प्रकाश नारायण जी अपने दोस्त अविनाश जी की पत्नी को अस्पताल में देखने आए थे। वह बीमार थी ब्रेन हेमरेज हुआ था ।तभी अविनाश के छोटे भाई अनुराग का बेटा शिखर खाने का टिफिन लेकर आया। शिखर प्रकाश नारायण से नमस्ते करके वहीं बैठ गया ।अविनाश जी मेडिकल स्टोर से कुछ दवाई लेने गए थे। प्रकाश नारायण ने पूछ लिया अरे शिखर बेटा क्या कर रहे हो आजकल। अंकल
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हूं। सेमेस्टर खत्म हुआ था तो छुट्टियों में घर आया हुआ था। यहां पता लगा ताई जी अस्पताल में भर्ती है तो खाना लेकर आ गया ।और कहां से इंजीनियरिंग कर रहे हो खड़कपुर से। आई आई टी के कंपटीशन से मेरा सिलेक्शन हुआ था ।अरे वाह बहुत बढ़िया बेटा हमें तो पता ही नहीं था खड़कपुर तो पहला आईआईटी है। बहुत बढ़िया बहुत अच्छी जगह है बहुत सही जगह पहुंच गए हों तो बेटा बहुत-बहुत बधाई हो ,जी अंकल।
इतने में अविनाश जी दवा लेकर आ गए थे। खाना देकर शिखर ने घर जाने की अनुमति मांगी। प्रकाश नारायण जो अविनाश जी मित्र थे। उनसे पारिवारिक संबंध भी था ।दोनों एक दूसरे के घर परिवार के सभी सदस्यों से मेलजोल रखते थे। प्रकाश नारायण उम्र में अविनाश से थोड़े बड़े थे तो अविनाश जी ने भाई साहब कहते थे। प्रकाश नारायण जी कहने लगे शिखर बेटे ने तो आई आई टी निकला है इतनी अच्छी रैंक लेकर आया है । तुमने बताया नहीं , जबकि मैंने कई बार पूछा भी था तुमसे की शिखर क्या कर रहा है लेकिन तुमने कोई सही जवाब नहीं दिया। अरे वह भाई साहब ध्यान नहीं रहा होगा। और अविनाश ने कह
दिया । लेकिन वो मन में ईष्र्या आ गई थी इस लिए नहीं बताया। पता नहीं क्यों लोग किसी की उसकी छोटी-छोटी अच्छाइयों को छुपा कर उसकी बुराई बताने में ही लग जाते हैं ।अरे भाई साहब छोटे भाई और उसके बेटे को बड़ा घमंड आ गया है। जब से उसका सलेक्शन आई आई टी में हुआ है ।कोई बात करत,नहीं ,लेकिन ऐसी तो कोई बात नहीं दिखी थी मुझे अभी शिखर खाना लेकर भी आया था प्रकाश जी नारायण जी ने बोले ।
अविनाश अनुराग चार भाई थे दो भाई बड़े थे। और वह शहर से बाहर रहते थे। और अविनाश अनुराग एक ही शहर में रहते थे साथ-साथ दोनों बिजनेस करते थे। अविनाश जी की दो बेटे थे पर अनुराग को एक बेटा और बेटी थी ।अविनाश और उनकी पत्नी सीमा को अपने बेटे का बड़ा घमंड था। अविनाश जी इंजीनियर थे तो वह अपने बेटे को भी इंजीनियर बनना चाहते थे ।कई कई सालों से कंपटीशन की तैयारी कर रहे थे बेटे लेकिन कंपटीशन निकल नहीं पा रहे थे, तीन बार ही दे
सकते थे आई आई टी का एग्जाम और उनका सिलेक्शन नहीं हुआ ।आखिर में हार कर जहां भी एडमिशन मिला ले लिया ।क्योंकि घर परिवार में यदि पड़े बच्चे किसी कंपटीशन की तैयारी करते हैं तो देखा देखी छोटे बच्चों में पढ़ाई में लगन लग जाती हैं। यह बहुत अच्छी आदत है । ताऊ जी के बेटे पढ़ाई कर रहे थे तो शिखर की भी पढ़ाई के प्रति लगन जागृत हो गई।वह भी आई आई टी की तैयारी करने लगा। इस बात से अविनाश की पत्नी सीमा को अच्छा नहीं लग रहा था। बहुत डर लगा होता था
कि कहीं उसका सिलेक्शन ना हो जाए। तो इस बात से घबराकर अविनाश और उनकी पत्नी सीमा समय समय पर शिखर को ना उम्मीद करती रहती थी ,कि तुम्हारे बड़े भाइयों का नहीं हुआ तो तुम्हारा भी नहीं होगा ।क्यों समय बर्बाद कर रहे हो किसी कॉलेज से बीएससी कर लो ।और हमारे बेटों का नहीं हुआं तो तुम्हारा भी नहीं होगा। जब भी घर आती है तो उत्साह वर्धन के बजाय उसे नाउम्मीद करके जाती । शिखर फिर भी कोशिश करने में लग रहा।
दो बार देने के बाद शिखर का सिलेक्शन नहीं हुआ ।बताइए हमारे बच्चों का नहीं हुआ तो उसका कैसे होगा बड़े भाई और भाभी बोले।बड़े भाई अविनाश छोटे भाई को जोर देने लगे बेकार में साल और पैसा बर्बाद कर रहे हो किसी कॉलेज में एडमिशन कर दो ग्रेजुएशन करने के बाद कहीं ना कहीं छोटी-मोटी जाव मिल ही जाएगी। लेकिन अनुराग तैयार नहीं थे। बोले पढ़ाई के प्रति लगन देखकर शिखर को एक बार और मौका दे रहे हैं। देख लेते हैं क्या होता है आखिरी बार नहीं हुआ तो
देखेंगे। पढ़ाई में दिन रात एक कर दिया तो तीसरी बार में शिखर ने आईं आई टी निकला बड़ी अच्छी रैंक लेकर ।अब तो अनुराग के खुशी का ठिकाना ना रहा। लेकिन दूसरी तरफ ताऊजी और ताऊजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।जब शिखर उनके घर पांव छूने गया तो किसी ने उससे बात नहीं की । वह बेचारा अपना सा मुंह लेकर आ गया ।यहां पर घर पर लोग बधाइयां देने लगे और बड़े भाई
और उनके परिवार ने छोटे भाई की परिवार से बात करनी ही बंद कर दी । ईष्र्या और जलन के मारे इसी ईष्र्या वंश उन्होंने प्रकाश नारायण को भी नहीं बताया क्योंकि पर प्रकाश नारायण की और अनुराग से मुलाकात बड़े भाई के घर पर ही होती थी। जब बड़े भाई ने ही बात करना बंद कर दिया तो अनुराग कभी बड़े भाई के घर आना जाना नहीं ही बंद हो गया ।
बात न करने का सिलसिला करीब 2 साल तक चला। अविनाश जी की भी बच्चे दोनों किसी संस्थान से इंजीनियरिंग करके बाहर नौकरी कर रहे थे। चूंकि ताई जी अक्सर तबीयत खराब रहती थी लाइफस्टाइल की वजह से ।बाहर का खाने पीने से और दिन रात बैठे रहने से कोई काम नहीं करना तो वह अक्सर ही अस्पताल में भर्ती हो जाती थी ।इस बार भर्ती हुई अस्पताल में तो शिखर
छुट्टियों में घर आया हुआ था। तो पता लगा ताई जी अस्पताल में भर्ती हैं अनुराग शिखर और अपनी पत्नी को लेकर उनको देखने गया। उसके मन में कोई ईष्र्या की भावना नहीं थी ,लेकिन बड़े भाई छोटे भाइयों के बच्चों से बहुत ईष्र्या रखते थे ।कहीं वह हमसे आगे ना बढ़ जाए उनके पास ज्यादा पैसा ना हो जाए और उनके बच्चे सफल न हो जाए इस बात की उनको बहुत ईष्र्या रहती थी ।
पाठकों ऐसा अक्सर परिवार में देखा जाता है दो-तीन भाइयों के बीच में अगर किसी के बेटे सफल हो जाते हैं और किसी की नहीं होते तो एक दूसरे से ईष्र्या रखने लगते हैं। और हर समय उसको ना उम्मीद करते रहते हैं यह नहीं करना चाहिए। और यदि घर परिवार का कोई भी बच्चा सफल होता है तो सबको इसकी बात की खुशी होनी चाहिए। यह गलत बात है यह अपने ही घर खानदान के तो बच्चे हैं इस तरीके से रखना बड़े का बड़प्पन नहीं होता है कृपया इस पर ध्यान देना चाहिए।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
27जुलाई