राधा ओ राधा …..अरी कहां मर गई, काम की न काज की… । सौतेली मां की आवाज सुनकर राधा हड़बड़ाईं किताब एक तरफ रखकर सीधे रसोईघर में घुस गई माँ के गुजरने के बाद सौतेली माँ ने इसी शर्त में पढ़ने की इजाजत दी थी घर के सारे काम यथा समय उसके द्वारा निपटा दिये जाने चाहिए,वरना पढ़ाई छुड़वा घर बैठा दी जाएगी।
पिता की बंदिशों को संस्कार का नाम और दादी की इच्छाओं को परम्परा का नाम देता आया राधा का परिवार, लड़कियों की शिक्षा के शुरू से ही खिलाफ रहा है। जहां लैंगिक भेदभाव किया जाता था ।
वह सदा ही रूढ़िवादी, अंधविश्वासों तथा परम्पराओं का पोषण एवं समर्थक रहा जिनका मानना स्त्री बस परिवार में विनम्रता सहनशीलता ही प्रदान करे । मगर ऐसे परिवार भूल जाते हैं कि एक शिक्षित नारी समाज में सामाजिक, आर्थिक मजबूती सही दिशा भी दे सकती है। पढी लिखी स्त्री ही समाज में परिवार में शांति खुशियां ला सकती है।
राधा जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी उसका हृदय माँ को याद करके रोने लगा उसने रात का खाना बर्तन रसोईघर कि साफ सफाई सब निपटा दिए । उसका ध्यान तो आज कक्षा में बोले गये अध्यापिका के शब्दों पर ही था ….” शाबाश राधा अगर ऐसे ही करती रही तो एक दिन यूनिवर्सिटी टाप कर ही लोगी ” । क्योंकि आज छमाही परीक्षा परिणाम घोषित जो हुआ था। और वो अब्बल आई थी ।
राधा कमरे में आकर पढ़ने बैठ गई …..”अरे ऽऽऽ ये क्या…… ये लाइट फिर चली गई हे ! भगवान यह भी मेरी दुश्मन बन गई है जाने क्या बैर है….. इसको मुझसे मुश्किल से रात को पढ़ने का समय मिलता है और यह तीन चार घंटे के लिए गायब हो जाती है, उसने
रात और भोर तड़के ही पढ़ने का नियम बना रखा था । घर में सब इस समय निंद्रा की गोद में जो रहते हैं शांति बनी रहने से उसको पढ़ने का उचित समय मिल जाता है, चलो खिड़की खोल देती हूँ दूर खम्भे से आती रौशनी में ही पढ़ने का प्रयास करने लगी” ।
परीक्षा निकट थी सौतेली मां सारा दिन उसके पीछे ही पड़ी रहती कहे तो किससे कहे अपना दुख पिता भी दूसरे शहर नौकरी करते थे सौतेला भाई जिसकी पढ़ाई-लिखाई में पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था ।सारा दिन मटरगस्ती करता फिरता था आये दिन कालेज से शिकायतें आती रहती मगर घर वाले नजर अंदाज कर देते थे ।बस ऐसे ही दिन व्यतीत होते जा रहे थे हर सुबह कष्टों से भरी और रात माँ को याद करते दो पल के सुकून भरी ।
ज्ञान को संभालना हर किसी के बस की बात नहीं है। इच्छाओं की सुख की कामना, भावनाओं की तड़प और जिज्ञासा की भूख आत्मा को कभी शांति से नहीं से नहीं बैठने देती है।
एक दिन पिता शहर से आये और बोले उन्होंने राधा के लिए एक लड़का देख लिया है बस जल्दी ही उसके हाथ पीले कर दूंगा । राधा ने सुना कमरे में आकर फूट-फूट कर रोने लगी आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया । माँ को याद कर बोली “ माँ क्या यही है संसार जहां हृदय की भावनाओं का कोई मोल ही नहीं रह गया उसको पढ़ना है चैन से पढ़ने भी नहीं दिया जा रहा…. आखिर यह लोग समझते क्यों नहीं शिक्षा नारी को सशक्त, स्वतंत्र बनाती है, उसमें आत्मविश्वास पैदा करने में मदद करती है “ ।
राधा का सोचना भी सही है शिक्षा एक बेहतर भविष्य के लिए सपने देखने और लक्ष्य बनाने में मदद करती है । शिक्षा इंसान की ताकत को बढ़ाती है। खुद के लिए कड़ी मेहनत और अपने सपनों को हासिल करने की प्रेरणा देती है। स्त्रियों को ही शिक्षित करने से जीवन संरक्षित होता है। एक शिक्षित महिला आबादी वाले देश की उत्पादकता को बढ़ाती और आर्थिक विकास में भी सहायक होती है।
राधा रोते-रोते माँ को याद करती सो गई स्वप्न में माँ उसके सर पर हाथ फेरकर कहती हैं…..”बेटी मैं तेरी भावनाओं के मूल्य को भली-भांति समझती हूँ…..बेटा धैर्य से काम ले,तु बस अभी तो मन लगाकर पढती जा , हिम्मत मत हारना देखना एक दिन तेरी यह मनोकामना अवश्य पूरी होगी तुझे सफलता जरूर मिलेगी “ ।
इंसान में कुछ पाने की प्रबल इच्छा शक्ति होनी चाहिए। यदि आप किसी काम को करने की इच्छा रखते हैं तो काम करने का रास्ता खुद ही निकल आता है। हम उसे भविष्य में अवश्य पा ही लेते हैं।जब कोई व्यक्ति अपने दृढ़ निश्चय और शक्ति से किसी भी काम को पूरा करने के लिए सोचता है तो उस काम के लिए रास्ता खुद ही बनता रहता है।
राधा हड़बड़ा कर उठी जल्दी घर के सभी कार्य निपटा दिया करती और अपनी पढ़ाई में लगी रही । उसने घर के वातावरण का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने दिया वह परीक्षा में भी अच्छे नम्बर से पास हो गई और आखिर एक दिन पराई हो ही गई सौतेली मां और पिता ने उसका विवाह कर उसे विदा कर ही दिया……..।
अरे राधा….. ओ राधा….. कहा हो भई पति राधव ने हाथ में अखवार लिए उसको ढूंढता कमरे में प्रवेश किया । राधा दौड़ कर पति के पास आई । राघव उत्साहित स्वर में बोला अरे तुम्हारा रिजल्ट आ गया राधा ने जल्दी से अपना नम्बर बताया जो की उसके विजय की सूचना दे रहा था ।
माया और उसका पति राधव बहुत ही खुश हुए ।पति ने उसे आगे पढ़ाई जारी रखने को कहा क्योंकि वो स्वयं यूनिवर्सिटी में लैक्चरार के पद पर कार्यरत था और जिसका मानना कि पुरुष और महिला समाज के एक सिक्के के दो पहलू हैं तो फिर शिक्षा भी एक समान प्राप्त होनी चाहिए। उसका मानना महिलाओं के सशक्तिकरण, समृद्धि विकास और कल्याण के लिए शिक्षा ही मुख्य कारक है।
राधा की पढ़ाई जारी रही आज वो राधव के महाविद्यालय में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हो गई और साथ ही वर्तमान में राघव डाक्ट्रेट करके प्रोफेसर बन चुके थे। दोनों ही बहुत खुश थे । दोनों के सपनों की उड़ान उंचाई पर थी ।अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करने पर उत्साहित थे ।
कहानी का शिक्षात्मक पक्ष कहता है कि जो व्यक्ति किसी भी तरह परिस्थितियों का दास बनकर नहीं रह पाता, परिश्रम से मुंह नहीं मोड़ता, कठिनाइयों का मुंह तोड जवाब देना जानता है।उसी को इच्छा करने का अधिकार है और उसी की चाह को सच्ची चाह माना जाता है।
और जहां तक महिला शिक्षा की बात इस पुरूष प्रधान समाज में जहां आज एक महिला हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है देखा जाये तो अपने परिवार की उन्नति की कामना एक स्त्री शिक्षा बिना कभी नहीं कर सकती एक पढ़ी-लिखी स्त्री ही समाज में परिवार में खुशी और शांति ला सकती है। राधा में शिक्षा पाने की लगन थी उसने मेहनत की हार नहीं मानी तो परिस्थितियां उसके अनुरूप बनने लगी ।यानि चाहत का होना जरूरी राह मिल ही जाती है।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
Beena Kundlia