कुल उन्नीस साल की थी मै जब ब्याह कर ससुराल आई तो मुँह दिखाई की रस्म के बीच ही एक आठ साल के बच्चे को मेरी सासूमा ने आगे करके कहा कि लो यह तुमहारा बेटा है ।और अचानक ही मेरा हाथ उठ गया था उसपर ।मैंने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मारा उसे ।नहीं यह कैसे हो सकता है ।मुझे नहीं बताया गया था कि मेरी शादी एक दूहेजू से हो रहा है और मेरे पति का एक बेटा भी है आठ साल का।वह बच्चा थपपड़ की चोट से तिलमिला उठा था।शायद उसने मुझसे ऐसी स्वागत की कल्पना भी नहीं किया होगा ।फिर उस घर में सबलोग अच्छे थे ।मिलते बैठते थे।लेकिन मेरा वह सौतेला बेटा मुझसे
दूर दूर रहने लगा था ।मेरा स्वभाव अच्छा और मिलनसार था।लेकिन मै खुद अपने पर हैरान हो गई कि उसके प्रति मेरे मन में ईषया की भावना कैसे और क्यों घर कर गई ।सौतेली माँ का तमगा जो लग गया था मुझपर ससुराल के शुरुआत में ही ।उसका नाम संतोष था।न वह , न मै कभी एक दूसरे से तालमेल नहीं बिठा पाये।समय के साथ मै तीन बच्चों की माँ भी बन गई ।एक बेटा,दो बेटी की ।मैं
अपने बच्चों को बहुत प्यार करती थी ।हर सुख सुविधा जुटाती ।पर वह सामने आता तो भगा देती उसे ।कभी-कभी मन में आता कि उस बच्चे का क्या कसूर? सौतेला शब्द तो उसके पिता के कारण आया था ।आगे बढ़कर गले लगाना चाहती तो कानो में गूंजने लगता की सौतेली मां हूँ ।कभी पढ़ाई के लिए डांटती तो सासूमा कह देती “आखिर सौतेली माँ हो न?दया कहाँ से आयेगी? “फिर मैंने कुछ बोलना छोड़ दिया तो सुनना पड़ा “अपनी माँ होती तभी तो बच्चे पर ध्यान देती पढ़ाई के लिए ” हर हाल में
दोषी मै ही थी।मेरे मन में उसके प्रति नफरत और ईरषया की भावना जोर पकड़ती गई और वह मुझसे दूर होता गया ।मेरी एक आंख मे कुछ खराबी थी तो मुझे चिढ़ाने के लिए वह मुझे कानी कहने लगा।दोस्तो से कहता “कानी ने ऐसा किया,कानी ने वैसा कहा”।मै भी जलती भुनती रही ।समय के
साथ बच्चे बड़े होते गये ।वह चूंकि बड़ा था तो उसकी शादी पहले हो गई ।एक अच्छे घर की कन्या मेरी बहु बनकर घर आ गई ।लेकिन जब पति ही मुझसे दूर था तो पत्नि कैसे करीब रहती ।लिहाजा
बहू ने भी मुझे सास नहीं माना ।मेरे पति दूसरे शहर में नौकरी करते थे ।छुट्टी में घर आते तो सबकुछ ठीक दिखता उनको।उनके जाते ही मै बदल जाती ।फिर उसके दो बेटे हुए।और जब बच्चे तीन साल के हो गए तो अचानक एक दिन सबको सोता हुआ छोड़ कर घर से कहीं चला गया ।नौकरी तो लग गई थी उसकी ।फिर अचानक ऐसा कयों हुआ नहीं मालूम ।कुछ लोगों ने कहा नौकरी में हेराफेरी का दोष लगा था, कुछ लोगों ने कहा सौतेली माँ के प्रताड़ना से उब कर चला गया ।अब बहू दो बच्चों को
लेकर दिन रात रोती रहती और मुझे अच्छा लगता ।पता नहीं मैं दिनोंदिन इतनी कठोर कैसे हो गई थी ।सौतेली माँ का ठप्पा मेरे लिए बहुत दुखी करने वाला था।अब मै अपने बच्चों को अच्छे अच्छे बना कर खिलाती और उसके लिए मोटे अनाज की चुनी दे देती।बिस्तर के लिए टाट दे देती।जाड़े में माँ के
आँचल तले टाट के बिस्तर पर उसके बच्चे सोते तो मुझे बहुत अच्छा लगता ।फिर मेरे बच्चो की शादी हो गई ।सभी अपनी गृहस्थी में मगन हो गये।जलन और ईषया की भावना मे मै नीचे गिरते गयी ।गांव
वाले घर में मै , मेरी सौतेली बहू,उसके दो बच्चे रह गये ।बहू बेचारी कहाँ जाती ।जब पति का ही पता नहीं था।एक दिन मैंने भंडार से मोटे अनाज की चुनी दे दिया और कहा कि लो यही है घर में बनाओ और खाओ।तभी अचानक मेरे पति का पदार्पण हुआ और पोते को ऐसा खाते देखा तो क्रोधित होकर पूछा घर में अनाज नहीं था क्या? मेरी तो हालत खराब हो गई थी ।मैंने कहा “जी,आटा खत्म हो गया है
” फिर पति भंडार में गये और आटे से भरा कनस्तर लाकर आँगन में पटक दिया “यह क्या है? और तुम मेरे पीछे बच्चों को ऐसा खाने को देती हो?”उसदिन खूब लड़ाई हुई घर में ।मै ऐसा चाहती नहीं थी पर मुझसे हो जाता था ।मुझे ग्लानि भी होती थी कि मैंने ऐसा कयों किया ।मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए ।मेरा घर बर्बाद हो रहा था ।मेरे बच्चे मुझे नहीं पूछते थे।मै सबकी नजरों में बुरी माँ बन गई थी ।समय और आगे बढ़ता गया ।पति नहीं रहे ।मेरे सौतेले पोते नौकरी करने लगे।और अपनी माँ को अपने साथ
ले गए ।अब गांव वाले घर में मै अकेली हो गई ।मेरी तबियत खराब रहने लगी थी ।कोई देखने वाला नहीं था ।बगल की एक महिला जो कभी अपने यहाँ काम करती थी वही आकर खाना बना देती ।मेरा अपना किया मुझे वापस मिल रहा था ।फिर लोगों ने कहा अपने बेटे के पास चली जाती तो ठीक था ।लेकिन जब बेटे को अपनी इच्छा बताया तो उसने मना कर दिया “माँ अभी तो मै खुद ही सेट नहीं हो पाया हूँ ।सब ठीक होते ही लेने आता हूँ ” लेकिन वह कभी नहीं आया ।मै बीमार पड़ गयी ।दिन रात
रोती रहती और अपने को कोसती रहती ।मैंने बहुत बुरा किया सबके साथ ।उठने की ताकत नहीं थी।प्यास लगी तो उठने की कोशिश में गिर गई तभी दो मजबूत हाथों ने थाम लिया ।सामने मेरा पोता था वही सौतेला का खिताब वाला ।”दादी मै आपको लेने आया हूँ ।अब आप हमेशा हमारे साथ चलो ।मैं गदगद हो गई ।आशीर्वाद के हाथ उपर उठ गये “भगवान तुम लोगों को ढेर सारी खुशियाँ दे “।मै दूसरे दिन दिल्ली आ गयी।सबने बहुत आदर सम्मान दिया ।मैंने हाथ जोड़ दिया “बेटा मुझे माफ कर
देना,बहुत दुख दिया है तुमलोगों को “”नहीं दादी आपका आशीर्वाद है हमारे पास ।मै आज बहुत खुश हो गई थी ।बस यही मेरी कहानी है ।इस कहानी के माध्यम से यही कहना चाहती हूं कि कभी भी किसी से भी ईषया या द्वेष की भावना नहीं होनी चाहिए ।घर बर्बाद हो जाता है ।फिर मेरा वह सौतेला
बेटा संतोष भी बाईस साल के बाद घर आ गया ।उसका बेटा ही अपने पिता को ले आया था ।बहुत बीमार हो गये थे ।पटना स्टेशन पर पड़े हुए थे ।बेटे को किसी ने खबर किया तो वह जाकर पिता को ले आया ।यह एक सच्ची घटना पर लिखी गई कहानी है ।कोई त्रुटि या गलती है तो अवगत कराएं ।
लेखिका : उमा वर्मा
।राँची ।झारखंड ।स्वरचित ।मौलिक