जादुई दुनिया – निभा राजीव “निर्वी”

“विवेक, देखो ना मौसम कितना प्यारा हो रहा है। ठंडी ठंडी हवाएं चल रही हैं। यह काली काली घटाएं! कितना सुंदर लग रहा है सब कुछ। चलो ना कहीं लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं…”- रिया ने मचलते हुए बिस्तर पर लेट विवेक से कहा।

 “अरे रिया, कितनी मुश्किल से तो एक छुट्टी का दिन मिला है जरा सोने भी दो…”- विवेक ने अलसाते हुए कहा।

“बहुत आलसी हो गए हो तुम! उठो ना, प्लीज चलो ना, कहीं चलते हैं, प्लीज मेरे लिए…फिर कहीं किसी ढाबे पर खाना खाते हुए वापस आ जाएंगे….”- रिया ने मनुहार करते हुए कहा

“अच्छा बाबा तुम से कौन जीत सकता है। चलो जल्दी से रेडी हो जाओ, कहीं घूम आते हैं। हथियार डालते हुए एक शरारती अंदाज में रूमानी होते हुए रिया को देखकर विवेक गुनगुनाने लगा -” आज मौसम बड़ा बेईमान है….”

“धत्त बेशर्म!” करती हुई रिया शरमा कर जल्दी से तैयार होने चली गई।

            वह तैयार होकर आई तो बाहर निकलने से पहले माता रानी की तस्वीर के सामने उसने प्रणाम करते हुए श्रद्धापूर्वक सिर झुकाया। उसे माता रानी पर बहुत विश्वास और श्रद्धा थी। वह हर रोज माता की पूजा करके और भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण करती थी। ऐसा नहीं था कि विवेक नास्तिक था पर वह ईश्वर के आगे हाथ जोड़ लेने को ही इतिश्री मान लेता था। परंतु रिया बहुत ही श्रद्धापूर्वक और बड़े मनोयोग से पूजा किया करती थी।कभी कभार विवेक चिढ़ जाया करता था। फिर रिया उसे बड़े प्यार से समझाती

“- मुझ पर माता रानी का आशीर्वाद तो हमेशा से रहा है। और तुम इतने प्यारे पति के रूप में मुझे मिले,यह भी तो माता रानी का ही आशीर्वाद है।” तो विवेक मुस्कुरा पड़ता। कार के हॉर्न की आवाज सुनकर रिया ने जल्दी-जल्दी ताला लगाया और फटाफट कार में बैठ गई।

            जल्द ही उनकी कार शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी। रिया और विवेक की नई-नई शादी हुई थी। उनकी अरेंज्ड मैरिज थी। विवेक अपने माता पिता के साथ उसे देखने आया था। रिया तो विवेक के सौम्य और सलोने रूप को देखते ही उसे दिल दे बैठी थी। बाद में पता चला कि विवेक को अस्थमा की शिकायत रहती है। पररिया तो जिद ठान बैठी थी कि वह विवाह करेगी तो सिर्फ विवेक से। उसने कहा कि वह अच्छे से अच्छे डॉक्टर से विवेक का इलाज करवाएगी

और उससे पूरी तरह ठीक कर देगी। उसे माता रानी पर पूरा विश्वास है। रिया शादी से पहले एक स्कूल में शिक्षिका के तौर पर काम करती थी और विवेक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर था। शादी के बाद वह विवेक के साथ वह यहां कोलकाता आ गई, यहीं नई नौकरी के लिए प्रयासरत थी। रिया को विवेक के साथ इधर-उधर घूमना फिरना बहुत पसंद था और उस पर से तो आज मौसम भी इतना रूमानी था। उनकी कार अब शहर से बाहर निकल चुकी थी। कुछ दूर आगे निकले ही थे कि अचानक गाड़ी एक अजीब सी घरर्र की आवाज के साथ बंद हो गई। शायद कुछ खराबी आ गई थी।


रुको देखता हूं विवेक गाड़ी से उतर गया और बोनट खोलकर अंदर देखने लगा। हवाएं अब धीरे-धीरे तेज होने लगी थी और एक बवंडर का रूप ले लिया। शुरू में तो इक्का-दुक्का गाड़ी आती दिखाई दी, बाद में वह भी बंद हो गई। विवेक की समझ में नहीं आ रहा था कि गाड़ी में क्या हुआ।

बवंडर के साथ ढेर सारी धूल उड़ रही थी। विवेक की सांस धीरे-धीरे फूलने लगी। उसने रिया से अपना इनहेलर जल्दी से मांगा। रिया भी बदहवास होकर इनहेलर ढूंढने लगी पर इनहेलर ना गाड़ी में था और ना ही उसके पर्स में। लगता है जल्दबाजी में इनहेलर घर में ही छूट गया था। विवेक पस्त होकर वही गाड़ी के पास बैठ गया। रिया सहायता के लिए चारों ओर दृष्टि दौड़ाने लगी, मगर कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था। उनकी गाड़ी के अलावा सड़क पर अब कोई दूसरी गाड़ी नहीं नजर आ रही थी।

रिया का मन रोने रोने को हो आया। वह उस क्षण को कोसने लगी जब उसने विवेक को घूमने चलने के लिए कहा था। तभी कुछ दूरी पर उसे एक पुराना सा मंदिर दिखाई दिया। रिया के मन में एक आस जगी कि वहां जाकर शायद कोई पुजारी या कोई अन्य व्यक्ति भी मिले तो वह उनसे सहायता मांग सकती है। 

“विवेक, मेरा कंधा पकड़ कर चलने की कोशिश करो! देखो वहां एक मंदिर दिखाई दे रहा है। हम वहां चलते हैं…..प्लीज एक बार हिम्मत करो..” रिया ने जोर लगाकर विवेक को उठाने का प्रयत्न करते हुए कहा।

किसी प्रकार से रिया विवेक को लेकर मंदिर तक पहुंची। पर वहां कोई पुजारी नहीं था और ना ही उसके अलावा कोई अन्य व्यक्ति। लग रहा था पुजारी जी पूजा के पश्चात घर जा चुके थे। सामने माता रानी की दिव्य सी प्रतिमा दिखाई दे रही थी।

              उसने विवेक को वहीं जमीन पर लिटा दिया और उसकी छाती और पीठ को सहलाते हुए उसे संयत करने का प्रयास करने लगी। पर उसका हर प्रयास विफल जा रहा था। विवेक को जोर लगा कर यहां उठाकर लाते लाते रिया का अपना पैर भी छिल गया था और उसमें से काफी खून बह रहा था। रिया स्वयं को बहुत असहाय महसूस करने लगी। जब उससे कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उसने आंखें बंद करके माता रानी से ही गुहार लगाना प्रारंभ कर दिया। अचानक कंधे पर किसी का स्पर्श पाकर उसने आंखे खोलीं तो देखा एक नन्हीं सी बच्ची उसके पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसने पूछा उसने पूछा “- क्या हुआ दीदी, तुम रो क्यों रही हो? “

रिया पहले तो उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि इस बियाबान में ये बच्ची कहाँ से आ गई।पर मन में एक आस भी बंधी है कि कम से कम कोई तो दिखा। उसने उस लड़की को सारी बातें बताई और पूछा “- क्या मुझे यहां कोई मदद मिल सकती है? मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा…” रो पड़ीं रिया।


बच्ची ने मुस्कुरा कर कहा “- चिंता मत करो दीदी,सब ठीक हो जाएगा।”

उसके पास एक तांबे का लोटा था, जिसमें कुछ पानी था। बच्ची विवेक के पास बैठ गई और धीरे से लोटा उसके होठों से लगा दिया। पानी पीने के कुछ क्षणों के बाद विवेक की सांस धीरे-धीरे संयत होने लगी और उसे चैन की नींद आ गई। तभी बच्ची ने कहा “- अरे दीदी तुम्हारे पैर से तो बहुत खून निकल रहा है। लाओ मैं तुम्हारा भी पैर धो दूं।”… झट से उसने लौटे का थोड़ा पानी उसके पैरों पर भी डाल दिया और अपनी नन्हीं उंगलियों से पूरा रक्त धो दिया। रिया को काफी राहत मिली और उसे अचानक से लगने लगा कि उसका पूरा दर्द खत्म हो गया है और खून भी बहना रुक चुका था। 

रिया ने उस बच्ची से पूछा “- तुम कौन हो गुड़िया रानी और कहां रहती हो? तुमने आज मेरी बहुत सहायता की वरना पता नहीं मेरा क्या होता…”

बच्ची ने मुस्कुरा कर कहा “- अरे दीदी, मैं तो यही मंदिर में रहती हूं हर रोज। च लो अब मैं सोने जा रही हूं। मुझे नींद आ रही है तुम भी सो जाओ…”

               रिया को भीअब बहुत तेज नींद आ रही थी और उसकी आंखें मुंंदती जा रही थी। जल्दी ही वह गहरी नींद में सो गई।

              सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से दोनों की आंखें खुल गई। बीती रात की सारी घटनाएं किसी स्वप्न की तरह लग रही थी। तभी मंदिर के पुजारी जी आते हुए दिखाई दिए और इन दोनों को वहां देखकर अचंभित रह गए। दोनों ने उनको प्रणाम किया और फिर उन्हें बीती रात की सारी बातें बताई। रिया ने पुजारी जी से पूछा “बाबा, इस मंदिर में रहने वाली वह बच्ची कौन है?” 

उसकी बातें सुनकर पुजारी जी अचंभित रह गए और उन्होंने कहा “- यहां मंदिर में तो कोई बच्ची नहीं रहती है। इस जगह के आसपास भी इस उम्र की इतनी छोटी कोई भी बच्ची नहीं है। मैं नहीं जानता हूं आप किस से मिले थे। यह तो माता रानी ही जाने…. जय मां अंबे!”

                   रिया और विवेक का रोम-रोम सिहर उठा। सिर झुका कर माता रानी को बारंबार प्रणाम किया और धन्यवाद दिया। और दोनों कार की तरफ बढ़ चले। रिया ने एक बार फिर मुड़कर माता रानी की प्रतिमा की तरफ देखा। उसे ऐसा लगा कि माता रानी उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही हैं।

                  दोनों कार के पास पहुंचे रिया कार में बैठ गई विवेक ने जैसे ही कार्ड स्टार्ट करने का प्रयास किया कार एकदम से स्टार्ट हो गई। रिया ने आंखें बंद कर पीछे सिर टिका लिया और उसका रोम रोम अंबे रानी की जय जयकार कर रहा था।

 

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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