सुनीता अब इस घर को तोड़कर हम दोनों भाई इस घर को दो हिस्सों में अलग-अलग बनाएंगे। घर बनने तक हम भी किराए पर ही रहेंगे ,तेरे लिए भी 6 महीने का किराया देकर एक घर ले लिया। तेरी बेटी राखी को पढ़ा लिखा कर विवाह भी कर दिया और वह सरकारी टीचर है, तुम उसके पास में ही कहीं अपना इंतजाम भी कर लो। यह सब बातें रक्षाबंधन पर हो रही थी। तभी बड़ी बहन गीता घर में घुसी तो उसे देखकर सब चुप हो गए।
आइए आपको इस परिवार के विषय में बताऊं। वर्मा जी के परिवार में दो बेटे जतिन और नवीन थे और दो बेटियां गीता और सुनीता थी। गीता सबसे बड़ी थी। उसकी शादी दिल्ली में ही रहने वाले, घर के इकलौते बेटे गगन से हो गई थी जो कि सरकारी क्लर्क था। गगन के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और शायद ही कोई ऐसा ऐब हो जो कि उसमें नहीं था। तनख्वाह के सारे पैसे वह शराब और जूए में ही निबटा देता था। बेटे होने के बाद भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया। इसलिए गीता ने गगन के
दफ्तर में ही आवेदन किया था कि गगन की तनख्वाह घर चलाने के लिए उसे दी जाए। इस तरह से उसे गगन की तनख्वाह का कुछ हिस्सा मिलता था और वह आस पड़ोस के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर और कुछ कपड़े सिलकर सासू मां का और अपने बेटे का पालन पोषण कर रही थी। गीता स्वभाव से ही बहुत कर्मठ थी। मायके में भी उसके भाइयों और छोटी बहन सुनीता का विवाह हो चुका था।
सुनीता के बेटी होने के कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई थी और सुनीता के ससुराल वालों ने उसे फिर गांव में आने ही नहीं दिया। छोटी बहन सुनीता अपनी बेटी के साथ अपने माता-पिता के पास ही रहती थी।
सुनीता की बेटी राखी भी स्कूल में भाई के बच्चों के साथ ही पढ़ती थी।वह पढ़ने में बेहद होशियार थी लेकिन कमजोर होते माता-पिता के बाद घर की जिम्मेवारी भाइयों के सिर पर आ रही थी। उनका रवैया सुनीता के प्रति अच्छा नहीं रहा। दोनों भाभियां अलग होकर माता-पिता की सेवा से मुक्त थी क्योंकि सुनीता ही घर का काम और माता-पिता की सेवा करती थी। मां यदि छुपा कर भी कुछ सुनीता को देना चाहे और बड़ी बहन गीता को पता चल जाता तो वह बहन से ईर्ष्या के वश होकर उतना ही सामान माता-पिता से खुद भी लेकर ही जाती।
गीता की सासू मां की मृत्यु होने से पहले उन्होंने अपना फ्लैट बेटे की बजाय गीता के ही नाम किया था। कुछ समय के पश्चात गीता के पति गगन एक दिन बहुत शराब पीकर जब घर आ रहे थे तो उनका एक्सीडेंट हो गया और रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। गीता का बेटा तब केवल 17 साल का ही था लेकिन 18 साल होने पर उसको भी पिता के स्थान पर सरकारी नौकरी मिल गई थी।
गीता का अपना अलग ही दबदबा था, मायके हो या ससुराल वह किसी से डरती नहीं थी। हालांकि वह सब भाई बहनों को बेहद ईर्ष्यालु लगती थी, उन्हें लगता था कि वह हम सबसे ईर्ष्या करती है और लालची भी है। पिताजी की मृत्यु के समय जब उसे पता चला कि पिताजी सब कुछ भाइयों के नाम करेंगे तो उसने पहले ही जाकर अपना हिस्सा मांगा। पिता का कहना था कि उन्होंने राखी की शादी के लिए 10 लाख रुपया रखे हैं तो गीता ने भी लड़कर 10 लाख रुपए अपना फ्लैट बेचकर एक 200 वर्ग मीटर का मकान लेने के लिए मांगे। अंततः गीता के पिता को मनाना पड़ा और उसने एक पुराना बना बनाया मकान खरीद लिया।
मायके में भी पिताजी और माताजी की मृत्यु हो चुकी थी। सुनीता की बेटी राखी का भी विवाह हो गया था। नर्सरी टीचर ट्रेनिंग का कोर्स करने के बाद सुनीता की बेटी राखी भी दिल्ली में ही सरकारी टीचर लग चुकी थी। माता-पिता की मृत्योपरांत भैया भाभी सुनीता पर बहुत एहसान जताते थे। वह उस पर लगातार दबाव बना रहे थे कि अब दोनों भाई भी घर की इतनी बड़ी जगह को दो हिस्सों में अपने-अपने घर बनाएंगे और अब सुनीता अपना इंतजाम खुद करे या अपनी बेटी से कहें।
आज रक्षाबंधन वाले दिन भी वह सुनीता से यही दोहरा रहे थे कि
हमने तुम्हारी तुम्हारी बेटी को पढ़ा लिखा कर विवाह भी कर दिया तो अब अपनी जिम्मेवारी अपनी बेटी को उठाने दो। दोनों भाई इससे आगे कुछ बोलने कि तभी गीता ने घर में प्रवेश किया।
गीता का इस घर में आना किसी को भी पसंद नहीं था परंतु गीता किसी की परवाह नहीं करती थी। सुनीता को रोते हुए देख कर गीता भाइयों से बोली, वो तो माता-पिता थे जिनके कारण सुनीता मायके में रही और सुनीता ने मां बाबूजी की सेवा करी है और भाभियों ने मौज करी है। फिर उसने सुनीता से कहा, सुनीता अपना सामान उठा और मेरे साथ चल। मेरे लिए तो वह फ्लैट ही काफी था
परंतु 10 लाख रुपए और देकर मकान मैंने इसलिए ही खरीदा था क्योंकि मुझे तेरा भविष्य दिख रहा था। वहां तू हक से रह सकती है क्योंकि हमारे पिता ने ही 10 लाख रुपए दिए थे। मेरे बेटे पवन की पोस्टिंग अभी तो ग्वालियर में हो रखी है। हम दोनों बहने वहां आराम से रहेगी और जैसे मैं ट्यूशन पढ़ाती हूं कपड़े सिलती ह्ं वही अब हम दोनों बहनें मिलकर यह काम करेंगे।
घर चल वहां ग्वालियर से मेरा बेटा पवन भी आया हुआ है और तेरी बेटी राखी पवन को राखी बांधने पहुंचने वाली होगी। पवन क्या यूं ही सूने हाथ लेकर सदा बैठा रहेगा।
उसने भाइयों की ओर देखकर कहा कम से कम त्यौहार की लाज तो रख लेते। सुनीता गीता के गले लगी और बोली बहन मैं तो तुम्हें लड़ाकी और लालची समझती थी। मुझे लगता था तुम मुझसे ईर्ष्या करती हो परंतु तुम तो मेरी मां के समान हो। तभी दोनों भाभियां भी जो कि अपने मायके जाने को तैयार थी शर्मिंदा हुई और चुप करके उन दोनों बहनों के खाने के लिए कुछ सामान ले आईं।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
ईर्ष्या विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी।