जीने की कला – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

सतरंगी थीम थी किट्टी में ।

सबको हँसने हँसाने वाली ऋतु आज किट्टी पार्टी में नहीं आई थी ।सारी सखियाँ उसे याद कर रहीं थीं । किट्टी को रंग देने वाली वाली ऋतु की कमी सबको खल रही थी । फ़ोन लगा कर ऋतु से उसके न

आने का कारण पूछा तो ऋतु ने बताया कि उसके पति की तबीयत सही नहीं है, इसलिए उसका आना नहीं हो पाया ।

सब किट्टी मेंबर्स ने तय किया कि किट्टी के बाद में सब मिलकर ऋतु के पति की तबीयत देखने जाएँगे।

किट्टी पार्टी पूरी होने के बाद सबलोग ऋतु के घर गए । ऋतु के घर की स्तिथि देखकर सब दाँतों तले उँगली दबाते रह गए । एक तरफ़ ऋतु की सास बिस्तर पर लेटी थी । वो पूरी तरह अपाहिज थीं,

उनको उठाना, बैठना सब ऋतु ही कर रही थी । दूसरी तरफ़ उसके हसबैंड बिस्तर पर लेटे थे, जिन्हें किडनी की परेशानी थी । वो भी काफ़ी कमज़ोर लग रहे थे ,घर की आर्थिक स्तिथि भी कमजोर ही

नज़र आ रही थी, जिसके लिए ऋतु ने ऑनलाइन बिज़नेस कर रखा था । इतने विपरीत हालत में सदा खुश दिखने वाली ऋतु का जब परेशानियों का राज़ खुला तो सब सखियाँ ऋतु की जिंदादिली पर

नतमस्तक हो रहीं थीं । सब को लग रहा था कि हम,अपनी छोटी छोटी परेशानियों में भी खुश नहीं रह पाते और ऋतु इतने विपरीत हालात में भी चहकती रहती है ।

सभी ने ऋतु के साहस की दाद देते हुए उससे जिंदगी जीने का तरीका सीखा । परेशानियाँ तो जीवन का हिस्सा हैं, उनमें हम कैसे जीते हैं वो जीने की कला है ।

ऋतु की जिंदादिली ने सबके जीवन की ऋतु बदल दी थी कि खुशियाँ  परिस्थितियों  से ज़्यादा मनोस्थिति पर निर्भर करती हैं ।

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रश्मि वैभव गर्ग

कोटा

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