शालिनी की शादी को दस साल हो चुके थे। दो बच्चे, एक नौकरीपेशा पति, और एक रुटीन-सी जिंदगी। सुबह बच्चों के टिफ़िन, दोपहर घर की सफ़ाई, शाम में सबके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने की कोशिश उसकी दुनिया बस इतनी ही थी।
एक दिन, स्कूल की रीयूनियन की ख़बर मिली । पहले तो शालिनी जाने को लेकर हिचक रही थी। क्या पहनूंगी? क्या बातें करूंगी? सबके पास कहने को बहुत कुछ होगा, मेरे पास क्या है? फिर पति ने समझाया, “जाओ न शालिनी, थोड़ा मूड बदल जाएगा ।” तुम्हें अपनी पुरानी दोस्तों से मिलकर अच्छा लगेगा अपने पति की बात मान वह जाने को तैयार हुई और गई।
वहां शालिनी पहुंची उसको थोड़ा अटपटा लग रहा था वहाँ वह अपने दोस्तों से मिली तभी उसने एक लड़की को देखा ब्लैक साड़ी में आत्मविश्वास की एक चलती-फिरती परिभाषा, फ्रेंच एक्सेंट वाली हिंदी में सबको हँसाते हुए, वह और कोई नहीं उसी के साथ पढ़ने वाली सोनिया थीं। तभी उसकी मुलाकात
सोनिया से हुई। सोनिया कॉलेज की सबसे शांत, सीधी, अपने धुन में मस्त रहने वाली लड़की थी, जिसे लोग ज्यादा नोटिस नहीं करते थे। पर अब वह पेरिस से लौटी थी, सफल फोटोग्राफर बनकर, उसने शादी नहीं की, दुनिया घूम रहीं थीं और उसकी हर बात में आत्मविश्वास झलकता था। बताया, कैसे उसने अपनी नौकरी छोड़ी, खुद की गैलरी खोली, यूरोप घूमी, और अभी एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट पर काम कर रही है।
शालिनी मुस्कुराई, तालियाँ भी बजाईं, लेकिन उसके दिल के कोने में कुछ खिंच गया। शालिनी मुस्कुराई, गले मिली, बातें कीं लेकिन भीतर कहीं कुछ चुभा। रात को घर लौट कर शालिनी ने अपनी अलमारी खोली, एक पुराना स्केचबुक निकाला जो दस साल से बंद थी। धूल में लिपटे सपनों को देखकर उसकी आँखें भर आईं। जिसमें उसने कभी डिज़ाइनर बनने के सपने बुन रखे थे। वह सपने अब बच्चों की कॉपियों, दूध के बिलों, राशन की लिस्ट और रिश्तों की दरारों में कहीं दब चुके थे।
अगले कुछ दिनों तक शालिनी की आँखों से सोनिया का चेहरा नहीं गया। वो उस हँसी को याद करती रही जो जिम्मेदारियों की थकान से आज़ाद थी। फिर ईर्ष्या ने एक और रूप ले लिया अंदर का एक मौन विद्रोह। कुछ दिनों तक शालिनी चुपचाप रही। लेकिन कुछ बदल चुका था। ईर्ष्या अब कोई विकराल दानव नहीं थी, बल्कि एक सवाल बन गई थी।”क्या वाकई यह मेरी पूरी ज़िंदगी हैं? क्या अब कुछ और नहीं हो सकता?” उसके अंदर से आवाज आयीं कोशिश तो कर सकती हो बदलाव के लिए।
शालिनी ने फिर स्केच करना शुरू किया, चुपचाप, बिना किसी को बताए। कभी फूल, कभी चेहरे, कभी ऐसी स्त्रियाँ, जिनके पास पंख थे। किचन के कोने में, जब सब सोते थे, वह रंगों में अपनी चुप्पियाँ उकेरने लगी। ईर्ष्या ने उसे भीतर से तोड़ा, लेकिन उसी ने उसे फिर रचने की हिम्मत भी दी।
एक दिन उसकी छोटी बेटी ने पूछा,
“माँ, क्या आप भी पेंटिंग करती थीं?”
शालिनी चौंकी, फिर मुस्कुराई। “हां, कभी करती थी। अब फिर कर रही हूँ।”
धीरे-धीरे उसका मन रंगों से जुड़ने लगा। वो अपने पुराने इंस्टाग्राम अकाउंट पर स्केचेज़ डालने लगी बिना नाम के।
शालिनी के पति ने एक रात उसे किचन में स्केच करते देखा।
“तुम फिर से पेंटिंग कर रही हो?” उसने सर झुका लिया, “हाँ, ऐसे ही… बस मन कर गया।” पति थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला,
“तुमने यह सब पहले क्यों नहीं बताया?”
शालिनी का जवाब सीधा था,
“क्योंकि मैं खुद ही भूल गई थी कि मैं कौन थी।”
धीरे-धीरे घर में सबने उसे जगह देनी शुरू की। बेटी उसका iस्केचबुक स्कूल ले जाती, बेटी ने अपने दोस्तों को मम्मी की ड्रॉइंग दिखाई। इसी बीच सोनिया ने शालिनी प्रोफ़ाइल देख ली थी बिना नाम वाली वह प्रोफाइल।
एक दिन उसका मैसेज आया:
“Is that you, Shalini ? I would love to work with you please be with us for our next women’s art circle.”
शालिनी देर तक स्क्रीन देखती रही। फिर अपनी खिड़की से बाहर देखा जहाँ कभी सपने खत्म हो गए थे, वहीं से एक नई शुरुआत दिख रही थी।
ईर्ष्या हमेशा गलत या नुकसान करने के लिए नहीं होती कभी कभी ईर्ष्या आत्मबोध भी कराती है अपने को ढूँढने और सपनों को पंख भी लगाती हैं।
लेखिका : डॉ सोनिका शर्मा