट रेट से 17 लाख कम में मिल जायेगा, सुबह मैं अग्रिम रकम उसे ट्रांसफर कर दूंगा।मुझे भी इस फायदेमंद सौदे से खुशी हुई।
प्रतिदिन की भांति मैं सुबह जल्द उठकर स्नान आदि कर अपने मंदिर में पूजा करने बैठ गया।पर आज मस्तिष्क शांत नही था,नकारात्मक अनजाने विचार मन में घर कर रहे थे।मैं समझ ही नही पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है?सब कुछ ठीक तो था।फिर ऐसा क्यूँ?मेरे दिमाग मे एक झटका सा लगा।मैं पूजा समाप्त कर उठा,तभी बेटा भी उठ आया नये फ्लैट के सस्ते में मिलने की खुशी में उसे शायद नींद भी ठीक नही आयी थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
मैं बोला,बेटा एक बात बोलूँ, पता नही तुझे अच्छा लगेगा या नही?बोलो ना पापा क्या बात है? मैंने झिझकते हुए कहा,बेटा मेरा दिल कहता है कि तू यह फ्लैट मत खरीद,बेटा पता नही उसकी क्या मजबूरी है जो वह सस्ते में बेच रहा है, उसकी मजबूरी का फायदा उठाना मुझे ठीक नही लग रहा।वैसे जैसा तू चाहे कर मुझे कोई आपत्ति भी नही।
मेरी बात सुन मेरा बेटा गंभीर हो गया।कुछ देर सोचता रहा,मैं उठकर अपने कमरे में आ गया।तभी मुझे बेटे की आवाज किसी से फोन पर बात करने की आयी।बेटा अपने ब्रोकर से कह रहा था कि वह उस फ्लैट को नही खरीद रहा है, वह अन्य ग्राहक खोज ले।मैंने राहत की सांस ली।
मुझे नही पता वो फ्लैट बिका या नही,पर लगभग एक सप्ताह बाद हमारे टावर के नीचे शोरगुल सुना तो पता चला कि उसी फ्लेट के मालिक ने जो लगभग 35-36वर्ष की आयु का युवक ही था अपने 20 वी मंजिल पर स्थित फ्लैट से कूद कर आत्महत्या कर ली है और उसका क्षत विक्षत शरीर नीचे पड़ा था।एक धक्का सा मन को लगा।पुलिस उसके शव को ले गयी।
मैं फिर अनमना सा था,अनजाने से अपराध भाव से पीड़ित था।मन के कोने में यह विचार आ रहा था कि यदि इस फ्लैट को मेरा बेटा खरीद लेता तो शायद उसकी जान बच जाती,वह आत्महत्या न करता।अपनी जरूरत या परेशानी के कारण ही तो वह सस्ते में बेच रहा था,बेटे द्वारा खरीद किये जाने पर उसकी जरूरत पूरी हो सकती थी।मैं खिन्न अवस्था मे अपने मंदिर में जा बैठा।पर आज कोई दिशानिर्देश मुझे प्राप्त नही हुआ,बस इतना हुआ कि मन थोड़ा शांत हो गया।धीरे धीरे यह घटना पुरानी हो गयी,अब हमारा ध्यान भी उस ओर नही जाता।
एक दिन मेरे एक मित्र जो बैंक में चीफ मैनेजर रहे थे,रिटायरमेंट के बाद मेरे आमंत्रण पर मेरे फ्लैट पर आये।बातचीत में उनसे उस आत्महत्या करने वाले युवक का जिक्र आ गया तो वे बोले बैंक अधिकारी रहते हुए वह केस मेरे समक्ष आया था,इस कारण मुझे उसके विषय मे जानकारी है।हमारी उत्सुकता को देखते हुए उन्होंने बताया कि असल मे फ्लैट किसी भी कीमत पर तुरंत बेचने का दवाब उस युवक की पत्नी का था,वह तलाक चाह रही थी,उनके एक बेटी थी।उसकी परवरिश के आधार पर वह युवक से
फ्लैट की बिक्री से प्राप्त धनराशि का दो तिहाई मांग रही थी,साथ ही तुरंत किसी भी कीमत पर बेचने का दुराग्रह भी उसका था।युवक तलाक के बाद बेटी को अपने पास रखना चाहता था और फ्लैट की कीमत का आधा देने को तैयार भी था।पर उसकी पत्नी उसकी किसी बात से सहमत नही हो पा रही थी,इसी कारण उनके घर मे बेहद कलहपूर्ण वातावरण बना हुआ था।इसी उलझन में उसने आत्महत्या कर ली।असल मे वे अपने पराये हो चुके थे।
सब बाते सुन चाय का स्वाद बेहद कड़वा हो गया था।हिन्दू धर्म मे तो विवाह संस्कार होता है,पति पत्नी में नोंक झोंक होती रहती है, कभी कभी मतभेद भी बढ़ जाते हैं, पर बात आत्महत्या तक बढ़ जाये तब तो यह दुखदायी तो है ही विचारणीय भी हो जाती है।इस मामले में ये तो हो ही गया कि उस युवक की पत्नी जीत गयी,तलाक हुआ नही था कि पति ने आत्महत्या कर ली,तो पूरा फ्लैट ही उसे मिल गया, बेटी को पति प्राप्त करना चाहता था,पर उसके मरने पर वह भी पत्नी को ही मिल गयी।फिर सब झगड़ा भी खत्म हो गया।पर मैं सोच रहा था कि क्या यह वास्तव में जीत थी?क्या जीत ऐसी ही होती है?अनिच्छा से चाय पी कर मैं अपने मित्र के जाने के बाद,अपने मंदिर में जा बैठा।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
एक सच्ची घटना पर आधारित।
#अपनो का साथ साप्ताहिक विषय पर कहानी: