श्रेय और विभोर की शादी कॉलेज लव स्टोरी का हैप्पी एंडिंग थी। दोनों ने ज़िंदगी का नया सफर बड़े जोश और उमंग से शुरू किया। शादी के बाद कुछ समय घूमने-फिरने में बीता, फिर दोनों अपनी-अपनी मल्टिनेशनल कंपनियों की जिम्मेदारियों में लौट आए।
पुणे में उन्होंने एक खूबसूरत सा बड़ा फ्लैट किराए पर लिया था। घर में सब कुछ था—साज-सज्जा, सुख-सुविधा, नौकर, और मोटी तनख्वाह। बस नहीं था, तो एक-दूसरे के लिए वक्त।
श्रेया सुबह जल्दी ऑफिस निकलती, तब तक विभोर सो रहा होता। शाम को श्रेया जल्दी लौटती, खाना खाकर सो जाती, और विभोर देर रात घर आता। हफ्तों ऐसे बीत जाते, बिना किसी ढंग की बात किए।
धीरे-धीरे घर एक “साइलेंट ज़ोन” बनता गया।
एक दिन श्रेया की तबीयत बिगड़ गई। थकान, तनाव और नींद की कमी ने उसे झकझोर दिया। जब इंदौर में उसकी सासू माँ को पता चला, तो वो तुरंत पुणे आ गईं।
पहले दिन ही उन्होंने महसूस कर लिया कि इस घर में हर चीज़ है—सिवाय रिश्तों की गर्माहट के।
“बेटा,” एक शाम को उन्होंने दोनों को पास बिठाकर कहा, “घर दीवारों से नहीं, परिवार से बनता है। ये जो तुम्हारे बीच की खामोशी है न, ये सबसे बड़ी दूरी है।”
विभोर चुप था। श्रेया की आँखें नम थीं।
“मकान में सुख-सुविधा हो, ठीक है। लेकिन अगर उसमें हँसी, बात, साथ और प्यार ना हो, तो वो सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा रह जाता है।”
श्रेया ने विभोर की तरफ देखा। बहुत दिनों बाद दोनों की आँखें मिलीं। उस पल दोनों ने कुछ नहीं कहा, लेकिन बहुत कुछ समझ लिया।
उस दिन के बाद उन्होंने फैसला लिया—”हर शनिवार-रविवार हमारा ‘हम टाइम’ होगा। कोई मीटिंग नहीं, कोई ईमेल नहीं, सिर्फ हम और हमारा घर।”
अब श्रेया और विभोर रोज़ाना वीडियो कॉल पर माता-पिता से भी बात करते हैं। मिलकर हँसते हैं, खाना बनाते हैं, पुराने गाने गाते हैं।
माँ अब वापस इंदौर लौट चुकी हैं, लेकिन उनके शब्द अब घर की हर दीवार पर लिखे हैं।
अब जब शाम होती है, तो उस घर की खिड़कियाँ भी मुस्कुराती हैं और दीवारें भी गर्मजोशी से कहती हैं—
“यह मकान अब घर बन चुका है।”
घर वह होता है जहाँ रिश्ते सांस लेते हैं, न कि सिर्फ वो जगह जहाँ वाई-फाई मजबूत हो।
वाक्य :#घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है “
रेखा सक्सेना