जाना ना बाबूजी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

घर का ग़मगीन माहौल एहसास करवा रहा था कि आज फिर माँ अपने बाबुल की घर की गलियों को याद कर रही है…उनका अपने बाबूजी से प्रेम मैं बचपन से देखती आ रही थी और आज वो अपने बाबूजी को याद कर कर के रो रही है….आज नाना जी की पहली बरसी है। माँ सुबह से उठकर नाना जी की तस्वीर लेकर बैठ गई है। आँखों में नमी चेहरे पर उदासी और कुछ बुदबुदाते हुए वो उनकी तस्वीर को ऐसे साफ कर रही जैसे वो नाना जी का ही चेहरा हो।

रीमा चुपचाप उनको देख रही थी। समझ नहीं आ रहा था उनको क्या बोल कर समझाएँ!!

फिर भी वो उनके पास गई तो देखती है वो बस यही कहे जा रही ,”बाबूजी मैं आ रही थी ना आपके पास ….जाने की इतनी जल्दी थी क्यों थी आपको ….जो बिना मुझसे मिले चले गए।”ये बातें उसकी मां एक साल से जाने कितनी बार दोहरा चुकी थी।

रीमा के पापा सुजीत जी  ने उसे  चुप रहने का इशारा किया और धीरे से उसे वहाँ से हटने को कहा।

रीमा वही पास पड़ी कुर्सी पर बैठ कर यादों में खो गई।पिछले साल  आज के ही दिन  अचानक से माँ परेशान हो कर  अपना समान  पैक करने लगी और पापा से बोली ,”मुझे बाबूजी के पास जाना है पता नहीं क्यों आज ऐसा महसूस हो रहा है कि वो मुझे बहुत याद कर रहे…मुझे खोज रहे हैं….मैं एक दो दिन के लिए गांव हो कर आती हूँ ।”

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पापा माँ की परेशानी समझ रहे थे क्योंकि वो शादी के वक्त से ही देखते आ रहे हैं कि माँ और नाना जी एक दूसरे की तकलीफ़ को दूर से भाँप लेते थे।पर लॉक डाउन में जाना मुश्किल था ।

ऐसे में पापा माँ को बोले,”अच्छा चलो हम तीनों ही चलते है….तीन घंटे का रास्ता है …उनके लिए सरप्राइज हो जायेगा।”

वो तीनों थोड़ी दूर ही गए थे कि रीमा के पापा के मोबाइल पर नरेश मामा का फोन आया।

‘‘हैलो जीजाजी, दीदी कहां है? जरा उससे बात करवाइए।”

‘‘ बात क्या है नरेश तुम घबराएँ हुए लग रहे हो….पहले मुझे बताओ फिर सुमी को फोन दूँगा ।”

“जीजाजी आज सुबह से ही बाबू जी की तबियत ठीक नहीं लग रही है …वो सुबह से बैचेन से है बस बोले जा रहे हैं सुमी को बुला दो…सुमी को बुला दो…लगता है अब नहीं बचूँगा …बस सुमी को मिलना है….पता नहीं उनके मन में क्या बात घर कर गई है….अम्मा से भी बोल रहे हैं तुम्हारी बेटी आ जाये फिर मैं चैन से सो जाऊँगा…वो आ ही रही होगी ….

तुम उसकी पसंद का खाना बना दो…ऐसे बोले जा रहे और छाती पर बार बार हाथ रख रहे…डाक्टर को बुलवाया है आप लोग भी आ जाते तो अच्छा रहता।”

‘‘ नरेश हम रास्ते में ही है। सुबह से सुमी भी बाबूजी को ही याद कर रही थी इसलिए हम मिलने ही आ रहे…तुम बाबू जी का ध्यान रखना।‘‘ कहकर सुजीत जी ने फोन काट दिया।

जब तीनों गांव पहुंचे तो देखा कुछ लोग घर के बाहर खड़े थे। 

सुमी दौड़ कर घर के अंदर गई बाबूजी से मिलने उनके कमरे में…. बाबूजी का मुँह दरवाजे की ही तरफ था पर आँखे इंतजार कर के शायद थक गई थी।

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रीमा के कानों में सबके रोने की आवाज सुनाई दे रही थी।वो जल्दी से अपनी माँ को देख कर भागी जो बाबूजी के पास ही निर्जीव सी बैठी थी ।

सुमी बाबूजी को पकड़ कर रोती जाती और बोलती जा रही थी ,”मैं आ रही थी ना बाबूजी आप क्यों बिना मिले चले गए।”

तभी रीमा की नानी बदहवास सी हालत में सुमी को पकड़ कर रोने लगी। 

 रोते रोते कहती जा रही थी,”पता नहीं तेरे बाबू जी को क्या हो गया देख तो कब से सो रहे हैं…..अजी अब उठ जाइए आ गई आपकी बेटी….वो नाना जी को हिला कर उठाने लगी…बेटा आखिरी हिचकी तक बस तुझे ही याद कर रहे थे…पर जो चला जाता वो कब लौट कर आया है।”कहते हुए वो बेटी को पकड़ कर ज़ोर जोर से रोने लगी

“हाँ माँ आज मुझे भी सुबह से ऐसा लग रहा था कि बाबूजी मुझे बुला रहे तभी मैं मिलने आ रही थी पर मिल नहीं पाऊँगी ये सोची ही नहीं थी ।”कहकर सुमी माँ के गले लग कर रोने लगी

सुमी माँ को संभालती हुई डगमगाते कदमों से वहां से हट कर कोने में खड़ी हो बाबूजी को देखती रही।

थोड़े लोगों के साथ उनका दाह संस्कार कर दिया गया।सुमी चुपचाप सब देख रही थी। उसके बाबूजी उसके इंतजार में चले गए ये बात उसे कचोट रही थी।

 होनी को कौन टाल सकता है कहकर सब सुमी को समझाने में लगे थे।

सुजीत जी और रीमा सुमी का सहारा बने हुए थे।

आज फिर से एक साल बाद सुमी बाबूजी को याद करके रोये जा रही थी। 

अचानक से रीमा को ऐसा लगा माँ उसे आवाज दे रही है।वो अतीत से वर्तमान में लौट आई। देखती है माँ रीमा रीमा बुला रही।

‘‘ आ बेटा नाना जी को पुष्प अर्पित कर दें।‘‘ 

तभी सुजीत जी भी पुष्प अर्पित करने आ गए। 

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‘‘बाबूजी बिना मुझसे मिले चले गए। ये बात मुझे बहुत  तकलीफ़ दे रही।‘‘कहकर सुमी फिर उदास हो गई।

“सुमी  बाबूजी कही नहीं गए हैं वो तुम्हारे दिल के पास है। बस तुम उन्हें छू नहीं सकती । मन की आँखो से देखो तो तुमको अपने आसपास ही नजर आयेंगे…. किसी बेटी के दिल से ना तो उसके बाबुल का घर निकाला जा सकता है ना बाबुल की यादें…बस उन्हें बाबुल के घर को छोड़कर दूजे घर जाकर उसमें रच बस जाना पड़ता है यही हम देखते आ रहे हैं …

तुम दुखी होंगी तो बाबूजी को भी दुख होगा…वो अपनी सुमी की आँखों में आँसू तब भी नहीं चाहते थे जब तुम ब्याह कर मेरे साथ अपने बाबुल का आंगन छोड़ कर आ रही थी… मुझे आज भी याद है उनकी आँखों में भी आँसू थे पर वो हौले से मुझसे बोले थे… जवाई बाबू मेरी सुमी की आँखों में आँसू ना आने देना बहुत सहेज कर उसे रखना और देखो उनके जिन्दा रहने तक मैंने कभी आँसू ना आने दिया

फिर आज कैसे चुप हो जाओ ।” कहते हुए सुजीत जी ने सुमी को सीने से लगा लिया

रीमा ये सब देख कर सोच रही थी कितना मुश्किल होता होगा ना बाबुल का घर छोड़ दूजे के साथ अपनी पूरी ज़िंदगी क़ुर्बान करना पर हम लड़कियों को ये करना शायद जन्म से ही आ जाता है ।

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश

 #बाबुल

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